भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा ने यूं ही मोहन यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के समय दो बड़े और अहम राज्यों के जातिगत समीकरण साधने का प्रयास किया है। इसकी वजह है, इन दोनों ही राज्यों में भाजपा को चुनौती जिन दो दलों से मिल रही है, वे दल यादव समाज की ही ही राजनीति करते हैं और दलों के मुख्यिा भी इसी समाज से ही आते हैं। यह दोनों राज्य हैं उप्र और बिहार। इससे यह तय हो गया है कि बीजेपी का फोकस इस बार यादव समाज पर भी रहेगा और इस इसके लिए वह पूर्वांचल में भी तैयारी कर रही है। लोकसभा चुनाव 2019 में सपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें दो सीट आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली। लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए बीजेपी का यह चक्रव्यूह यूपी के समीकरण बिगाड़ सकता है। इसका सबसे अधिक असर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर भी पड़ सकता है। क्योंकि मोहन यादव भी यादव समाज से आते हैं और इधर यूपी में यादव वोट बैंक सपा का खास माना जाता है। इससे साफ है कि यूपी में अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ सकती हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में से करीब 10 से 12 फीसदी वोटर्स यादव समुदाय के हैं और इसे सपा का कोर वोटर माना जाता है। हालांकि भाजपा ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए ऐसी रणनीति बनाई है जो समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।
बिहार-हरियाणा में भी यादव वोटर्स
माना जा रहा है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए यूपी, बिहार और हरियाणा के यादव वोटर्स को साधने के लिए यह प्लान तैयार किया है। जहां बिहार में यादव वोटर्स की आबादी 14.26 प्रतिशत है तो वहीं हरियाणा की कुल जनसंख्या के 10 प्रतिशत यादव वोटर्स हैं। देश में जातीय जनगणना कराए जाने की लगातार मांग हो रही है। बिहार में जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था भी लागू कर दी गई है। ऐसे माहौल में एक बार फिर से पिछड़े समुदाय के मुख्यमंत्री को रिप्लेस कर यादव और पिछड़े समुदाय के ही व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने का सियासी मकसद भी साफ है।
14/12/2023
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