- ग्वालियर-चंबल फतह के लिए तैनात किए रणनीतिकार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। ग्वालियर-चंबल अंचल को सत्ता का प्रदेश द्वार कहा जाता है। 2018 में कांग्रेस इस अंचल से मिली बढ़त के कारण सत्ता के शिखर तक पहुंची थी। ऐसे में कांग्रेस को रोकने और प्रदेश में लगातार पांचवीं बार सरकार बनाने के लिए भाजपा ने ग्वालियर-चंबल अंचल पर फोकस किया है। दरअसल, इस अंचल की 34 सीटों पर जीत हासिल करना भाजपा के लिए बीते दो चुनाव से चुनौती बना हुआ है। इसलिए इस बार भाजपा ने अंचल की अधिक से अधिक सीटें जीतने की रणनीति बनाई है। लेकिन अंचल की 20 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा की स्थिति डांवाडोल है। इसके लिए दिग्गजों की सक्रियता के साथ ही भाजपा ने आठ संयोजकों को आंतरिक संतुलन बनाए रखने का जिम्मा दिया है। गौरतलब है कि बीते चुनाव में भाजपा अंचल की 27 सीटें हार चुकी है। हालांकि कांग्रेस में हुए विघटन के बाद भाजपा की सीटें 17 हो गई थीं। अब इस चुनाव में मतदाता फिर से भाजपा प्रत्याशी, संगठन और रणनीति की परीक्षा ले रहे हैं। प्रचार में लगे भाजपा कार्यकर्ता जीत का ठोस दावा नहीं कर पा रहे। इसे ध्यान में रखकर अंचल की रणनीतिक कमान देश के गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने अपने हाथ में ले ली है। अंचल के लोगों में स्थानीय नेताओं के प्रति नाराजगी है और मंत्री-विधायकों की कार्यप्रणाली से भी असंतोष पनपा है। स्थिति यह है कि वर्तमान में गोहद, अटेर, ग्वालियर दक्षिण, ग्वालियर पूर्व, पोहरी, मुरैना, डबरा, विजयपुर, श्योपुर सहित 20 सीटों पर स्थिति डांवाडोल है। दोनों संभाग के आठ जिलों में आंतरिक संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी भी आठ वरिष्ठ नेताओं को दी गई है। ग्वालियर के लिए वेदप्रकाश शर्मा, मुरैना में वल्लभ दंडोतिया, भिंड में केशव सिंह भदौरिया, ग्वालियर ग्रामीण में बृजमोहन गुर्जर, श्योपुर में कैलाश गुप्ता, शिवपुरी में हरिराम शर्मा, गुना में सूर्यप्रकाश तिवारी और अशोकनगर की जिम्मेदारी नौरज मनोरिख को दी गई है। इनमें से ग्वालियर ग्रामीण श्योपुर शिवपुरी अशोकनगर और ग्वालियर के संयोजकों की संगठन क्षमताओं पर सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा भाजपा जिलाध्यक्षों के प्रति भी अंदरखाने सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। शीर्ष नेतृत्व को सबसे बड़ा डर यह सता रहा कि जिला और मंडल स्तर पर नेताओं द्वारा की गई मनमानियों का खामियाजा चुनाव परिणाम पर विपरीत असर नहीं डाले। ग्वालियर पूर्व में वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मंत्री माया सिंह का मुकाबला कांग्रेस के डॉ. सतीश सिंह सिकरवार से है। वर्ष 2018 में भाजपा से मादा सिंह का टिकट कटने के बाद सिकरवार को टिकट मिला था। सिकरवार ने माया को आगे कर समर्थन मांगा था। फिर कांग्रेस में गए और सिकरवार ने जीत दर्ज की। इस बार सिकरवार और मावा आमने-सामने हैं। मुरैना की दिमनी सीट पर भाजपा ने अप्रत्याशित फैसला लिया और पार्टी के कद्दावर नेता व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनावी समर में भेज दिया है।
दो चुनाव से भाजपा की स्थिति कमजोर
ग्वालियर-चंबल अंचल के सियासी मानचित्र की बात करें तो क्षेत्र में 34 सीटे है। 2018 में इस क्षेत्र की 26 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। वर्ष 2013 में भाजपा को 20 सीटें मिली थीं। दिमनी और अंबाह में बसपा ने जीत हासिल की थी। वर्ष 2008 में भाजपा के पक्ष 16 कांग्रेस को 13 और जौरा, मुरैना, ग्वालियर ग्रामीण, सेवड़ा में बसपा के प्रत्याशी जीते थे। गुना में पूर्व उमा भारती की अगुवाई वाली भाजश के राजेन्द्र सलूजा ने जीत हासिल की थी। विधानसभा-2023 चुनाव के परिदृश्य की बात करें, तो वर्तमान में जनता के पास सबसे बड़ा सवाल 18 वर्ष का है और इतने सालों में भाजपा के स्थानीय नेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर है। ग्वालियर-चबल अंचल में अवैध उत्खनन अतिक्रमण, सरकारी मशीनरी का बेजा उपयोग, बेरोजगारी औद्योगिक परिक्षेत्र विकसित और स्थापित करने के अधूरे वादे जैसे तमाम मुद्दे है।
05/11/2023
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