
- मामला कोर्ट में विचाराधीन होने से अब तक लगभग 55 हजार से भी ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पदोन्नति का लाभ नहीं मिलने की वजह से अधिकारियों और कर्मचारियों में निराशा का भाव बढ़ता ही जा रहा है। पिछले पांच वर्षों से प्रमोशन पर रोक लगी है। दरअसल प्रदेश में कर्मचारियों की पदोन्नति पर यह रोक हाईकोर्ट के फैसले के बाद लगी है। दूसरी ओर राज्य सरकार अब तक कर्मचारियों को उच्च पदों का प्रभाव सौंपे जाने के संबंध में फैसला नहीं कर पाई है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर ने 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002 खारिज कर दिया था। इस कानून में अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। खास बात यह है कि तब से अब तक लगभग 55 हजार से भी ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें कई ऐसे अधिकारी-कर्मचारी हैं, जो पदोन्नति के बिना ही सेवानिवृत्त हो गए। वहीं कर्मचारी संगठन सरकार से लगातार पदोन्नति देने की मांग कर रहे हैं।
पदनाम देने में चूकी सरकार
राज्य सरकार के प्रदेश में लगभग साढ़े चार लाख अधिकारी और कर्मचारी हैं। जिन्हें उच्च पद पर का प्रभार मिलना है। वहीं सरकार इन अधिकारी और कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार ‘पदनाम’ देने में चूक कर गई है। यही वजह है कि अब कर्मचारियों में सरकार के रवैए को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के मुताबिक पिछले पांच साल से पदोन्नति पर रोक लगी है। ऐसे में कर्मचारी निराश हैं। यही नहीं हजारों की संख्या में कर्मचारी अब तक बगैर प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उच्च पदों का प्रभार देने से सरकार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं आएगा। सरकार को इस बारे में जल्द फैसला करना चाहिए।
कमेटी ने शासन को सौंपी थी उच्च पद पर प्रभार की अनुशंसा रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति की मांग को देखते हुए सरकार ने पिछले साल दिसंबर में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देने के संबंध में जनवरी में शासन को अनुशंसा संबंधी अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इसके बाद अब तक सरकार कर्मचारियों को उच्च पदों का प्रभार दिए जाने के संबंध में कोई फैसला नहीं कर पाई है।