
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में हर साल अरबों रुपए वृक्षारोपण और उनकी देखरेख पर खर्च करने वाला वन महकमा प्रदेश में बहुतायत में पाए जाने वाले औषधीय पेड़ों की देखरेख करने में किस हद तक लापरवाही करता है कि तीन तरह के औषधीय पौधों का तो प्रदेश से नामोनिशान ही मिट चुका है , जबकि करीब एक दर्जन प्रजातियों के पौधों पर भी इसी तरह का संकट खड़ा हो चुका है। खास बात यह है कि यह खुलासा भी वन महकमे और राज्य बायोडायवर्सिटी बोर्ड के द्वारा किए गए शोध में हुआ है। इस शोध में कहा गया है कि अगर जल्द ही इन विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके वृक्षों की प्रजाति का संरक्षण नहीं किया गया तो वह भी पूरी तरह से कुछ दशकों में हर विलुप्त हो जाएंगे। फिलहाल जिन तीन औषधीय प्रजाति के पेड़ नहीं मिले हैं उनमें पीलू, सोनपाठा और वरुण के पेड़ शामिल हैं। इसी तरह से पाया गया है कि हर्र, अचार, अर्जुन, बीजासाल और मैदा लकड़ी जैसे प्रजाति के पेड़ भी बहुत कम मात्रा में पाए गए हैं। इस शोध में एक और जो सबसे चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, वह है इनके नए पौधों का न उगना। अगर इन पर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दो चार दशकों में इनका भी नामोनिशान मिट जाएगा। यह उन प्रजातियों के पेड़ हैं , जिनका बड़े पैमाने पर दवा बनाने में उपयोग किया जाता है। फिलहाल वजह जो भी हो , लेकिन शोध में यह खुलासा हुआ है कि इन प्रजातियों के पेड़ों का पुनर्जीवन पूरी तरह से निम्न स्तर पर पहुंच गया है। इसके अलावा बैंगलुरु के फाउंडेशन फॉर रीवाइटेलाइजेशन ऑफ लोकल हैल्थ ट्रेडिशन्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि मप्र में आधा सैकड़ा ऐसी प्रजाति के पौधे हैं , जिनका अस्तित्व ही समाप्ति पर आ गया है।
आधा दर्जन इकोरीजंस में किया गया शोध
इस शोध को प्रदेश के प्रमुख आधा दर्जन इकोरीजंस में किया गया है। इनमें दमोह, देवास, श्योपुर, पन्ना, बालाघाट और उमरिया का एक-एक वनमंडल का कंपार्टमेंट शामिल है। खास बात यह है कि इनमें तीन प्रजाति के पेड़ तो एक भी नहीं मिले हैं। इसके अलावा एक ही इलाके में सिर्फ आंवला, कुल्लू , हर्र और अचार के पेड़ मिले हैं।
इनके विलुप्त होने का खतरा
शोध की रिपोर्ट में जिन औषधीय पेड़ों को विलुप्त होने की कगार पर बताया गया है उनमें हर्र, अर्जुन, कुल्लू , अचार(चिरौंजी), आंवला, पाडर, सलई, बीजासाल, पीलू, मैदा लकड़ी, सोनापाठा, कटीरा और वरुण प्रजाति के पेड़ शामिल हैं। खास बात यह है कि यह वे प्रजातियां हैं , जिनका उपयोग कई तरह की गंभीर बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इनमें पेट संबंधी, मधुमेह , कैंसर, चर्म रोग नेत्र विकार , हृदय की बीमारियां शामिल हैं।