
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की तीन विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव के पहले कांग्रेस में गुटबाजी एक बार फिर खुलकर सामने आना शुरू हो गई है। यह गुटबाजी कांग्रेस को एक बार फिर भारी पड़ने की संभावना तेजी से बनने लगी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा के रणनीतिकार इसका फायदा उठाकर उपचुनाव के ठीक पहले कांग्रेस को एक बार फिर से बड़ा झटका देने की तैयारी में लगे हुए हैं। दरअसल भाजपा की नजर कांगे्रस के उन चेहरों पर लगी हुई है जो उपचुनाव में कांग्रेस के लिए जिताऊ माने जा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम अरुण यादव का है। वे इन दिनों पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ से बेहद नाराज बताए जा रहे हैं। अगर भाजपा अपनी रणनीति के तहत यादव को केसरिया बाना पहनाने में सफल रहती है तो निमाड़ इलाके में भी कांग्रेस का एक और बेहद मजबूत किला ढह जाएगा। इस इलाके में यादव न केवल कांग्रेस के सबसे बड़े किलेदार माने जाते हैं, बल्कि वे पार्टी के प्रदेश में सबसे बड़े पिछड़ा वर्ग के चेहरे भी हैं। निमाड़ ही वो इलाका है जहां पर मिली विधानसभा चुनाव में जीत की वजह से ही कांग्रेस डेढ़ दशक बाद प्रदेश की सत्ता हासिल करने में सफल रही थी, लेकिन सरकार में सिर्फ नाथ और दिग्विजय सिंह के रवैया को लेकर श्रीमंत ने उनका साथ छोड़ दिया था, लिहाजा कांग्रेस की सरकार असमय ही गिर गई और भाजपा को फिर से सरकार में आने का मौका मिल गया। अगर भाजपा अपने मंसूबे में सफल रहती है तो उपचुनावों में भाजपा पूरी तरह से क्लीनस्वीप कर सकती है। इसकी वजह है कि चारों उपचुनाव में सिर्फ दो ही सीटें हैं जहां पर अभी से भाजपा को सर्वाधिक कड़ी चुनौती की संभावना बनी हुई है। इनमें खंडवा लोकसभा सीट पर अरुण यादव और पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र में पूर्व कांग्रेस के मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर के पुत्र नीतेन्द्र सिंह से। यही वजह है कि भाजपा की नजर भी कांग्रेस के इन्हीं दोनों चेहरों पर लगी हुई है। दरअसल यह दोनों ही उपचुनाव वाले ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर भाजपा को मजबूत चेहरों के संकट से जूझना पड़ रहा है। इन दोनों ही नेताओं के भाजपा में आने से उनके इलाकों में न केवल भाजपा मजबूत होगी बल्कि उसके आसपास के इलाकों में भी फायदा होगा। माना जा रहा है कि जिस तरह से श्रीमंत ने कांग्रेस को छोड़कर बड़ा झटका दिया था, उसी तरह के आसार अब फिर से बनते दिख रहे हैं। ग्वालियर चंबल इलाके में कांग्रेस श्रीमंत के झटके से अब तक नहीं उबर पा रही है।
दरअसल हाल ही में जिस तरह से कमलनाथ ने मीडिया के सामने खंडवा से अरुण यादव की दावेदारी को लेकर बयान दिया था, उससे यादव बेहद नाराज चल रहे हैं। नाथ ने यह कहकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था कि उन्हें यादव की दावेदारी का पता ही नहीं हैं, अगर वे उनसे उपचुनाव लड़ने की बात करते तो वे बगैर देर किए ही तत्काल उन्हें प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर देते।
यादव की नाराजगी दो दिन पहले तब और बढ़ गई जब उनके घोर विरोधी निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा अपने समर्थकों के साथ कमल नाथ से मिलने पहुंचे, तो उन्हें खूब तवज्जो दी गई। यही नहीं शेरा द्वारा इस दौरान यादव की जगह अपनी पत्नी को कांग्रेस का टिकट देने की भी मांग कर डाली। दरअसल कांग्रेस में बीते कई सालों से वरिष्ठ नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, जिसमें शह और मात का खेल जमकर चल रहा है। इसी खेल के चलते ही कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से बाहर भी होना पड़ा, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस