पंचायतों में ‘सरकार’ बनने के बाद बदलेगी ग्रामीण सड़कों की तस्वीर

 ग्रामीण सड़कों
  • मप्र में 20 हजार किमी से अधिक ग्रामीण सड़कें बदहाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में एक-एक गांव को सड़कों से जोड़ने के लिए प्रदेश सरकार ने करीब 90 हजार किमी सड़कों का जाल बिछा दिया है। इससे गांवों में आने-जाने की व्यवस्था सुगम हो गई है। लेकिन भारी वाहनों की धमाचौकड़ी और मरम्मत नहीं होने के कारण करीब 20 हजार किमी सड़कें खराब हो गई हैं। अब इन सड़कों की मरम्मत पंचायतों में सरकार बनने के बाद की संभव है। ऐसे में इस साल मानसून में ये सड़कें ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। क्योंकि मानसून के दौरान सड़कों का मरम्मत होना संभव नहीं है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से मिली जानकारी की अनुसार, प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कें पिछले कुछ साल से खराब होती जा रही है। राजनीतिक उठापटक, कोरोना संक्रमण और बजट के अभाव के कारण सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही थी। अब जाकर स्थिति सामान्य हुई है तो पंचायत चुनाव की अचार संहिता लग गई है। ऐसे में सड़कों के सुधार का काम अब पंचायतों के गठन के बाद ही होगा। तब तक प्रदेश में मानसून आ चुका होगा। ऐसे में करीब 20 हजार किमी खराब सड़कों क मरम्मत मानसून के बाद होने की ही संभावना है। गांवों की सड़कों के निर्माण, मेंटेनेंस से लेकर मॉनिटरिंग का सारा काम जीएम और एजीएम के भरोसे रहता है। प्रदेश में जीएम के 75 में से 22 पद खाली पड़े हैं। विभाग ने इनके लिए भर्ती की प्रक्रिया छह महीने पहले शुरू कर दी थी। इंजीनियरों के इंटरव्यू भी हो चुके है पर विवादों के चलते अक्टूबर 2021 में नियुक्तियां रोक दी गई। इसका असर मेंटेनेंस पर पड़ रहा है।
बाढ़ में क्षतिग्रस्त सड़कें दस माह में भी नहीं सुधरीं
जानकारी के अनुसार पिछले मानसून के दौरान प्रदेश में बारिश और बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़कों का सुधार कार्य 10 माह बाद भी नहीं हो पाया है। इस कारण करीब 20 हजार किमी सड़कों पर चलना परेशानी भरा है। सबसे अधिक खराब सड़के ग्वालियर-चंबल संभाग ही हैं। श्योपुर जिले में बाढ़ और अतिवृष्टि से 20 से अधिक सड़कें खराब हो गई थी, 10 माह बीतने के बाद भी इन सड़कों का मेंटेनेंस नहीं हो पाया है। विभाग ने टेंडर प्रक्रिया तो करा ली है लेकिन अभी प्रशासकीय स्वीकृति नहीं मिल सकी है। यही बचा है कि धरातल पर काम शुरू नहीं हो पा रहा है। जिससे ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
बरसात से पहले इन सड़कों को मेंटीनेंस नहीं हुआ तो ग्रामीणों को और ज्यादा परेशानी उठानी पड़ेगी। अकेले लोक निर्माण विभाग की ही 2 सड़कें क्षतिग्रस्त हैं, जिनकी मरम्मत शुरू नहीं हो पाई है। हालांकि विभाग ने टेंडर प्ररि या कर ली है, लेकिन शासन से अभी प्रशासकीय स्वीकृति नहीं मिली है, जिसके कारण धरातल पर काम शुरू नहीं हो या है। इसमें लोक निर्माण विभाग की ही 22 सड़कें (6 जिला मार्ग और 16 ग्रामीण मार्ग ) क्षतिग्रस्त हुई हैं। हालांकि इसके लिए विभाग ने लगभग 5 करोड़ रुपए की लागत के मरम्मत कार्य के टेंडर करा लिए हैं और एजेंसी भी निर्धारित कर ली है, लेकिन शासन से प्रशासकीय स्वीकृति नहीं मिलने के कारण जिले में सड़कों की मरम्मत का काम शुरू नहीं हो पाया है।
सड़कों की मरम्मत के लिए पर्याप्त बजट नहीं
जानकारी के अनुसार प्रदेश में हजारों किमी सड़कें जर्जर हो गई हैं। लेकिन लोक निर्माण विभाग के पास बजट ही नहीं है कि वह इन सड़कों की मरम्मत करा सके। आलम यह है कि एमपीआरडीसी ने खराब सड़कों के इस्टीमेट बनाकर विभाग को भेजा है। उधर लोक निर्माण विभाग के पास बजट नहीं है और फिलहाल उसने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में लोगों को अभी कुछ महिने और जर्जर सड़कों पर जान जोखिम में डालकर चलना होगा। मप्र में आखिर ऐसा क्या है कि बरसात आते ही प्रदेश के ज्यादातर जिलों की सड़कें जर्जर हो जाती है, इस सवाल का जवाब न ही सरकार के पास है और न ही इन सड़कों को बनाने वाले ठेकेदारों के पास। इन बदहाल सड़कों की मरम्मत के लिए प्रदेश सरकार हर साल लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करती है, पर एक ही बारिश में सड़कों की हालत जर्जर हो जाती है। इस तरह की तस्वीर सिर्फ भोपाल ही नहीं बल्कि प्रदेश के ज्यादातर जिलों की है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि स्वीकृति मिलने के बाद ही मरम्मत का कार्य कराया जाएगा। इधर लोक निर्माण विभाग के अधीन सड़कों की हालत भी खराब हो रही हैं। सड़कों पर हुए गहरे गड्ढे और दरारें पड़ने के कारण यहां आवागमन में परेशानी हो रही है।
बारिश में बढ़ेगी आफत
विभागीय अधिकारियों को कहना है कि गांव को जोड?े वाली 20 हजार किमी से अधिक सड़कें उधड़ गई हैं। इनके अब चुनाव के बाद ही ठीक होने की संभावना है, क्योंकि पंचायत चुनावों की आचार संहिता लागू हो गई है। ये सड़कें 16 जिलों की हैं। ऐसे में खस्ताहाल सड़कें बारिश में आफत बन सकती है। सड़कों के ठीक नहीं होने के पीछे बड़ी वजह बजट और अमले की कमी बताई जा रही है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सूत्रों का कहना है कि इन सड़कों के लिए उपरोक्त 16 जिलों के सांसद और विधायकों ने भी पत्र लिखे हैं। चुनाव से पहले इन सड़कों को दुरुस्त करने के भी निर्देश दिया जा चुके हैं। सीएस की साधिकार समिति की बैठक में भी मेंटेनेंस का मुद्दा उठ चुका है। हाल ही में विभागीय बैठक में शिकायतों के चलते इंदौर जीएम को विभागीय मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने फटकार लगाई है। इसके बाद बजट के लिए फंड जारी किए गए हैं।

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