
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस व भाजपा के लिए प्रतिष्ठापूर्ण बनी प्रदेश की दमोह विधानसभा सीट आखिरकार बड़े अंतर से कांग्रेस ने जीत ली है। इस जीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि सिर्फ टीम वीडी को छोड़ दिया जाए तो पार्टी का कोई भी प्रभावशाली नेता नहीं चाहता था कि राहुल लोधी की उपचुनाव में जीत हो। यही वजह है कि भाजपा को अपनी इस परंपरागत सीट से उपचुनाव में हाथ धोना पड़ गया है। वैसे भी पार्टी के द्वारा राहुल लोधी को पार्टी में लेकर प्रत्याशी बनाए जाने से न तो कार्यकर्ता खुश थे और न ही आम मतदाता। दरअसल इसकी वजह है प्रभावशाली आला नेताओं द्वारा इस तरह के मामलों में की जाने वाली मनमानी। खैर लोधी के हारने से कांग्रेस से अधिक भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं में दबे मन से खुशी देखी जा रही है। इस हार से अकेले दमोह ही नहीं प्रदेशभर के भाजपा कार्यकर्ताओं में कुछ इसी तरह का आलम है। दरअसल स्थानीय मतदाताओं में नाराजगी की बड़ी वजह थी राहुल द्वारा अपने स्वार्थ के चलते डेढ़ साल बाद ही दलबदल कर चुनावी मैदान में फिर से उतरना। मतदाताओं ने उन्हें बतौर कांग्रेस प्रत्याशी जिताया था, लेकिन वे भाजपा में जाकर महज डेढ़ साल में ही चुनावी जंग की वजह बन गए। उन्हें भाजपा ने लेकर पहले आनन फानन में वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया और फिर पार्टी प्रत्याशी भी बना दिया। कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के दबाव में ही ऐसा किया गया था। इस हालात में सिर्फ संगठन के मुखिया होने के नाते टीम वीडी की तो उनकी जीत के लिए मेहनत करना मजबूरी बनी हुई थी, लेकिन बाकी नेता सिर्फ दिखावे के लिए ही प्रचार के मैदान में उतरे हुए थे। दरअसल लोधी को उस समय भाजपा में शामिल किया गया था, जब भाजपा सरकार को पूरी तरह से बहुमत मिल चुका था। उसके बाद भी उनकी शर्तों पर लिया जाना सभी की समझ से परे बन गया था। लोधी को प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती का बेहद करीबी माना जाता है। उनके भाजपा में प्रवेश में उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है। पार्टी में उमा व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पटरी न बैठने की खबरें आम है। ऐसे में कहा जा रहा है कि चौहान भी नहीं चाहते थे कि लोधी जीतें। यही नहीं चुनाव प्रभारी बनाए गए भूपेन्द्र सिंह भी सागर से ही सभी काम देख रहे थे। दिखने व कहने को तमाम भाजपा के बड़े नेताओं ने पूरी ताकत लोधी के पक्ष में लगा रखी थी, लेकिन वे मतदाताओं को संदेश कुछ और ही दे रहे थे। खास बात यह है कि जब प्रदेश में कोरोना को लेकर त्राहिमाम मचा हुआ था , तब सरकार और उसके सभी नुमाइंदे मरीजों को बेड, इंजेक्शन और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की जगह वोट मांग रहे थे। इस वजह से दमोह के अलावा पूरे प्रदेश में सरकार और भाजपा संगठन को लेकर लोगों में गहरी नाराजगी पैदा हो गई। लोधी ने भाजपा के दिग्गज नेता जयंत मलैया को बीते आम चुनाव 2018 में महज 798 वोट से हराया था। डेढ़ साल बाद राहुल लोधी कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने पहुंच गए। इससे शहरी लोगों में बहुत गुस्सा था। भाजपा के लिए प्रत्याशी के प्रति गुस्सा और कोरोना का दर्द कांग्रेस के प्रत्याशी अजय टंडन की ऐतिहासिक जीत की मुख्य वजह बना। लोधी को लेकर गुस्से का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि लोधी अपने गांव की पोलिंग ही कांग्रेस प्रत्याशी से हार गए। यही नहीं जयंत मलैया के बूथ पर भी वे हारने को मजबूर रहे। दलबदल, कोरोनाकाल का गुस्सा और जयंत मलैया समर्थकों की नाराजगी ने छह महीने में 28 में से 19 सीट जीतने वाली भाजपा की छवि को गहरा झटका दिया है। पूरी सरकार व संगठन मिलकर भी यह इकलौती सीट नहीं जीत सकी। इस सीट को जिताने के लिए वीडी शर्मा प्रहलाद पटेल, उमा भारती से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी तक जुटे थे। भाजपा द्वारा चुनाव प्रभारी नगरीय विकास व आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह और लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव को बनाया गया था।
अफसरशाही की कारगुजारियां भी पड़ी भारी
इस चुनाव में अफसरशाही की कारगुजारियां सबसे बड़ा हार का फैक्टर माना जा रहा है। इस वजह से कोरोनाकाल में इलाज के लिए लोगों का भटकना। मुक्तिधाम में एक साथ कई जलती चिताएं। घर- अस्पतालों से चीत्कारों का सरकार व प्रशासन द्वारा अनसुना किया जाना। इसने भी आग पर घी डालने का काम किया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री तक को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी पार्टी इस मामले में निश्चिंत बनी रहीं। पिछले 5 सालों में एक-दो सीटों वाले उपचुनाव में भाजपा का परफारमेंस अमूमन खराब ही रहा है। नवंबर 2020 के 28 सीटों की सरकार बनाने-बिगड़ने वाले उपचुनाव को छोड़ दें तो वह पिछले 6 में से 5 सीटों पर भाजपा को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। अप्रैल 2017 में आखिरी बार बांधवगढ़ सीट पर शिवनारायण सिंह भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीते जबकि भिंड की अटेर सीट से कांग्रेस के हेमंत कटारे ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से नवंबर 2017 में चित्रकूट, फरवरी 2018 में से मुंगावली और कैलारस, अटूबर 2019 में झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस ही खाते में गए थे।
संगठन के साथ ही संघ भी भौंचक
दमोह में हार से ज्यादा हैरत में संगठन और संघ के अलावा सरकार के द्वारा ग्रामीण इलाकों का रूख नहीं भांप पाने से है। संघ से लेकर तमाम आनुषांगिक संगठन मैदान में मोर्चा संभाले हुए थे। इस मामले में पार्टी व इंटेलिजेंस भी फेल हो गया। साफ था कि भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी से शहरी वोटर नाराज है पर गांव में भी उनका बेअसर रहने से सभी हैरत में पड़ गए।
भाजपा कार्यकर्ताओं में खुशी
इस हार से पार्टी के पुराने व मेहनतकश कार्यकर्ताओं में खुशी देखी जा रही है। इसकी वजह है पार्टी द्वारा बीते कुछ समय से दूसरे दलों के नेताओं को लाकर उन्हें थोपा जाना तो है ही साथ ही उनका हक भी पूरी तरह से मारा जाना। इसकी वजह से पूरे प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं में सत्ता व संगठन को लेकर अंदरूनी तौर पर बेहद नाराजगी बनी हुई है। सरकार भी उन्हें सत्ता में भागीदारी देने में अब तक पूर्व की ही तरह कंजूसी दिखा रही है।