नए जिलों का गठन करो… चुनाव जीतो

चुनाव
  • मप्र की राजनीति में नया प्रयोग

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की राजनीति में एक चुनावी टोटका ऐसा है, जो लगातार आजमाया जा रहा है और वह सफल भी हो रहा है। यह टोटका है, चुनावी साल में नए जिलों का गठन। इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रिकॉर्ड बनाने की स्थिति में हैं। चुनावी साल में अब तक उन्होंने राज्य में 4 नए जिलों की घोषणा कर दी है। अमूमन यह माना जाता है कि नया जिला बनाने से कम से कम उस जिले के लोगों में जिला गठित करने वाली सरकार के प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है, जिसका चुनाव में अनुकूल लाभ मिल सकता है। लिहाजा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एंटीइंम्बेंसी को बेअसर करने जो तमाम दांव चल रहे हैं, उनमें एक नए जिलों का गठन भी है।
अपने 18 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में देश में दूसरे सबसे ज्यादा नए जिले बनाने वाले सीएम के रूप में भी उन्हें याद किया जाएगा। अभी यह सेहरा अशोक गहलोत के नाम है। छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद विभाजित मप्र में कुल 45 जिले बचे थे, जो अब बढक़र  56 हो गए हैं। यानी 23 साल में राज्य में 11 नए  जिले बन चुके हैं तथा 15 और नए जिलों की मांग और हो रही है। वर्ष 2003 में उमा भारती ने चुनाव प्रचार के दौरान अनूपपुर, अशोकनगर और बुरहानपुर को जिला बनाने की घोषणा की थी और सत्ता में आने पर इनका गठन कर दिया। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन जिलों की आठ में से सात सीटें जीतीं। 2008 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अलीराजपुर और सिंगरौली जिले बनाए और यहां की पांच से से चार सीटें भाजपा ने जीतीं। इसी तरह के परिणाम 2013 में आगर मालवा और 2018 में निवाड़ी में भी मिले। इस प्रकार से देखें तो नए जिलों का गठन जीत की गारंटी की तरह रहा है।
इस बार चार नए जिलों की घोषणा
नए जिले बनाने का असली मकसद यही है कि प्रशासन की पहुंच लोगों तक आसानी से हो सके और उसके माध्यम से सरकारी कामकाज सुचारू और द्रुत गति से चल सके, क्योंकि नया जिला बनने से संचार सुविधाएं भी अपने आप बढ़ती हैं। हालांकि आजकल नया जिला बनाना राजनीतिक फैसला ज्यादा बन गया है, क्योंकि अलग जिला बनाना और उसके लिए आंदोलन कर लोगों को एकजुट करना सीधे राजनीतिक लाभांश देने वाली प्रक्रिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में 4 नए जिलों की घोषणा की है। अब 53वें जिले के तौर पर मऊगंज अस्तित्व में आ चुका है। वहीं, नागदा, पांढुर्णा और मैहर को जिला बनाने की प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी गई है। सरकार की तैयारी यह है कि विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के पहले यानी अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में इन जिलों का भी गठन हो जाए। इसके राजनीतिक लाभ मिलने का अनुमान भाजपा ने लगा रखा है। मऊगंज में सरकार ने कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की पदस्थापना भी कर दी है। मऊगंज जिले में दो विधानसभा सीटें मऊगंज और देवतालाब आएंगी। दोनों ही वर्तमान में भाजपा के पास हैं। विंध्य अंचल की 30 सीटों में से भाजपा ने 23 पर पिछले चुनाव में  जीत प्राप्त की थी। पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में पुराना प्रदर्शन दोहराने की तैयारी में जुटी है। इसी दृष्टि से रीवा से विधायक राजेंद्र शुक्ल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। वहीं, कांग्रेस भी पूरी ताकत से जुटी है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम तो देवतालाब से ही विधायक हैं। उज्जैन व रतलाम के कुछ हिस्सों को मिलाकर नागदा जिला बनाया जा रहा है। नागदा खाचरौद विधानसभा से कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर विधायक हैं ,तो रतलाम के आलोट से भी कांग्रेस के मनोज चावला विधायक हैं।
ये दोनों विधानसभा क्षेत्र नागदा जिले में आएंगे। मैहर जिले में मैहर व अमरपाटन विधानसभा क्षेत्र आएंगे। मैहर से नारायण त्रिपाठी और अमरपाटन से रामखेलावन पटेल विधायक हैं। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि कमल नाथ सरकार ने मार्च 2020 में जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नागदा, मैहर और चाचौड़ा को जिला बनाने का निर्णय लिया था। कैबिनेट निर्णय के बाद भी भाजपा सरकार ने इनकी अधिसूचना जारी नहीं की। चुनाव आ गए तो श्रेय लेने के लिए एक के बाद एक घोषणाएं कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछोर को भी जिला बनाने की घोषणा कर चुके हैं। इसकी प्रारंभिक अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है। अब यदि अधिसूचना जारी भी होती है तो भी यह चुनाव के पहले जिला नहीं बन पाएगा क्योंकि आचार संहिता आड़े आ जाएगी। इसलिए सरकार पहले ही इसे कार्यवाही में लेने का विचार बना रही हैं। पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि निश्चित तौर पर नए जिलों के गठन से राजनीतिक लाभ तो होता है, पर जिलों का पुनर्गठन बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। जन भावनाओं के साथ-साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि इससे प्रशासनिक और वित्तीय दृष्टि से शासन पर कितना असर पड़ेगा क्योंकि, जब भी कोई जिला बनता है तो शासन का व्यय भी बढ़ जाता है।
जिलों का अपना महत्व
भारत में तीन स्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था है। ये है केन्द्र, राज्य और जिला। इसलिए जिलों का अपना महत्व है, जो जमीनी स्तर पर प्रशासनिक की अहम इकाई होती है। हालांकि जिलों का गठन पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथों में होता है। उसे केवल इसकी सूचना केन्द्र सरकार को देनी होती है। जहां तक इसके राजनीतिक लाभ का प्रश्न है तो कोई भी नवगठित जिला स्थानीय लोगों की आकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति तो करता ही है। एक और महत्वपूर्ण बात क्षेत्रीय अस्मिता के साथ साथ सीमित उपक्षेत्रीय पहचान का संरक्षण भी नए जिलों के माध्यम से होता है।  साथ ही मंत्रियों और विधायकों की राजनीतिक दबंगई की दृष्टि से भी अलग जिला मायने  रखता है। सत्तारूढ़ दल में भी जिले में  किसकी चलेगी, प्रशासन किसकी बात को तवज्जो देगा, यह अहम मुद्दा रहता आया है। मप्र में इसी राजनीतिक रूआब को लेकर मंत्रियो में सिर फुटौव्वल तक हो रही है। नया जिला इस राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई को नए तुष्टिकरण में बदलने का काम भी करता है। इसके अलावा यदि नया जिला किसी लंबे संघर्ष के बाद बना है तो, सत्तारूढ़ दल के प्रति एक सहज रूझान अपने आप बन जाता है और चुनाव में इसके वोट में तब्दील होने की पूरी संभावना होती है। इस दृष्टि से मुख्यमंत्री और भाजपा को उम्मीद है कि नए जिलों से उन्हे पर्याप्त समर्थन मिलेगा। हालांकि, इसके बारे में दावे से कुछ नहीं जा सकता। लेकिन यह अपने आप में लोगों की मांग पूरी करने तथा इसके जरिए सियासी लाभ अर्जित करने के विश्वास को बल तो देता ही है। हां, इसका चुनावी लाभ किसे और कितना मिलेगा, यह तो नतीजे ही बताएंगे।

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