जयस की फूट… ओवैसी की बिरयानी से भाजपा को फायदा

असदुद्दीन ओवैसी

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल का समय बचा हुआ है, लेकिन अभी से राजनैतिक चौसर बिछनी शुरु हो गई है। इस चौसर पर भाजपा व कांग्रेस लेकर कई अन्य छोटे दल भी अपनी-अपनी बिसात बिछाने में लग गए हैं। कौन किस को शह देगा और कौन किसको मात, यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल सकेंगे, लेकिन यह तो तय है कि इस बार चुनाव बेहद रोचक रहने वाले हैं। इसकी वजह बन रहे हैं , कई वे छोटे दल जो आदिवासी व मुस्लिम वर्ग की राजनीति करते हैं।  इनमें जयस व ओवैसी की एआईएमईएम प्रमुख रुप से शामिल है। इसके अलावा गोगापा भी अपना दम दिखाने को आतुर बनी हुई है।
इन तीनों ही छोटे दलों ने निकाय व पंचायत चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। यह दल प्रदेश में दो दलीय राजनीति में अपनी हिस्सेदारी बड़ा कर उसे त्रिकोणीय करने के प्रयास में हैं। इन प्रयासों में अब तक गोगापा और जयस सफल होते नहीं दिखी है।  इसकी वजह है उनमें पड़ने वाली फूट।  जयस में भी अब दो गुट हो चुके हैं। इसकी वजह से इसका फायदा चुनाव में भाजपा को होना तय है। इसी तरह से ओवैसी की पार्टी भी विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी के तहत बिरयानी पार्टी कर रही है, जिसका फायदा भी भाजपा को ही मिलना तय माना जा रहा है। दरअसल बीते चुनाव में कांग्रेस को जयस का साथ मिला था जिसकी वजह से उसने मालवा निमाड़ की अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज कर ली थी, लेकिन इस बार जयस में फूट पड़ चुकी है और उसमें दो गुट हो चुके हैं।  यह दोनों गुट अभी से अलग-अलग राह पर चलते दिखना शुरू हो गए हैं। खास बात यह है कि दोनों ही गुट अलग-अलग सम्मेलन करने के बाद अस्सी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी कर चुके हैं। अगर दोनों ही गुट अलग-अलग प्रत्याशी उतारते हैं तो आदिवासी मतदाताओं के मतों के विभाजन का पूरा फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है। उधर, अलावा गुट कांग्रेस से इस बार अपने लिए अलग से हिस्सेदारी चाहता है, जिससे कांग्रेस के सामने नया संकट खड़ा होता दिख रहा है। अलावा अभी कांग्रेस के टिकट पर जीत कर विधायक हैं। उनके विधायक बनने के बाद से ही जयस में फूट पड़ना शुरू हो गई थी, जो अब खाई का रुप लेती जा रही है। दरअसल एक गुट की कमान हीरा लाल अलावा के पास है तो दूसरे गुट की कमान डा आंनद राय और लाल सिंह बर्मन ने संयुक्त रुप से सम्हाल रखी है। यह दोनों ही गुट इस बार विस चुनाव में अस्सी सीटों पर किस्मत आजमाने की तैयारी में है। यही नहीं जयस संगठन ने विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा चुनाव में भी अपनी दावेदारी करने का भी ऐलान किया है।
जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर विधायक डॉ हिरालाल अलावा ने कहा कि यह कार्यक्रम जयस युवाओं के लिए मध्यप्रदेश के राजनीति में मील का पत्थर साबित होगा। अलावा का झुकाव जहां कांग्रेस के पक्ष में माना जाता है, तो वहीं दूसरे गुट का झुकाव भाजपा के पक्ष में बताया जा रहा है। यानि की भाजपा के हाथों में जयस की वजह से दोनों हाथों में लड्डू रहने वाले हैं। जयस के दोनों गुट अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरते हैं तो भी और एक गुट भाजपा के साथ आता है तो भी। इसकी वजह से कांग्रेस का नुकसान होना तय माना जा रहा है, हालांकि अभी समय है, जिसकी वजह से ऊंट किस करवट बैठेगा इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। भाजपा के मांडू चिंतन के बाद अगले महीने कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का जो रूट तय किया गया है, वह आदिवासी इलाकों से गुजरता है। इसमें करीब 29 आदिवासी इलाकों की सीटें पड़ेंगी।
एआईएमईएम 39 सीटों पर कर रही तैयारी
