शिव ‘राज’ की रणनीति: विकास ही बनेगा चुनावी हथियार

 शिव‘राज’

2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरेगी। इसके लिए पार्टी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अब तक के शासनकाल में हुए विकास कार्यों को मुद्दा बनाने का निर्णय लिया है। यानी प्रदेश में अगला चुनाव शिव‘राज’ के विकास पर होगा। इसके लिए सत्ता और संगठन ने मिलकर रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
2018 के विधानसभा चुनाव में मिले झटके के बाद भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए बारीकी से रणनीति बना रही है। पार्टी की अब तक की रणनीति के अनुसार भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकास कार्यों को मुद्दा बनाएगी। इसके लिए पार्टी के रणनीतिकार प्रभावी विकास कार्यों की सूची बना रहे हैं। गर्मियां खत्म होने के साथ ही पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता बूथ लेवल तक पहुंचकर शिव‘राज’ के विकास की ब्रांडिंग करेंगे।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2005 में जब सत्ता संभाली थी, तब मप्र बीमारू राज्यों की श्रेणी में गिना जाता था। आज वही मप्र तेजी से विकास करता प्रदेश बना हुआ है। प्रदेश की कई योजनाएं आज अन्य प्रदेशों के लिए मॉडल बनी हुई हैं। ऐसे में सत्ता और संगठन ने निर्णय लिया है कि लोकलुभावन योजनाओं को जनता के बीच में प्रसारित किया जाए। ताकि पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिल सके। प्रदेश सरकार और भाजपा संगठन का प्रयास है कि आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष ‘बीएसपी’ यानी बिजली, सडक़ और पानी को मुद्दा न बनाए। इसके लिए सरकार स्तर पर लगातार प्रयास हो रहे हैं। प्रदेश में कोयले का संकट दूर कर दिया गया है और अब निरंर बिजली सप्लाई होने लगी है। वहीं सडक़ों का जाल शहर से लेकर गांव तक बिछा हुआ है। जबकि हर घर को नल से पानी पहुंचाने की योजना तेजी से आगे बढ़ रही है।

विकास की गवाह बनेंगी सडक़ें

प्रदेश सरकार इस समय मिशन मोड में है। इसकी वजह है आगामी विधानसभा चुनाव। भाजपा सरकार आगामी विधानसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरेगी। इसके लिए विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को धड़ाधड़ मंजूरी दी जा रही है। इसी कड़ी में 8,500 करोड़ की सडक़ें और पुल बनेंगे का काम शुरू होने वाला है। इसके लिए आगामी दो माह में टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। प्रदेश मेें विकास कार्यों को गति देने के मद्देनजर सरकार ने पीडब्ल्यूडी की 200 सडक़ों, 70 से ज्यादा पुल और भवनों को मंजूरी दे दी है। इसमें केंद्रीय सडक़ निधि (सीआरएफ) और नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) के तहत बनने वाली 8 प्रमुख सडक़ें शामिल हैं। बजट में 5000 करोड़ की सडक़ों और पुल का काम शामिल है। एनएचएआई की 1500 करोड़ की आठ सडक़ें बनेंगी। इनमें सीआरएफ के 2000 करोड़ के आठ और प्रोजेक्ट शामिल हैं। वहीं पीडब्ल्यूडी को हर माह खर्च के लिए वित्त विभाग अभी तक 500 करोड़ रुपए की लिमिट देता था, इसे 200 करोड़ रुपए बढ़ाकर 700 करोड़ रुपए कर दिया गया है। जल संसाधन और नर्मदा घाटी विकास विभाग का 500-500 करोड़ है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग का मासिक खर्च लिमिट 507 करोड़ रुपए ही रखा है।
वहीं भोपाल, इंदौर, जबलपुर सहित प्रदेश के अन्य नगरीय क्षेत्रों में यातायात का सुगम बनाने के लिए सरकार 18 ओवर ब्रिज बनाएगी। ये भी ब्रिज केंद्रीय सडक़ निधि के अंतर्गत सेतु बंधन योजना के तहत बनाए जाएंगे। इसमें मध्य प्रदेश के लिए 105 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। लोक निर्माण विभाग ने केंद्र सरकार का पत्र प्राप्त होने के बाद सभी मुख्य अभियंताओं को निर्देश दिए हैं कि नगरीय निकायों से चर्चा करके प्रस्ताव भेजें ताकि इन्हें केंद्र सरकार को भेजकर स्वीकृति प्राप्त की जा सके। प्रदेश में अधोसंरचना विकास के कामों को गति देने के लिए सरकार कार्ययोजना बनाकर काम कर रही है। केंद्रीय सडक़ निधि में इस वर्ष मध्य प्रदेश के लिए एक हजार आठ सौ करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। इसमें ग्वालियर में स्वर्णरेखा नदी पर 447 करोड़ रुपये की लागत से एलीवेटेड फ्लाइओवर बनाया जाएगा। इसके लिए निविदा जारी करने की तैयारी हो गई है। वहीं, भोपाल के बैरागढ़ में ओवर ब्रिज बनाना भी प्रस्तावित है। इसकी स्वीकृति भी केंद्र सरकार से मिल चुकी है। प्रथम अनुपूरक बजट में इसके लिए प्रविधान किया जाएगा। इसके साथ ही केंद्रीय सडक़ निधि में सेतु बंधन योजना में अब ओवर ब्रिज के लिए अलग से प्रविधान किए जाने का लाभ भी मध्य प्रदेश को मिलेगा।

