सामाजिक कार्यकर्ताओं को 15 फीसदी टिकट देगी भाजपा

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हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में अबकी बार 200 पार के नारे को साकार करने के लिए भाजपा टिकट वितरण में सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी टिकट देगी। इसके लिए पार्टी ऐसे कार्यकर्ताओं को चिन्हित कर रही है जिनकी जनता के बीच पकड़ मजबूत हो। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी ने सामाजिक संतुलन बनाकर टिकट दिया था। सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत टिकट वितरण से निकाय चुनावों में भाजपा को बड़ी सफलता मिली थी। इसलिए अब विधानसभा चुनाव में भी भाजपा उसी फॉर्मूले को अपना सकती है। भाजपा सूत्रों को कहना है कि पार्टी ने 2018 के चुनाव से सबक लेते हुई इस बार चुनाव में टिकट बांटने के फार्मूले में बदलाव करने का निर्णय लिया है। पार्टी टिकट चयन में सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल न कर सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच से भी बेहतर छवि वाले लोगों को प्रत्याशी बनाएगी। पार्टी की तैयारी 10 से 15 प्रतिशत टिकट समाज के बीच काम करने वाले अच्छे लोगों को देने की है। इसके लिए भाजपा ने अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन चुनावों में किसी एक जाति-समुदाय पर फोकस करने के बजाए, सभी को साथ लेकर चलने पर जोर रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि दशकों तक गैर एनडीए दलों की सरकारों ने जो भ्रष्टाचार किए, उनके नेताओं की हरकतों से चरित्र में गिरावट ने नागरिकों को राजनीति के प्रति न केवल निराश किया, बल्कि राजनीति की दशा और दिशा भी प्रभावित किया है। सत्ता के लिए ही राजनीति की परिपाटी ने हमारे सनातन मूल्यों को हाशिए पर रखा। इस परिपाटी को बदलने के लिए भाजपा आने वाले चुनाव में ऐसे चेहरों को चिह्नित करेगी, जो किसी भी क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हों और उन्हें राजनीति में लाने का प्रयास करेगी। भाजपा प्रवक्ता डॉ. हितेष वाजपेयी का कहना है कि समाज में जो अच्छा काम करते हैं वो भाजपा के माध्यम से राजनीतिक क्षेत्र में भी आना चाहते हैं ,जबकि अपराध जगत के लोग राजनीतिक संरक्षण के लिए कांग्रेस या अन्य पार्टियां ज्वाइन करते हैं। भाजपा को गर्व है कि जनप्रतिनिधि के रूप में भी समाज का सकारात्मक नेतृत्व भाजपा से ही आगे आना चाहता है। इसलिए पार्टी भी उनको समान अवसर देती है और आगे ऐसे लोगों की भागीदारी राजनीति में बढ़ाई जाएगी।
बेस को कर रही मजबूत
एक तरफ भाजपा विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपने बेस को मजबूत कर रही है। दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत अन्य शीर्ष नेता जातिगत समीकरणों का बैलेंस बनाने में भी जुटे हैं। इसके तहत एक तरफ एससी जातियों के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वहीं, मुख्यमंत्री खुद भाजपा के दलित आइकॉन्स के लिए समर्थन दिखाने में जुटे हैं। इसके अलावा दलितों के करीब आने की कोशिश के तहत उनके घर पहुंचने की मुहिम भी चलाई गई। इसके अलावा ओबीसी वर्ग को लुभाने के लिए भी भाजपा ने पूरी कोशिश की है। इन कवायदों का असर भी खूब दिखा है।
निकाय चुनाव में दिखा सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला
भाजपा जिस सामाजिक समरसता के फार्मूले को विधानसभा चुनाव में अपनाने जा रही है उसका नगरीय निकाय चुनाव में सफल प्रयोग हो चुका है। थिंक टैंक कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विचार है कि आने वाले समय में राजनीति को भ्रष्टाचार, अहंकार और जनता से दूरी बनाकर रहने वाले नेताओं से मुक्त कर समाज के लोगों की भागीदारी बढ़ाना है। यही वजह है कि आने वाले चुनाव से भाजपा इस प्रयोग को करेगी। वैसे पार्टी नेताओं के अनुसार 2022 में मध्य प्रदेश में हुए नगरीय निकाय के चुनाव में पार्टी ने इसी फार्मूले के तहत इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव, जबलपुर में डा. जामदार, मुरैना से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और एक शिक्षिका को प्रत्याशी बनाया था। कुछ परिणाम अनुकूल आए तो कुछ प्रतिकूल। पार्टी अब इसे विधानसभा चुनाव में भी लागू करने की तैयारी में है। दरअसल, विचारधारा की अलग लकीरें ही भाजपा की पहचान हैं। इसके संकेत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोगी संगठन प्रज्ञा प्रवाह की भोपाल में पिछले वर्ष हुई चिंतन बैठक में दिए थे। पिछले वर्षों में हिंदुत्व को राजनीति का केंद्र बिंदु बनाने के बाद भाजपा अब इसके दूसरे दौर में प्रवेश करने की तैयारी में है। यानी राजनीति की पहचान और तौर-तरीके हिंदुत्व आधारित जीवन मूल्यों, विचारों और चिंतन पर केंद्रित होंगे। केवल वोट के लिए राजनीति पाखंड है। नेता ऐसा हो, जो लोभ-लालच के बजाए सेवा, विकास का पर्याय बने। व्यसन- दुर्गुणों से दूर रहे ताकि नागरिकों, विशेषकर युवाओं के सामने उच्च आदर्श स्थापित कर सके। यही वजह है कि समाज के बीच रहकर अच्छा काम करने वाले युवाओं को भाजपा अब टिकट में प्राथमिकता देने की तैयारी में है।

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