नामीबिया के बाद अब द. अफ्रीकी चीते भी कूनों में दौड़ेंगे

अफ्रीकी चीते
  • आठ नए बाड़े बनाने का काम हुआ शुरू

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। नामीबिया के बाद अब दक्षिण अफ्रीका के चीतों को भी कूनों में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाने की तैयारी पूरी है। इसके लिए आठ बाड़ों के नि र्माण का काम तेजी से शुरू कर दिया गया है। इसकी वजह है सरकार ने अगले तीन माह में यह चीते लाने का लक्ष्य तय किया है। इस बार पूरे एक दर्जन चीते लाए जा रहे हैं। इनमें चार मादा व आठ चीते नर होंगे। इसके पहले यहां पर नामीबिया से तोहफे के रुप में मिले 8 चीते लाए जा चुके हैं।  फिलहाल इन चीतों को पार्क में छोड़ने से पहले बनाए गए बाड़ों में रखा गया है। जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर 17 सितंबर को छोड़ा था।
गौरतलब है कि साउथ अफ्रीका से भारत 80 से ज्यादा चीते लाए जाने हैं। इसके तहत ही पहले चरण में एक दर्जन चीते लाने की योजना बनाई गई है।  चीता देने से पहले दो बार  अफ्रीका के विशेषज्ञों का दल प्रदेश के दौरे पर आ चुका है। यहां पर इस दल ने निरीक्षण के बाद पाया है कि कूनों पूरी तरह से चीतों की बसाहट के लिए उपयुक्त है। दरअसल नामीबिया से लाए गए चीतों की बसाहट के लिए कूनो में हुए प्रबंधों से भी साउथ अफ्रीका सरकार बेहद संतुष्ट है। कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन ने साउथ अफ्रीका से आने वाले चीतों के लिए 8 बाड़े बनाने का काम शुरू कर दिया है। यह बाड़े नामीबिया से लाए गए चीतों के बाड़े से करीब एक किमी दूर जंगल के समतल इलाके में बनाए जा रहे हैं, जो 8 बाड़े बन रहे हैं, उनमें से एक बाड़े का आकार 15 सौ वर्ग मीटर का तय किया गया है। यह बाड़े एक पखवाड़े में बन जाने की  संभावना  जताई जा रही है ।  कूनो प्रबंधन के अनुसार इस साल के अंत तक साउथ अफ्रीका से लकार चीतों को कूनो में बसा दिया जाएगा।  
अभी कूनों में रह सकते हैं 27 चीते
भारत और अफ्रीका के विशेषज्ञों की टीम ने लंबी स्टडी के बाद पाया कि कूनो चीता कंजर्वेशन के लिए उपयुक्त है। क्योंकि सबसे तेज दौड़ने वाले इस जानवर के लिए यहां पर्याप्त मैदानी इलाका है। यहां चीते की रफ्तार में बाधा नहीं आएगी। इसके अलावा शिकार के लिए चीतल, नीलगाय, सांभर, सियार, ब्लैक बक, बंदर आदि जानवर भी हैं। चीतों को संतुलित मौसम रास आता है। यानी न ज्यादा बारिश न ज्यादा गर्मी, कूनो में ऐसा ही मौसम रहता है। पड़ोस में शिवपुरी के जंगल हैं, चंबल नदी बहती है। कूनो के पक्ष में एक और फैक्टर यह है कि यहां 120 वर्ग किलोमीटर के जंगल में चीतों का 27 दस्यीय कुनबा रह सकता है,  जिसे बदलाव कर 100 तक बढ़ाया जा सकता है। प्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो नदी के किनारे कूनो-पालपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी के एक तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व तो दूसरी ओर रणथम्भौर नेशनल पार्क  है। यहां 6800 वर्ग किलोमीटर के हैबिटेट पैच में से 3200 वर्ग किमी सिर्फ चीतों के लिए मुफीद है। बारिश भी बहुत बड़ी समस्या नहीं है। शिकार के लिए नीलगाय, चीतल, बाराहसींगा, जंगली सूअर, सांभर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। मगर जिस एक वजह ने कूनो को चैंपियन बनाया, वो है कम इंसानी आबादी। यहां के जंगलों में इंसानों की आबादी बहुत ही कम है और वे बाहर जाकर बसे हुए हैं। इसकी प्रमुख वजह हैं डकैत। डकैतों के डर से वे जंगल से बाहर जाकर बस गए हैं। बस इसी वजह ने चीतों को यह नया घर दे दिया। 346 वर्ग किलोमीटर में कोई इंसानी आबादी नहीं है। इसे अलावा यहां का ग्रासलैंड चिंकारा की आबादी बढ़ाने के लिए मुफीद है।
मादा चीता के गर्भवती होने से इंकार
कूनो नेशनल पार्क में एक भी मादा चीता गर्भवती नहीं है। न ही उनका यहां कोई टेस्ट हुआ है। न ही नामीबिया से प्रेग्नेंसी रिपोर्ट आई थी।  उधर चीता कंजर्वेशन फंड की डॉ. लॉरी मार्कर ने कहा हो सकता है कि चीता गर्भवती हो, लेकिन हम पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते। इसी बीच तमाम तरह की अफवाहें फैलने लगीं कि नेशनल पार्क में आई मादा चीता आशा गर्भवती है। नेशनल पार्क के अधिकारियों को सामने आकर यह कहना पड़ा कि कोई मादा चीता गर्भवती नहीं है। न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी चीता का नाम आशा रखा था। कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ प्रकाश कुमार वर्मा का कहना है कि  एक मादा चीता के प्रेग्नेंट होने की  खबर भ्रामक हैं। न तो यहां किसी तरह का टेस्ट किया गया है। न ही नामीबिया से प्रेग्नेंसी रिपोर्ट दी गई है। इस तरह की अफवाह कैसे फैल रही है, यह समझ के परे है।

Related Articles