सिंचाई क्षमता 65 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य

लगभग डेढ़ दो दशक पहले तक बीमारू और पिछड़े राज्य की श्रेणी में आना वाला मध्यप्रदेश अब विकास की बहार वाला राज्य है। पिछले 17 सालों में विकास की पगडंडियों से होते हुए अब आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के रोडमैप पर प्रदेश चल रहा है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूती देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने हर क्षेत्र के विस्तार और विकास के अनुकूल वातावरण निर्मित किया है। प्रदेश में एक तरफ जहां उद्योगों का जाल बिछाकर विकास के नये आयाम स्थापित किये जा रहे हैं तो वहीं कृषि और किसानों को समृद्ध और समर्थ बनाना प्रदेश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। केन्द्र के सहयोग और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली डबल इंजन सरकार की कृषि कल्याण की विभिन्न योजनाओं के परिणाम स्वरूप ही मध्यप्रदेश को लगातार 7 बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ है। प्रदेश के लिए कृषि वास्तविक अर्थों में जीवन रेखा है, और अन्नदाता प्रदेश के मजबूत आधार स्तंभ हैं। इसलिए सरकार का पूरा फोकस सिंचाई योजनाओं के विस्तार पर है। 2003 में 7.68 लाख हैक्टेयर में सिंचाई होती थी। आज कुल क्षमता 43 लाख हैक्टेयर से अधिक है। सिंचाई क्षमता को 2025 तक 65 लाख हैक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। केन-बेतवा लिंक परियोजना बुंदलेखंड की तस्वीर तथा तकदीर बदलेगी। इस परियोजना के लिए 44 हजार 605 करोड़ रुपये स्वीकृति किए हैं। 8 हजार करोड़ रुपये की लागत से चिंकी-बोरास बैराज परियोजना नरसिंहपुर-रायसेन एवं सांवेर माइक्रो उद्वहन सिंचाई परियोजना खरगोन-इन्दौर के निर्माण कार्य जल्द शुरू होंगे। इनसे 2.12 लाख हैक्टेयर सिंचाई क्षमता बढ़ेगी। 50 मेगावाट बिजली भी बनेगी।
मप्र में सरकार अब सिंचाई के लिए प्रेशराइज्ड पाइप लाइन की व्यवस्था शुरू करने जा रही है। जल संसाधन विभाग ने हाल ही में ऐसी 46 मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के टेंडर करने जा रहा है, जिनसे पाइप लाइन के जरिए सिंचाई की जाएगी। इन परियोजनाओं के निर्माण पर 9 हजार करोड़ की राशि खर्च होगी और 3 लाख हेक्टेयर में सिंचाई संभावित है। प्रदेश में वर्तमान में 27 वृहद सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। ये सभी परियोजनाएं प्रेशराइज्ड पाइप लाइन आधारित हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में अभी नहर प्रणाली से सिंचाई होती है। इससे पानी की बर्बादी होती है। इसलिए अब यह व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त होगी। अब जितनी भी सिंचाई प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं, वह प्रेशराइज्ड पाइप लाइन आधारित होंगे। वर्तमान में 27 वृहद सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें सम्राट अशोक सागर, कोठा बैराज, चंदेरी, माही कमांड, शामगढ़ सुवासरा, बाणसागर, महान, रामनगर, नईगढ़ी, गौड़, चंबल, कनेरा, बानसुजारा, मां रतनगढ़ बहुउद्देश्य, पंचमनगर, सीतानगर, बीना संयुक्त सिंचाई, बंडा, पेंच व्यपवर्तन, छिंदवाड़ा काम्प्लेक्स तथा हरसी परियोजना शामिल हैं। इन परियोजनाओं के निर्माण से करीब 5 लाख हेक्टेयर में सिंचाई प्रस्तावित है और करीब 12 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च होने का अनुमान है। इनमें से कुछ परियोजनाएं दिसंबर 2022 और कुछ मई 2023 में पूर्ण हो जाएगी, जबकि करीब एक दर्जन 2026 में पूरी कराई जा सकेगी। इनमें से कुछ परियोजनाओं में टेंडर प्रक्रिया चल रही है और कुछ के टेंडर भी हो चुके हैं। अधिकांश परियोजनाओं का काम जून 2023 और दिसंबर 2024 तक पूर्ण कराया जाएगा। ये परियोजनाएं नर्मदा नदी आधारित नहीं हैं। इस कारण 2026 तक 60 लाख हेक्टेयर में सिंचाई कराने का लक्ष्य पूरा होने की संभावना है। एसीएस डब्ल्यूआरडी एसएन मिश्रा का कहना है कि 46 नवीन मध्यम सिंचाई परियोजनाओं में से अधिकांश के टेंडर हो चुके हैं और कुछ के जल्द हो जाएंगे। इन परियोजनाओं पर तेजी से काम कराया जा रहा है, जिससे हम इन्हें 2024 तक पूर्ण करा सकेंगे।

