- अवधेश बजाज कहिन

परम श्रद्धेय काका जी। आसपास का वातावरण मुझे यूं ही बहुत प्रभावित नहीं करता। क्योंकि उन सब में अधिकांश अवसर पर भावनाओं की नुमाइश का प्रबल आग्रह रहता है। इसलिए रविवार को जब आपकी पुण्यतिथि पर मैं आकंठ आपकी स्मृति में डूबा हुआ था, तब फादर्स डे का वह शोर मुझे समझ ही नहीं आया। क्योंकि आपकी स्मृति तो मेरे लिए उस भोर की परिचायक है, जिसकी झिलमिल निरंतर बढ़ती रोशनी में मैं आपकी सीख और काम को अपने लिए सबसे अमूल्य संचित निधि
के रूप में मानता हूँ। फिर, 19 जून मेरे लिए तो कतई कभी भी केवल फादर्स डे हो ही नहीं सकती। मैं तो उसे वह दिन मानता हूं, जब एक सुबह के उगते सूरज ने मुझसे कहा, ‘काका जी नहीं रहे।’ तब मैं आपादमस्तक आपके शोक में डूबा था, लेकिन बाद में मैंने पाया कि सूरज भी झूठ बोलता है। क्योंकि आप तो हर कहीं थे, हैं और रहेंगे। आज ही से इस साल की बरसात की सबसे जोरदार बौछार भोपाल में आई है। उस ढलती दोपहरी में मैं घर के अंदर बैठा था। सामने से घर में आता एक परिचित दिखा। मुझे फिक्र हुई कि कहीं वह बरसात में भीग न गया हो। लेकिन वह हेलमेट पहने हुआ था। और उसे मटमैले और काले हेलमेट ने मुझे आपके आर्शीवाद तथा संरक्षण वाले उस सतरंगी छाते के नीचे ला खड़ा कर दिया, जिसकी छाया में आपने न हमें हालात की धूप महसूस होने दी और न ही कभी विपरीत परिस्थितियों की भयावह बौछारों के हवाले आपने हमें किया।
आंसू कई बार बेसाख्ता बह निकलते हैं। बहुत -बहुत मौकों पर यह भी लगता है कि क्यों मैं बेसबब फूट-फूट कर रो रहा हूँ। आपकी बरसी से एक रात पहले भी मेरे साथ यही हुआ। मैं इतना रोया कि कहीं आंसू सूख न जाएं। लेकिन फिर अहसास हुआ कि वह आंसू तो आँख से निकल कर हृदय तक जा रहे थे। सींच रहे थे उन बीज को, जो आपकी सीख और आदर्शों के रूप में आप मेरे भीतर रोप गए हैं। जीवन के मीठे-खट्टे अनुभव के निचोड़ वाली आपके तजुर्बों के बीज को तो नमकीन पानी ही पल्लवित कर सकता है, फिर वह मेरे आंसुओं में घुले नमक का पानी ही क्यों न हो।
सात साल गुजर गए, आपके बगैर। ”स’ आरंभ है ‘सत्ता’ का उसके चरणों में लेटकर ‘सुख’ पाने का और इस सबके बीच पत्रकारिता के धर्म का ‘सत्व’ निचोड़ फेंकने का भी। लेकिन आप के हिस्से तो इस ‘स’ का ‘सर्वश्रेष्ठ’ ही आया। आया नहीं, आपने उसे अपने पुरुषार्थ और ईमानदारी से अर्जित किया। मुझे और न जाने कितने लोगों को उसकी विरासत सौप कर आप यूं हमसे दूर हो गए। तो क्या परसों रात के बेसाख्ता बहे मेरे आंसू, उस रास्ते को धो रहे थे, जहां से आपके फिर एक बार मेरे पास तक आ जाने का रास्ता आपके लिए निष्कंटक हो जाए? काका जी। आपके साथ रहने के विश्वास के चलते मैं मुतमईन हूं कि आप मुझे सुन रहे हैं। जी ये भी बताना है आपको कि ताबुभाई के रूप में आपके सबसे लाडले पोते का विवाह आने वाली 2 दिसंबर को होने जा रहा है। उस रात बहुत ठंडक रहेगी, आप आएंगे ना मुझे अपने आर्शीवाद और प्यार वाले दुशाला ओढ़ा कर ये कहने के लिए कि ‘मैं था, हूँ और हमेशा रहूँगा तुम्हारे लिए।’ मैं प्रतीक्षा करूँगा आपकी, क्योंकि आप हैं तो ही मैं हूँ। और यदि उस दुनिया से बैठकर आप मेरे लिए हौले से कह दें ‘बेटा, मैं तुम में ही तो हूँ’ फिर ये जीवन सफल हो जाएगा, बहुत याद आती है आपकी। नमन।