प्रदेश में निकाय चुनावों में अपना खाता खोलने वाली एआईएमआईएम की नजर इस बार प्रदेश की पचास सीटों पर लगी हुई है।   इसके लिए पार्टी में सदस्यता पर जोर दिया जा रहा है।  पार्टी का लक्ष्य चुनाव से पहले करीब 10 लाख सदस्य बनाने का है। इसमें से एक लाख से ज्यादा सदस्य अब तक बना लेने का दावा किया जा रहा है।  अगर इस लक्ष्य को पा लिया जाता है और चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को उतारती है तो मुस्लिम मतदाताओं का बंटवारा होना तय है, जिसका फायदा भी भाजपा को  ही मिलना तय है।  इसकी वजह है अब तक इस वर्ग के मत कांग्रेस के खाते में ही जाते रहे हैं। इसकी वजह से कांग्रेस मजबूत रहती रही है। दावा किया जा रहा है कि भोपाल की नरेला विधानसभा सीट पर ही पार्टी ने 25 हजार सदस्य बनाए हैं। इस सदस्यता के लिए पार्टी के नेताओं द्वारा प्रदेश में जगह-जगह बिरयानी पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। एआईएमआईएम के 7 पार्षद है।  हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में एआईएमआईएम ने ने बुरहानुपर में कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। यहां पर औवसी की पार्टी की महापौर प्रत्याशी ने 10 हजार वोट पाकर कांग्रेंस प्रत्याशी की हार में बड़ी भूमिका निभाई। यहां पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच हार का अंतर सिर्फ 500 वोट से भी कम था।  यहां पर एआईएमआईएम के मजबूत होने से कांग्रेस को ही नुकसान होना है। बताया जा रहा है कि पार्टी विधानसभा की 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इसमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर खंडवा, खरगौन, बुरहानपुर जैसे शहरों में उम्मीदवार उतारने की चर्चा है। दरअसल कांग्रेस से अल्पसंख्यक वोटर खिसक रहा है।  इसका ओवैसी को फायदा मिल सकता है।
जयस का दावा: आदिवासी वर्ग, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंयक, अन्य पिछड़ी घूमंतू जाति, मांझी-मानकर, धनगर, सेन, लोधी, प्रजापति, नायक, सिरवी, पाटीदार, साहू, कुशवाहा, यादव समाज, अन्य सभी गरीब वर्ग मिलकर मध्यप्रदेश में 2023 में जयस के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के जयस प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रविराज बघेल का कहना है कि  अभी तक हमारे जयस ने 50 से अधिक विधानसभा में क्षेत्रों में मैदानी स्तर पर बूथ स्तर की कमैटी बना ली है। आने वाले कुछ माह में हम 80 विधानसभा सीटों पर हर बूथ पर कमेटी के गठन का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। संगठन का दावा है कि पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, अत्याचार जैसे मुद्दों पर मैदानी स्तर पर काम किया जा रहा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। मध्यप्रदेश में इस बार जयस की सरकार बनेगी।
भाजपा का दावा: जयस के 80 सीटों पर चुनाव लड़ने पर नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि जनजाती बंधुओं की बहुलता वाली सीटों पर नगर निगम और पंचायत चुनाव हुए।  इसमें 46 में से 32 पर भाजपा जीती हैं। पूरा विश्वास जनजातीय बंधुओं का विश्वास बीजेपी पर है। अब कोई भी दल आए। उन्होंने देख लिया है कि देश के सर्वोच्च पद पर आदिवासी वर्ग से आने वाली मुर्मू जी को भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति बनाया। स्वंय प्रधानमंत्री बड़े कार्यक्रम में आकर घोषणा करके गए। इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में कार्यक्रम किए। 15 नवंबर का दिन प्रतिवर्ष के लिए बिरसा मुंडा की जयंती होगी। इसलिए जनजाति बंधु समझ चुके है और परिणाम हमारे सामने हैं।
बीते चुनाव में यह था आंकड़ा  
प्रदेश में 2018 में आदिवासियों के वोट से ही कांग्रेस साा के पास पहुंच गई थी। प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 30 सीटें जीती थी। वहीं, 2013 में बीजेपी ने 31 पर जीत दर्ज की थी। अब जयस के अकेले चुनाव लड़ने  से बीजेपी और कांग्रेस का गणित बिगड़ सकता है।

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