ग्रामीण विकास का बनेगा ब्रांड

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आत्मनिर्भर मप्र अभियान को प्रदेश के गांव संबल दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि प्रदेश सरकार के नवाचारों से गांवों की तस्वीर बदली है। आज मप्र के गांव देशभर के लिए विकास के मॉडल बने हुए हैं। यह संभव हो पाया है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया के संयुक्त प्रयास से। अब मप्र के गांव भी स्वच्छता और सुविधाओं के मामले में छोटे नगरों को टक्कर देने लगे हैं। पंचायतें भी लक्ष्य तय करती हैं और आपसी प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने की होड़ में गांवों का नक्शा बदल रही हैं। गांवों की महिलाएं भी अब समूहों के रूप में उद्यमी बन रही हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से सक्षम बन कर अपने बच्चों को शिक्षित बनाकर देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। नवाचारों ने विभाग में विकास की दृष्टि से नए आयाम स्थापित कराए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है। इसलिए सरकार का फोकस भी गांवों पर रहा है। केंद्र की योजनाएं हो या राज्य की प्रदेश सरकार ने उनका सुनियोजित क्रियान्वयन गांवों में कराया है, इसलिए आज मप्र के गांव छोटे शहरों को टक्कर देने लगे हैं। गांवों में पलायन को रोकने के लिए सरकार ने ग्राम शिल्पी अभियान चलाया है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास के इस नवाचार के तहत ग्रामीण शिल्पियों जैसे नाई, बढ़ई, कुम्हार, लोहार व बसोर आदि का चयन कर उन्हें व्यवसाय करने हेतु प्रेरित किया, उन्हें प्रशिक्षण दिलाया गया और पंचायत क्षेत्र में स्थान देकर उनका व्यवसाय शुरू कराया गया। इसका सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि जहां गांव में प्रशिक्षित शिल्पी मिलने लगे, तो वहीं इस वर्ग से जुड़े लोगों का पलायन भी रुकने लगा।
प्रदेश सरकार का शहर की ही तरह गांवों के विकास पर भी फोकस है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार की अभ्युदय योजना को माध्यम बनाया गया है। विभागीय मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने इस नवाचार पर व्यक्तिगत रुचि दिखाई जिसके बारण इस योजना के तहत प्रदेश के अब ब्लाक में 40-40 आदर्श गांव बनाए जा रहे है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन गांवों का विकास कैसे हो, इसके लिए उसी गांव के प्रत्येक घर में सरकारी बाबू पहुंचेंगे और ग्रामवासी से पूछेंगे कि वे गांव को आदर्श बनाने के लिए क्या सोचते हैं। यानि कि घर-घर सर्वे किया जाएगा और इससे जो रोडमैप तैयार होगा, उसी आधार पर गांव का विकास कर उसे आदर्श गांव की श्रेणी में खड़ा किया जाएगा। पैसे के लिए पुरूषों पर निर्भर रहने वाली ग्रामीण महिलाओं को बैंक सखी ने आत्मनिर्भर बना दिया है। इसके तहत स्व-सहायता समूहों की दीदी उन महिलाओं को दो हजार रुपए तक की नगद राशि उपलब्ध कराती हैं, जिन्हें पैसों की जरूरत होती है। वहीं विभाग ने एक ओर जहां महिलाओं को अपने हुनर के आधार पर व्यवसाय करने में सहायता उपलब्ध कराई तो उन्हें कर वसूली जैसे काम की जिम्मेदारी भी सौंपी। गांव में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी कई महिलाएं अब रजिस्टर और रिकार्ड लेकर कर वसूली के काम में जुटी हुई हैं। दीदियों को बिजली बिल, जलकर एवं स्वच्छता कर वसूली का दायित्व सौंपा गया है। वर्तमान में 2 हजार से अधिक स्व सहायता समूहों द्वारा उक्त वसूली का कार्य किया जा रहा है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री पोषणशक्ति योजना में विद्यार्थियों को ताजी एवं आर्गेनिक सब्जियां उपलब्ध कराने सभी शालाओं में मनरेगा के सहयोग से किचन गार्डन विकसित किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष 24271 मां की बगिया पूर्ण कराई गई है।

