
- सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण का मामला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र में पदोन्नति हासिल करना सरकारी कर्मचारियों के लिए दूर की कौड़ी बनता जा रहा है। हर बार जब उम्मीद की एक नई किरण दिखती है, कोई न कोई रुकावट आ जाती है। फिलहाल जो हालात हैं उसे देखकर लगता है कि पदोन्नति के नए या पुराने नियम से ज्यादा कर्मचारी संगठनों की आपसी राजनीति इस प्रक्रिया पर भारी पड़ रही है। जिसकी वजह से पदोन्नति के लिए बने नए नियम भी कानूनी दांव पेंच में उलझते नजर आ रहे हैं। उधर, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोर्ट का आदेश जो कुछ भी लेकिन अब पदोन्नति नए नियम से ही होगी। इन्हें सुप्रीम कोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण संबंधी विभिन्न दिशा-निर्देशों की रोशनी में सभी पक्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
गौरतलब है कि प्रदेश में 9 साल बाद पदोन्नति की आस लगाए बैठे कर्मचारियों की उम्मीदों को नई जान मिली थी। जब मोहन यादव की सरकार ने पदोन्नति के नए नियम फाइनल कर दिए थे। सरकार की इस तैयारी से ये लगने लगा था कि बस अब प्रमोशन मिलकर ही रहेगा। लेकिन, अरमान जिस तेजी से सजे थे उतनी ही तेजी से ढह भी गए। नए नियमों के खिलाफ सपाक्स ने याचिका दायर कर दी जिसके चलते जबलपुर हाईकोर्ट नए नियमों के तहत भी प्रमोशन मिलने पर रोक लगा थी। वहीं प्रदेश में नौ वर्ष से बंद पदोन्नति को फिर प्रारंभ करने के लिए हाई कोर्ट जबलपुर में सुनवाई हुई तो 2002 के नियम की बात उठी। पूछा गया कि यदि सुप्रीम कोर्ट से 2002 के नियम को हरी झंडी मिल गई तो क्या उसे ही मानेंगे या फिर नए नियम से पदोन्नति की जाएगी। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब पदोन्नति नए नियम से ही होगी। इन्हें सुप्रीम कोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण संबंधी विभिन्न दिशा-निर्देशों की रोशनी में सभी पक्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
नियमों की फांस में सरकार
दरअसल, सरकार 2002 के पदोन्नति नियम से पदोन्नत हुए अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत नहीं करना चाहती है इसलिए सुप्रीम कोर्ट में पुराने नियम की लड़ाई लड़ रही है। वहीं, सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) का मानना है कि सरकार असमंजस में है इसलिए न्यायालय के समक्ष पुराने और नए नियम की बात कर रही है। सरकार का तर्क है कि 2002 के नियम स्थगित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। जबकि, हाई कोर्ट जबलपुर में 2016 में नियम निरस्त कर चुका है। इसी निर्णय को तो सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा चुनौती दी गई है। सपाक्स के संस्थापक अध्यक्ष केपीएस तोमर का कहना है कि सरकार के स्तर पर असमंजस की स्थिति है। एक ओर पुराने नियम को लेकर हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो दूसरी ओर नए नियम बना दिए। अब कहा जा रहा है कि पदोन्नति नए नियम से देंगे तो फिर पुराने को लेकर लड़ाई क्यों लड़ी जा रही है। यही स्थिति यथास्थिति पदावनति को लेकर भी है। दरअसल, सरकार को यह डर था कि यदि पुराने नियम से पदोन्नत हुए अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत किया जाता तो इसका सियासी नुकसान हो सकता है।
सरकार तय नहीं कर पा रही है कि करना क्या है
प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति का मामला फिलहाल पूरी तरह उलझा हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहल की पर अधिकारी रास्ता निकालने में विफल रहे।मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि जिस विवादित विषय को कोई हाथ नहीं लगा रहा था, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उस पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए पहल की। उनकी मंशा भी यही थी कि रास्ता निकलना चाहिए पर अधिकारी इसमें विफल रहे। सुनवाई में जो तर्क सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि सरकार तय नहीं कर पा रही है कि आखिर करना क्या है। जब नए नियम बना लिए तो पुराने को लेकर दायर याचिका वापस ली जानी चाहिए थी। यथास्थिति की भी नई परिभाषा निकाली गई है कि हाई कोर्ट द्वारा निरस्त नियम स्थगित हैं। जब नए नियम लाए ही हैं तो फिर याचिका वापस लेकर उस पर अडिग रहना चाहिए। लेकिन ऐसा न करके असमंजस की स्थिति बनाई जा रही है। इससे तो ऐसा लगता है कि अधिकारी मामले को लंबा खींचना चाहते हैं ताकि न पदोन्नति देनी पड़े और न किसी को पदावनत करना पड़े।
नई पॉलिसी क्यों लाई गई…
गत दिनों हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई करते हुए राज्य शासन पर एक के बाद एक सवाल दागे। हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब पुरानी पॉलिसी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला विचाराधीन है तो नई पालिसी क्यों लाई गई। कोर्ट ने यह भी पूछा कि सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने कहा है तो यहां नए नियम के तहत क्यों दिए जा रहे प्रमोशन। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिकाएं यदि स्वीकार की जाती हैं तो नए के तहत किए जाने वाले पदोन्नति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यदि याचिकाएं निरस्त होती हैं तो नए नियम के तहत किए जाने वाली पदोन्नति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 16 सितंबर को सुनवाई के दौरान मप्र शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन व महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने अवगत कराया कि सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से परिपत्र जारी कर वर्तमान स्थिति पर स्पष्टीकरण जारी करेंगे। कोर्ट ने कहा अब स्पष्टीकरण आने के बाद सुनवाई करेंगे। अगली सुनवाई 25 सितंबर को निर्धारित की गई है। महाधिवक्ता द्वारा पूर्व में दी गई मौखिक अंडरटेकिंग के चलते फिलहाल नई पॉलिसी से प्रमोशन रुके हुए हैं।
