पीपी मॉडल से घटा आर्थिक बोझ, सर्विस का स्तर कमजोर

पीपी मॉडल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विकास की गति को बढ़ाने के लिए सरकार ने पीपी मॉडल (पब्लिक पार्टनरशिप)यानी जनभागीदारी पर फोकस किया है। इससे खजाने पर आर्थिक बोझ कम हुआ है, लेकिन जनता की सेवाएं कमजोर हुईं है। इससे जनता को सेवाएं समय से नहीं मिल पा रही है। इस कारण प्रदेशभर में सैकड़ों काम अधर में अटके हुए हैं। इसका आंकलन इससे किया जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 की अवधि में मंजूर किए गए 366 कामों में से 167 कामों को ही पूर्ण किया जा सका है, बाकी 199 अब भी पूरा होने की बाट जोह रहे हैं। इस तरह बीते तीन वर्ष में योजना के तहत 1478 काम स्वीकृत किए गए हैं, उनमें से 620 काम पूर्ण नहीं हो सके हैं।
गौरतलब है कि मौजूदा वर्ष में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में प्रदेश के विधायकों को भी मैदान में उतरना है। ऐसे में विधायक अपने-अपने क्षेत्र के वोटरों को लुभाने और उन्हें अपनी ओर झुकाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम कराने पर फोकस करते हैं, लेकिन लगता है कि अब विधायकों और जनप्रतिनिधियों का ज्यादातर फोकस जनभागीदारी से काम कराने के बजाय सरकार से बड़ी राशि लेकर अपने क्षेत्र का विकास कराने तक सीमित रह गया है। यदि कोई उद्योगपति या अन्य व्यक्ति जो कि जनभागीदारी के माध्यम से काम कराकर प्रदेश के विकास में योगदान देना चाहता है, तो अब वे आगे आने से कतराने भी लगे हैं। या कहें कि उन पर अब जनप्रतिनिधियों का ऐसा दबाव नहीं है कि वे ज्यादा से ज्यादा जनभागीदारी से काम कराने के लिए आगे आएं। इसी मानसिकता का नतीजा है कि पिछले दो वर्ष में जनभागीदारी योजना के तहत कराए जाने वाले कामों की संख्या घटकर अब आधी रह गई है।
तीन वर्ष में 620 पूरे नहीं
बीते तीन वर्ष में लगभग आधे काम अधूरे ही पड़े हैं और अधर में लटक गए हैं। वर्ष 2022-23 की अवधि के लिए पूरे प्रदेश में महज 366 काम ही स्वीकृत किए जा सके हैं, वहीं दो वर्ष पहले 2020-21 की अवधि में प्रदेश में जनभागीदारी योजना के तहत 796 काम मंजूर किए गए थे। हालांकि इनमें से 519 काम ही पूरे हो सके और पैसों की कमी के चलते 277 काम अटक गए जो कि तीन वर्ष बाद भी पूरे नहीं किए जा सके हैं। इधर वर्ष 2021-22 की अवधि में इसमें भारी कमी आई। ये वह दौर था, जब देश और प्रदेश कोविड की चपेट में था और इससे उबरने की कोशिशों में लगा हुआ था। इन दोनों ही वित्तीय वर्ष में कोरोना महामारी का खौफ देश और प्रदेश पर बना हुआ था। वर्ष 2021-22 की अवधि में प्रदेश में जनभागीदारी के कामों में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई और ये महज 312 तक सीमित होकर रह गया। इनमें से 168 कामों को ही पूरा किया जा सका है, वहीं 144 कामों को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। इसी तरह वर्ष 2022-23 की अवधि में मंजूर किए गए 366 कामों में से 167 कामों को ही पूर्ण किया जा सका है, बाकी 199 अब भी पूरा होने की बाट जोह रहे हैं। इस तरह बीते तीन वर्ष में योजना के तहत 1478 काम स्वीकृत किए गए हैं, उनमें से 620 काम पूर्ण नहीं हो सके हैं।
न अफसरों-जनप्रतिनिधियों की रुचि नहीं
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने प्रदेश के संपन्न के साथ ही सामान्य व्यक्तियों द्वारा भी प्रदेश के विकास में ज्यादा से ज्यादा योगदान दें, इस मंशा को ध्यान में रखते हुए जनभागीदारी योजना शुरू की थी। जनभागीदारी के कामों में एक अंश निर्माण कार्यों या अन्य विकास कार्यों में आर्थिक योगदान देने की मंशा रखने वालों का होता है, तो इसी हिसाब से सरकार भी निर्माण कार्य के लिए अपनी ओर से राशि का योगदान देती है, जिससे कि निर्माण कार्यों में पैसे की कमी बाधा नहीं बने। प्रदेश के ऐसे जिले जहां की आर्थिक गतिविधियां ज्यादा होती है और यहां छोटे-बड़े उद्योगों सहित अन्य कारोबार स्थापित हैं। ऐसे जिलों में गांवों और क्षेत्र के विकास से जुड़े कामों को कराने की जिम्मेदारी सुविधा संपन्न लोग भी उठाते हैं, लेकिन इसके लिए अफसर और जनप्रतिनिधियों को मोर्चा संभालना पड़ता है, जिससे कि वे संपन्न लोगों से ज्यादा से ज्यादा जन सरोकार से जुड़े काम करा सकें, लेकिन लगता है कि अब पीपी मोड के कामों को लेकर न तो अफसरों को ज्यादा दिलचस्पी है और न ही जनप्रतिनिधियों को। इसी का नतीजा है कि तीन वर्ष में पीपी मोड के कामों की संख्या घटकर अब आधी रह गई है।

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