गौ संरक्षण मॉडल की ब्रांडिंग

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौ सरक्षण के लिए अनुदान का जो मॉडल अपनाया है उसे देशभर में सराहा जा रहा है। गौरतलब है कि मप्र सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती करने वाले देसी गोपालकों को प्रतिमाह 900 रुपए देने की घोषणा की गई है। अब बिहार भी मप्र के इस मॉडल को लागू करने जा रहा है। बिहार में प्रति गायपालक को 10,800 रुपए देने की योजना बनाई गई है। गौरतलब है कि देश में खेती की लागत को कम करने एवं रासायनिक खेती से हो रहे नुकसान को कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। तो वहीं अब मप्र की तर्ज पर बिहार में भी देसी गायों को संरक्षण दिया जाएगा। अभी बिहार सरकार मप्र मॉडल का अध्ययन करा रही है। सारे तथ्यों पर विचार के बाद गायों के संरक्षण का कोई आदर्श मॉडल अपनाया जाएगा।
गौरतलब है कि मप्र इनदिनों दुधारू प्रदेश बना हुआ है। यहां दूध की नदियां बह रहीं हैं। दूध उत्पादन में देश में तीसरे स्थान वाले मप्र में अब रिकार्ड दूध उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। बताया जा रहा है कि इस वर्ष राज्य में दूध उत्पादन 19 हजार टन का आंकड़ा पार कर चुका है हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है। राष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्ट जारी होने के बाद ही सही स्थिति सामने आएगी। स्थिति ये है कि प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 545 ग्राम प्रति दिन पर पहुंच गई है। दूध की यह उपलब्धता राष्ट्रीय औसत 405 ग्राम से भी ज्यादा है। प्रदेश में 10 हजार 205 दुग्ध सहकारी समितियां हैं जिनसे दूध का संकलन बढ़ाया गया। हाल ही में गुजरे वित्तीय वर्ष 2021-22 में प्रदेश को यह उपलब्धि प्राप्त होने की उम्मीद है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2016-17 में 13 हजार 445 टन दूध उत्पादन हो रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में बढक़र 17 हजार 999 टन हो गया। प्रदेश के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि वित्तीय वर्ष 2015-16 से पहले प्रदेश का दूध उत्पादन 12 हजार टन से भी कम था। जिसे देखते हुए सरकार ने दूध उत्पादन बढ़ाने के प्रयास शुरू किए। गाय-भैंस को खुरा (पैर और मुंह में होने वाला रोग) सहित अन्य बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। पौष्टिक पशु आहार की इकाइयां खुलवाई गईं। प्रदेश में सिंचाई रकबा और फसल उत्पादन बढऩे से भी गाय-भैंस की सेहत सुधरी है। इसी का असर है कि प्रदेश में महज चार साल में साढ़े चार हजार टन से अधिक दूध उत्पादन बढ़ गया।

