
- सौरभ शर्मा कांड: पीएचक्यू को रिपोर्ट मिलने के बाद भी प्रकरण दर्ज नहीं
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। लोकायुक्त के छापों की जद में आए परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा ने परिवहन विभाग में झूठा शपथ प्रस्तुत कर नौकरी पाई थी। मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। इससे लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। इसका खुलासा पहले ही हो चुका है। परिवहन विभाग ने सौरभ शर्मा की नौकरी के लिए उनकी मां द्वारा दिए गए शपथ-पत्र को जांच में असत्य पाया है। परिवहन विभाग ने जांच प्रतिवेदन के साथ सौरभ शर्मा और उनकी मां उमा शर्मा के खिलाफ शासकीय नौकरी के लिए असत्य शपथ-पत्र प्रस्तुत करने पर कूटरचित दस्तावेज के सहारे कदाचरण का प्रकरण दर्ज करने का मामला बताया है। यह प्रतिवेदन गृह विभाग को आगे की कार्रवाई के लिए भेजा गया है। गृह विभाग ने भी संबंधित मामले पर कार्रवाई के लिए फाइल पुलिस मुख्यालय को भिजवा दी है। हालांकि अभी तक इस मामले में न तो भोपाल पुलिस में कोई प्रकरण दर्ज किया गया है और न ही लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज हुआ है। क्योंकि लोकायुक्त मामले की जांच कर रही है, वह भी फर्जीवाड़ा करने का प्रकरण दर्ज कर सकती है। अब सवाल उठता है कि परिवहन विभाग की रिपोर्ट के आधार पर गृह विभाग ने जब प्रकरण दर्ज करने के लिए जांच प्रतिवेदन पुलिस मुख्यालय भिजवा दिया तो सौरभ और उनकी मां उमा शर्मा के खिलाफ सरकारी नौकरी के लिए झूठा शपथ-पत्र प्रस्तुत करने के मामले में एफआईआर क्यों नहीं हो पा रही है।
इस तरह झूठा साबित हुआ शपथ-पत्र
सौरभ शर्मा के पिता स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे। सौरभ शर्मा दो भाई हैं। बड़े भाई छत्तीसगढ़ सरकार में नौकरी करते हैं। सौरभ ने पिता की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए मां उमा शर्मा द्वारा जो शपथ-पत्र सरकार को दिलाया गया, उसमें उमा शर्मा द्वारा शपथ पूर्वक कथन किया गया है मेरे पति के आश्रित परिवार में कोई भी शासकीय सेवा में नहीं है। इसके बादे सौरभ शर्मा को अनुकंपा नियुक्ति मिल सकी। जबकि सौरभ के बड़े भाई छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी पर हैं, ऐसे में सौरभ मध्यप्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता नहीं रखते हैं। परिवहन विभाग ने भी अपने जांच में माना है कि उमा शर्मा ने बहुत सारे तथ्यों को शपथ-पत्र में छिपाया है, इसलिए उनकी भूमिका संदेहास्पद है और प्रकरण दर्ज किया जाए।
क्या है पूरा मामला
परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा और उनके राजदार व बिजनेस पार्टनर चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल के ठिकानों पर लोकायुक्त पुलिस ने 18 दिसंबर को छापा मारा था। छापे की कार्रवाई 19 दिसंबर को भी की गई थी। 19-20 दिसंबर की दरमियानी देर रात मेंडोरा के जंगल में एक फार्म हाउस में लावारिस हालत में खड़ी इनोवा के अंदर 54 किलोग्राम सोना और 10 करोड़ से अधिक की नकदी आयकर विभाग ने बरामद की थी। जिस इनोवा से यह सोना और नकदी बरामद हुई है, वह चेतन सिंह गौर के नाम रजिस्टर्ड है और उसका उपयोग सौरभ शर्मा द्वारा किया जा रहा था। इसके बाद 27 दिसंबर को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सौरभ शर्मा और उसके बिजनेस पार्टनर के ठिकानों पर छापा मारा था। ईडी की छापेमारी में सौरभ के ठिकानों से 6 करोड़ की एफडी, 23 करोड़ की संपत्ति सहित कुल 33 करोड़ की संपत्ति मिली थी। ईडी को जमीन से जुड़े दस्तावेज, रजिस्ट्रियां और कुछ कंपनियों के दस्तावेज सहित बैंक खातों की जानकारी भी हाथ लगी थी। 41 दिन की फरारी के बाद सौरभ शर्मा की कोर्ट में सरेंडर करते समय गिरफ्तारी हुई थी।
कैश-सोना सरकारी खजाने में जमा होगा
सौरभ शर्मा के सहयोगी चेतन सिंह गौर की इनोवा कार में मिले 11 करोड़ रुपए कैश और 54 किलो के करीब सोने को अब आयकर विभाग सरकारी खजाने में जमा कराएगा। इसकी वजह यह है कि सौरभ, उसके सहयोगी चेतन और शरद जायसवाल ने अब तक हुई पूछताछ में कार में मिले सोने और नकदी पर अपना दावा नहीं किया है। ऐसे में आयकर विभाग स्टेट बैंक में जमा कराए गए सोने और नकदी की अप्रेजल रिपोर्ट जारी करने के बाद इसे बेनामी संपत्ति घोषित करने की तैयारी में है। इस मामले में आयकर विभाग की बेनामी विंग की जांच भी चल रही है।