लोकसभा चुनाव…. हावी है वंशवाद

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। परिवारवाद को लेकर भले ही राजनैतिक दल एक दूसरे पर सार्वजनिक रूप से हमलावर दिखते हैं, लेकिन मौका मिलते ही इस मामले में आगे निकलने की होड़ में जुट जाते हैं। कांग्रेस में परिवारवाद तो जगजाहिर है, लेकिन भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं रहती है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भी इसी रास्ते को चुना है। भाजपा अपनी जरूरत और सहूलियत के हिसाब से परिवारवाद का उपयोग विपक्ष पर हमला करने के लिए करती है। प्रदेश की  लोकसभा सीटों पर भाजपा ने कई ऐसे चेहरों को प्रत्याशी बनाया है, जिनके परिवार के लोग पहले भी राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय रह चुके हैं। कांग्रेस में खुद दिग्विजय सिंह, नकुल नाथ, कमलेश्वर पटेल, सिद्धार्थ कुशवाहा और अरुण श्रीवास्तव जैसे कई चेहरे हैं, जो परिवारवाद के कारण राजनीति में हैं। यह सभी इस बार लोकसभा चुनाव में उतरे हुए हैं। इसके उलट भाजपा में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और अनीता नागर जैसे चेहरे शामिल हैं। कुल मिलाकर प्रदेश के चुनावी रण में उतरने वाले दोनों प्रमुख दल परिवारवाद से अछूते नहीं हैं। सियासत में सिंधिया का परिवारवाद किसी से छुपा नहीं हैं। उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाता आजादी के बाद पहले कांग्रेस और उसके बाद जनसंघ से था। जनसंघ के बाद वे भाजपा के संस्थापक सदस्यों में रही हैं। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया भी जनसंघ के जमाने से राजनीति कर रहे थे। पहली बार वे जनसंघ के टिकट पर सांसद बने थे। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। उनके निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपनी सियासी पारी कांग्रेस से शुरू की थी। अब वे भाजपा में हैं और गुना से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इसे सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट माना जाता है। यह इलाका सिंधिया रियासत का भी हिस्सा रहा है। इसी तरह से प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा दिग्विजय सिंह हैं। दिग्विजय भी राजनीति में परिवारवाद की वजह से हैं। उनके पिता बलभद्र सिंह विधायक थे। उनका बेटा भी विधायक है। यही नहीं भाई भी सांसद और विधायक रह चुके हैं।  दिग्विजय प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित कांग्रेस संगठन के कई अहम पदों पर रहे हैं। इस बार के चुनाव में वे अपनी परंपरागत सीट राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। दिग्विजय का ताल्लुक भी राज परिवार से है। राजगढ़ की मौजूदा लोकसभा सीट भी उनकी रियासत का हिस्सा रही है। भाजपा के मौजूदा परिवारवाद का सबसे बड़ा नाम अनीता चौहान हैं। वे झाबुआ लोकसभा सीट से पार्टी की प्रत्याशी हैं। उनके पति नागर सिंह चौहान भाजपा की मौजूदा प्रदेश सरकार में वन मंत्री हैं। इसी कड़ी में शहडोल की भाजपा प्रत्याशी हिमाद्री सिंह का नाम भी आता है। हिमाद्री के माता-पिता शहडोल से सांसद रहे हैं। उनका ताल्लुक कांग्रेस से था। हिमाद्री अब भाजपा में हैं। छिंदवाड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी नकुल नाथ का नाम भी इस कड़ी में जुड़ता है। उनके पिता कमलनाथ 1980 से लगातार छिंदवाड़ा से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे हैं। साल 2018 में नाथ जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए, तब 2019 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा से नकुल को उतारा गया था। नकुल प्रदेश में कांग्रेस के एक मात्र मौजूदा सांसद है। वे फिर से चुनाव मैदान में हैं। दूसरा बड़ा कमलेश्वर पटेल का है। उन्हें कांग्रेस में ओबीसी का बड़ा चेहरा माना जाता है। उनके पिता इंद्रजीत कुमार सात बार विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। कमलेश्वर खुद दो बार विधायक और मंत्री रहे हैं। साल 2023 का विधानसभा चुनाव हार गए। सतना से लोकसभा प्रत्याशी बनाए गए सिद्धार्थ कुशवाहा भी परिवारवादी राजनीति का चेहरा हैं। उनके पिता सुखलाल कुशवाहा सतना से बसपा के सांसद रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और भाजपा प्रत्याशी के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा को हराया था। अब सिद्धार्थ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। गुना से कांग्रेस प्रत्याशी राव यादवेंद्र सिंह के पिता राव देशराज सिंह यादव भाजपा से तीन बार विधायक रहे हैं। देवास से कांग्रेस प्रत्याशी बनाए गए राजेंद्र मालवीय के पिता राधाकिशन मालवीय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सहित कई अहम पदों पर रहे हैं। रीवा से कांग्रेस प्रत्याशी नीलम मिश्रा के पति अभय मिश्रा कांग्रेस विधायक हैं। बालाघाट से कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट सरसवार के पिता अशोक सरसवार भी विधायक रहे हैं। मुरैना से कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीटू) के पिता गजराज सिंह भी विधायक रहे हैं। खंडवा से कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र पटेल के चाचा ताराचंद पटेल भी विधायक और सांसद रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से है दो उम्मीदवारों का  वास्ता
मध्यप्रदेश के दो उम्मीदवारों का पहले का नाता उत्तर प्रदेश के झांसी और ललितपुर से है। सागर से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए चंद्रभूषण सिंह उर्फ गुड्डू राजा बुंदेला का ताल्लुक बड़े राजनीतिक परिवार से है। उनके पिता सुजान सिंह बुंदेला दो बार झांसी-ललितपुर से कांग्रेस के सांसद रहे हैं। दो भाई विधायक रहे है। सपा उम्मीदवार मीरा यादव ने भी राजनीति की शुरुआत झांसी से की थी। उनके पति झांसी जिले के गरौठा से विधायक रहे है। शादी के बाद मीरा ने मध्यप्रदेश को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया है। वे निवाड़ी से एक बार विधायक रह चुकी हैं।
भोपाल से श्रीवास्तव ने भी संभाला मैदान
भोपाल सीट से कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को प्रत्याशी बनाया है। उनकी मां विमला श्रीवास्तव का कांग्रेस की राजनीति से गहरा नाता रहा है। वे भोपाल की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही है। श्रीवास्तव पेशे से वकील हैं और मां के साथ ही कांग्रेस की राजनीति की शुरुआत की थी। पार्टी ने लंबे समय तक उन्हें जिला ग्रामीण अध्यक्ष बनाए रखा था। अब उन्हें लोकसभा के रण में उतारा है। श्रीवास्तव परिवार की भोपाल और खासतौर पर देहात इलाके की जनता में गहरी पैठ मानी जाती है।
क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं
अकेले भाजपा और कांग्रेस जैसे दल परिवारवाद की चपेट में नहीं है। दूसरे राजनीतिक दल भी इसी रहा पर चल रहे हैं। भाजपा के राज्यसभा सदस्य रहे अजय प्रताप सिंह सीधी से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वे भाजपा छोडक़र गोंगपा में गए हैं। उनके पिता दधिबल सिंह सीधी में भाजपा के बड़े नेता रहे थे। कांग्रेस ने समझौता फार्मूले में प्रदेश की खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी को दी है। सपा ने मीरा यादव को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन उनका पर्चा रद्द हो गया है। उनके पति दीपनारायण सिंह विधायक रहे हैं। पिता टीकाराम यादव भी राजनीति में थे।

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