जैविक खेती को और बढ़ावा

प्रदेश जैविक खेती और इससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में देश में अव्वल है। प्रदेश में लगातार जैविक खेती का क्षेत्र बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में 640995.46 हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही थी। जबकि, वर्ष 2020-21 में यह क्षेत्र बढक़र 1195577.98 हेक्टेयर से अधिक हो गया है। प्रदेश सोयाबीन, चना, मसूर, तुअर और उड़द के उत्पादन में देश में नंबर एक पर है। वहीं, रामतिल और मूंग में दूसरा और गेहूं और बाजरा के उत्पादन में तीसरा स्थान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। शिवराज सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है।दरअसल, कोरोनाकाल में जैविक खेती में खूब नवाचार हुए। देश-प्रदेश से घर लौटे कामगारों ने अपने गांव में जैविक खेती अपना रोजगार की नई राहें तैयार की। इसी का नतीजा है कि जैविक खेती के क्षेत्रफल में अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज हुई है। करीब सवा चार लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक खेती कर राजस्थान दूसरे पायदान पर आ गया है। दोनों ही राज्यों में पिछले तीन-चार वर्ष में जैविक खेती का रकबा लगभग दो गुना हुआ है। वहीं देश में जहां वर्ष 2017-18 में कुल 20.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक खेती होती थी। वहीं 2020-21 यह आंकड़ा 38.20 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। प्रदेश में 2011 में जैविक कृषि नीति बनाई गई और 2014 में मंडला में निवेशक सम्मेलन भी किया। दरअसल, प्रदेश में जैविक खेती का रकबा (क्षेत्र) तो बढ़ रहा है पर उत्पाद की मार्केटिंग और ब्रांडिंग न होने से उत्पादकों को फायदा नहीं मिल पाता है। इसे देखते हुए कृषि विभाग अब किसान और व्यापारियों को एक मंच पर लाने की दिशा में काम कर रहा है। प्राकृतिक तौर पर मप्र में जैविक खेती का क्षेत्र सर्वाधिक है। वहीं, किसान भी लगातार प्रेरित हो रहे हैं। वर्ष 2020-21 में उत्पादन 13 लाख 92 हजार 95 टन रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। जैविक उत्पाद के निर्यात की दृष्टि से देखें तो देश-दुनिया में इसकी मांग बढ़ रही है। मध्य प्रदेश से वर्ष 2020-21 में पांच लाख 636 टन जैविक उत्पाद निर्यात किए गए। इसका मूल्य दो हजार 836 करोड़ रुपये होता है।
देश से निर्यात होने वाले जैविक उत्पादों की मात्रा और मूल्य दोनों में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के तहत वर्ष 2019-20 में 6.38 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 2020-21 में 8.88 लाख मीट्रिक टन भारतीय जैविक उत्पाद निर्यात किए गए। निर्यात मूल्य 689.10 से बढक़र 1040.95 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। प्रदेश में 2011 में जैविक कृषि नीति बनाई गई और 2014 में मंडला में निवेशक सम्मेलन भी किया। दरअसल, प्रदेश में जैविक खेती का रकबा (क्षेत्र) तो बढ़ रहा है पर उत्पाद की मार्केटिंग और ब्रांडिंग न होने से उत्पादकों को फायदा नहीं मिल पाता है। इसे देखते हुए कृषि विभाग अब किसान और व्यापारियों को एक मंच पर लाने की दिशा में काम कर रहा है। प्राकृतिक तौर पर मप्र में जैविक खेती का क्षेत्र सर्वाधिक है। वहीं, किसान भी लगातार प्रेरित हो रहे हैं। वर्ष 2020-21 में उत्पादन 13 लाख 92 हजार 95 टन रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। जैविक उत्पाद के निर्यात की दृष्टि से देखें तो देश-दुनिया में इसकी मांग बढ़ रही है। मध्य प्रदेश से वर्ष 2020-21 में पांच लाख 636 टन जैविक उत्पाद निर्यात किए गए। इसका मूल्य दो हजार 836 करोड़ रुपये होता है। देश से निर्यात होने वाले जैविक उत्पादों की मात्रा और मूल्य दोनों में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के तहत वर्ष 2019-20 में 6.38 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 2020-21 में 8.88 लाख मीट्रिक टन भारतीय जैविक उत्पाद निर्यात किए गए। निर्यात मूल्य 689.10 से बढक़र 1040.95 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।

