झिन्ना और हर्रई की भूमि पर वन विभाग का कब्जा

  • आखिरकार मुख्यमंत्री ने पूर्व वन मंत्री की नोटशीट निरस्त कर दी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम।  पिछले 25 साल से कटनी जिले के झिन्ना और हर्रई की भूमि को लेकर विवाद है कि ये वन भूमि है या राजस्व। इस दौरान 5 सरकारें बदल गईं। सिविल से लेकर हाईकोर्ट पांच बार फैसला सुना चुका है कि यह राजस्व की जमीन है। पिछले 8 साल से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब इस मामले में नया मोड़ आया है और वन विभाग का दावा छोडऩे के निर्देश वाली तत्कालीन वन मंत्री नागर सिंह चौहान की नोटशीट को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निरस्त कर दिया है। जानकारों का कहना है कि इसी नोटशीट की वजह नागर सिंह चौहान से वन विभाग वापस लिया गया था।
मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व वन मंत्री चौहान की नोटशीट को निरस्त करने के बाद वन विभाग ने इस नोटशीट के आधार पर तत्कालीन एसीएस जेएन कंसोटिया द्वारा 16 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में लंबित सरकार की एसएलपी को वापस लेने वाले निर्देशों को निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया। पड़ताल के दौरान ये भी सामने आया कि नागर सिंह से पहले पिछली सरकार के वन मंत्री विजय शाह ने भी याचिका वापस लेने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे।
1994 में आवंटित किए गए थे दो खनिज पट्टे
जानकारी के अनुसार हर्रई और झिन्ना दोनों गांवों से सटी पहाड़ी वन भूमि को राजस्व भूमि मानकर वर्ष 1994 में दो खनिज पट्टे आवंटित कर दिए गए थे। दावा है कि इस क्षेत्र में लौह और एल्युमिनियम अयस्क, लैटेराइट फायर क्ले का प्रदेश का सबसे बड़ा भंडार है। तत्कालीन कलेक्टर द्वारा जारी इस खनिज पट्टे के खिलाफ वन विभाग 32 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। जिला कोर्ट और हाईकोर्ट ने इसे एमपीएलआरसी के तहत राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज होने के आधार पर राजस्व भूमि माना है।
मामला सुप्रीम कोर्ट में
सुप्रीम कोर्ट के स्टे के कारण यहां खनिज पट्टा जारी होने के बावजूद खदान शुरू नहीं हो पा रही है। इन वन भूमि पर 1994 में जारी खनिज पट्टा वर्तमान में सुखदेव प्रसाद गोयनका, प्रोपराइटर आनंद गोयनका के पास है, जो उन्हें 13 जनवरी 1999 को ट्रांसफर हुआ था। कटनी डीएफओ की आपत्ति पर कलेक्टर द्वारा वर्ष 2000 से इस खनन पट्टे पर रोक लगी है। लोकसभा चुनावों के बीच तत्कालीन वन मंत्री नागर सिंह चौहान की लिखी एक नोटशीट पर तत्कालीन एसीएस वन जेएन कंसोटिया ने सुप्रीम कोर्ट से इस एसएलपी को वापस लेने के निर्देश दिए थे। इसके कुछ दिनों बाद ही एसीएस वन जेएन कंसोटिया को वन विभाग से हटा दिया गया था। वहीं, चौहान से भी वन विभाग छीन लिया गया था। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक 25 जुलाई को अपर मुख्य सचिव वर्णवाल ने मंत्री नागर सिंह के फैसले वाली टीप पर लिख दिया है कि एसएलपी वापस न ली जाए। यानी जिस फाइल पर लिखा था कि एसएलपी वापस ली जाए, उस पर आगे की कार्रवाई रोक दी गई है।
वन विभाग के दावे का आधार
जानकारों के मुताबिक, 1950 में जमींदारी प्रथा खत्म होने के पहले और बाद में जमीनों के स्वरूप को रिकॉर्ड में घास, छोटे व बड़े झाड़ का जंगल, पहाड़-चट्टान, आबादी, शमशान, कब्रिस्तान, गौठान, पड़ाव, बाजार और खलियान दर्ज किया गया था। इसी रिकार्ड में छोटे-बड़े झाड़ का जंगल को जंगल के रूप में दर्ज किया गया। इसके बाद 10 जुलाई 1958 को जारी की गई अधिसूचना में स्पष्ट किया गया कि सिर्फ छोटे व बड़े झाड़ का जंगल को वन संरक्षित घोषित किया जाए। वहीं जिस जमीन पर वन विभाग दावा कर रहा है, वह जमीन रिकार्ड में पहाड़-चट्टान के रूप में दर्ज है। यानी यह जमीन वन भूमि की श्रेणी में नहीं आती है। क्योंकि इस जमीन के मिसल बंदोबस्त में मालिक के रूप में जमींदार नहीं लिखा गया है।

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