नेताओं में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। उधर भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत यादव व नीतेन्द्र से लगातार संपर्क में रहने के लिए अपने कुछ नेताओं को भी लगा दिया है। दरअसल इस मामले में भाजपा को अपना फायदा हर जगह नजर आ रहा है। इसकी वजह है यदि अरुण यादव भाजपा में आ जाते हैं, तो कांग्रेस को बड़ा झटका लगेगा, यदि वे कांग्रेस में ही रहते हैं तो इस तरह की कवायद से उनकी निष्ठा संदेह के दायरे में आ जाएगी। ऐसे में कांग्रेस के अंदर अधिक बिखराव होने के साथ ही एक वर्ग विशेष के लोगों में कांग्रेस को लेकर संशय की स्थिति बन जाएगी, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा।
कांग्रेस के जमीनी नेता माने जाते हैं अरुण
अरुण यादव खंडवा के जमीनी बड़े नेता माने जाते हैं। वे यहां से सांसद भी चुने जा चुके हैं। केंद्रीय मंत्री भी बने। इसके बाद वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की भी कमान साढ़े चार साल तक संभाले रहे। उनका अपने इलाके के साथ ही प्रदेश में भी प्रभाव माना जाता है। वे कांग्रेस के अभी सबसे बड़े पिछड़ा वर्ग का चेहरा माने जाते हैं। वर्तमान में उनके छोटे भाई सचिन कांग्रेस के ही विधायक हैं और वे नाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
नाथ के विरोधी नेता की है छवि
अरुण यादव व कमलनाथ के बीच शुरू से ही पटरी नहीं बैठी है। उन्हें पार्टी में नाथ के विरोधी नेता के रुप में देखा जाता है। इन नेताओं के बीच दूरिंया तब और बढ़ गई थीं , जब ग्वालियर के हिन्दू महासभा के एक नेता को कांग्रेस में शामिल किया गया था। उस समय यादव ने नाथ के इस फैसले को लेकर सार्वजनिक रुप से हमला बोला था। इसके बाद से ही इन दोनों ही नेताओं को कभी एक साथ भी नहीं देखा गया है। यादव की नाराजगी इससे भी समझी जा सकती है कि दो दिन पहले प्रदेश प्रभारी की मौजूदगी में हुई बैठक में भी यादव शामिल नहीं हुए , जबकि इस बैठक में सभी पूर्व प्रदेशाध्यक्षों को भी बुलाया गया था। इसके बाद नाथ के बेहद करीबी और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने भी एक ऐसा बयान यादव के खिलाफ दिया, जिससे कांग्रेस की गुटबाजी पूरी तरह से सामने आ गई है। वर्मा ने उनके बैठक में शामिल न होने पर कहा था कि उनके कई कॉलेज और लंबी चौड़ी खेती है शायद उसी में ही वे व्यस्त होंगे।
यादव ने तोड़ी चुप्पी
खुद को लेकर लगाए जा रहे तमाम कयासों के बीच यादव ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि वे 29 जुलाई को बैठक में पारिवारिक कारणों की वजह से शामिल नहीं हो सके हैं। उन्होंने पार्टी स्तर पर मतभेद से इंकार करते हुए कहा कि उनकी 29 और 30 जून को दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से चर्चा हुई थी , तब नाथ ने उन्हें अधिक से अधिक क्षेत्र में समय देकर सक्रिय रहने की सलाह दी थी। हालांकि उनका कहना है कि वे फिलहाल क्षेत्र में रहकर जनता की सेवा में लगे हैं। उनका कहना है कि वे भी चाहते हैं कि खंडवा का टिकट सर्वे से तय होना चाहिए। सर्वे में जिसका भी नाम आए पार्टी उसे प्रत्याशी बनाए।
नाथ के बयान के बाद बढ़ गई पार्टी में दावेदारों की संख्या
दरअसल यादव को लेकर नाथ द्वारा दिए गए बयान के बाद से खंडवा लोकसभा क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी के दावेदारों की संख्या बढ़ गई है। अब इसे क्षेत्र से यादव सहित पांच दावेदार हो गए हैं। बदली परिस्थितियों में टिकट को लेकर निर्दलीय विधायक सुरेंद्रसिंह शेरा ने अपनी पत्नी जयश्री सिंह के लिए टिकट मांगा है। बड़वाह से विधायक सचिन बिरला व खरगौन से विधायक रवि जोशी भी अब दावेदार बनकर उभरे हैं। इधर दिग्विजय खेमे की विधायक झूमा सोलंकी ने भी इस सीट से आदिवासी उम्मीदवार बनाने की मांग करना शुरू कर दी है।