अपनी स्टार्टअप पॉलिसी बनेगी

मप्र के युवा अब अपनी स्टार्टअप पॉलिसी के सहारे सपनों की उड़ान भरेंगे। इसके लिए प्रदेश में नई स्टार्टअप पॉलिसी बनाई जा रही है। मप्र देश का पहला ऐसा राज्य है जो खुद की स्टार्टअप पॉलिसी लांच करने जा रहा है। 13 मई को प्रदेश में स्टार्टअप पॉलिसी प्रधानमंत्री मोदी लांच करेंगे। यह स्टार्टअप पॉलिसी इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेन्शन सेंटर से लांच होगी। जहां पर सीएम शिवराज सिंह चौहान और एमएसएमई मंत्री ओम प्रकाश सकलेचा मौजूद रहेंगे। जबकि पीएम वर्चुअल रुप से जुड़ेंगे। कार्यक्रम में प्रदेशभर के 500 स्टार्टअप और 1500 युवा मौजूद रहेंगे। मुख्मंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि मप्र में कार्य कर रहे विभिन्न स्टार्टअप्स को एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के लिए इन्दौर में हब की स्थापना की जाएगी। मध्य प्रदेश में लागू होने वाली स्टार्टअप नीति और स्टार्टअप पोर्टल से प्रदेश में नवाचारों के क्रियान्वयन के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध हो सकेगा। इन्वेस्ट इंदौर के सचिव सावन लड्ढा ने बताया कि स्टार्टअप की ग्रोथ के लिए शहर का ईकोसिस्टम लगातार तेजी से डेवलप हो रहा है। स्टार्टअप के मामले में देश के टॉप 10 शहरों में इंदौर का नाम भी शामिल हो चुका है। शहर में इस समय लगभग 700 स्टार्टअप काम कर रहे हैं।
प्रदेश में स्टार्टअप तेजी से बढ़ रहे हैं। 2019 के बाद से इंदौर में भी स्टार्टअप की संख्या में तेजी से बड़ी है। 2019 के पहले शहर में लगभग 250 स्टार्टअप थे। तीन साल में इनकी संख्या बढक़र 700 तक पहुंच गई है। इंदौर में साल 2019 से 2021 के बीच 241 से ज्यादा स्टार्टअप लांच हुए है। साल 2021 की बात करें तो इस साल इंदौर में 40 प्रतिशत नए स्टार्टअप लॉन्च हुए है। शहर में शुरू से ही आईटी सेक्टर के स्टार्टअप काम कर रहे हैं। लेकिन बीच में कैफेटेरिया, रेस्टोरेंट जैसे स्टार्टअप तेजी से शुरू हुए थे। लेकिन कोरोना के बाद सबसे तेजी से आईटी सेक्टर के स्टार्टअप शुरू हुए। शहर में इस समय लगभग 300 स्टार्टअप आईटी सेक्टर में काम कर रहे हैं। वहीं हाल ही में पीथमपुर में ई व्हीकल बनाने के भी 3 स्टार्टअप शुरू हुए हैं। शहर में काम कर रहे 700 स्टार्टअप में से करीब 100 ऐसे स्टार्टअप है जिनका निवेश लगभग 10 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चुका है। वहीं शहर में ऐसे स्टार्टअप की संख्या भी बड़ी है जिनका वैल्यूएशन या टर्न ओवर 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चुका है। शहर में 2 स्टार्टअप ऐसे भी है जिनकी फंडिंग 6 हजार करोड़ रुपए से ज़्यादा से की हो चुकी है। जो जल्द ही यूनिकॉर्न की लिस्ट में शामिल हो सकते है।

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