- हरीश फतेह चंदानी
पुलिस कप्तान हो तो ऐसा
राजधानी के पड़ोस के जिले में पुलिस अधीक्षक के तौर पर पदस्थ रहे 2010 बैच के एक आईपीएस अधिकारी राजेश चंदेल को ग्वालियर-चंबल संभाग के एक जिले में आज से 4 साल पहले भेजा गया था, ताकि वहां की आबो-हवा से परेशान होकर वे खुद ही लूप लाइन में जाने की सिफारिश करेंगे। लेकिन साहब ने वहां जाकर अपनी कार्यप्रणाली से सभी को अपना मुरीद बना लिया। इसकी वजह से सरकार से लेकर आम आदमी तक उनका तबादला नहीं चाहता है, लेकिन उस जिले के पुलिस कप्तान बनने की चाहत रखने वाले अब तक उन्हें हटाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। वैसे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर साहब का धीरे से तबादला तय माना जा रहा है, लेकिन यह भी तय है कि उनकी अब तक की कार्यप्रणाली को देखते हुए सरकार उन्हें किसी बड़े जिले की कमान सौंप सकती है। गौरतलब है कि वर्तमान समय में साहब जिस जिले में एसपी के तौर पर पदस्थ हैं, उस जिले में अपनी पसंद के अफसर को कुर्सी दिलाने के लिए कई दिग्गज लंबे समय से सक्रिय हैं। लेकिन अभी तक किसी की दाल नहीं गल पाई है।
…लेकिन साहब नहीं आए
प्रदेश के सबसे कमाऊ और सबसे विवादित विभाग की जिम्मेदारी संभालने वाले साहब का राजधानी से ऐसा प्रेम हो गया है कि वे यहां से निकलकर अपने विभाग के मुख्यालय में बैठने से परहेज कर रहे हैं। करीब 2 साल पहले साहब को प्रदेश के कमाऊ विभाग की कमान सौंपी गई थी, लेकिन साहब ग्वालियर-चंबल अंचल में स्थित विभाग के मुख्यालय में बैठने की बजाय फाइलें वहां से राजधानी बुलवा लेते हैं। अब साहब का कार्यालय दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है। कार्यालय का पूरा सामान भी शिफ्ट हो गया है और इंटरनेट, बिजली व बैठक व्यवस्था व्यवस्थित की जा रही है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि साहब अभी तक नहीं आए। बताया जाता है कि साहब भले ही मुख्यालय नहीं आते हैं, लेकिन यहां से रोजाना फाइलें भोपाल भेजी जाती हैं। इसके लिए बकायदा अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। विभाग के अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि 9 के बदले 90 खर्च क्यों किए जा रहे हैं।
बाघों के घर में घुसपैठ
एक तरफ सरकार बाघों के संरक्षण की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के नौकरशाह बाघों के घर में आशियाना बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसके लिए कायदे-कानून को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। इसी कड़ी में राजधानी भोपाल में बाघ क्षेत्र मेडोना में आशियाना बनाने के लिए आईपीएस अफसरों का एक वर्ग सक्रिय हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि आगामी कुछ वर्षों में रिटायर होने वाले आईपीएस अफसरों ने बाघ के घर में अपना आशियाना बनाने के लिए जमीन ढूंढ़ने के लिए दलालों को सक्रिय कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि दलालों ने अफसरों को बताया है कि अगर वे लोग एक पुलिस हाउसिंग सोसायटी का गठन कर उसका रजिस्ट्रेशन करा लेंगे, तो उन्हें आसानी से बाघ के घर के आसपास आशियाने के लिए जमीन मिल जाएगी। बताया जाता है कि दलाल की सलाह पर अफसरों ने सोसायटी रजिस्ट्रेशन कराने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
युवराजों के समर्थन में उतरे मंत्री
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से टिकट की जुगाड़ शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ ही उनके युवराज भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी ने पहले ही संकेत दे दिया है कि केवल कर्मठ और सक्रिय नेताओं को ही टिकट दिया जाएगा। पार्टी में परिवारवाद नहीं चलेगा। इस कारण कई नेता पुत्र राजनीति की जगह दूसरे काम-धंधे में लग गए हैं। वहीं जो नेतापुत्र अभी भी सक्रिय हैं, उनको टिकट देने का समर्थन करते हुए एक मंत्री ने मोर्चा संभाला है। उनका कहना है कि जो फुलटाइम राजनीति करते हैं, उनको टिकट मिलना ही चाहिए। इसके लिए उन्होंने कुछ नेता पुत्रों का नाम भी गिनाया है। ऐसे में एक बार फिर से नेतापुत्रों के मन में उत्साह भरा है। यहां बता दें कि जिस मंत्री ने नेता पुत्रों की वकालत की है, वे भी नेतापुत्र हैं और उनके पिताश्री प्रदेश सरकार की सर्वोच्च कुर्सी पर रह चुके हैं।
मोदी के पांच पसंदीदा मंत्रियों में शामिल हुए श्रीमंत
कांग्रेसी से भाजपाई बने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी के पसंदीदा मंत्रियों में शामिल हो गए हैं। इसकी वजह है उनका अपने विभाग को लेकर संसद में किया गया प्रदर्शन। दरअसल जब भी मौका आया तब उनके द्वारा पूरी तैयारी के साथ अपने विभाग का पक्ष ऐसा रखा गया की विपक्षी दल कांग्रेस के सवाल उठाने वाले नेताओं तक को चुप्पी साधने पर मजबूर होना पड़ा। इसकी वजह से उन्हें मोदी-2 सरकार में संसद के भीतर अपने विभाग के पक्ष रखने में सर्वश्रेष्ठ पांच मंत्रियों की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। उनके द्वारा एयर इंडिया के मामले में दो संसद सदस्यों द्वारा उठाये गये सवाल पर लोकसभा में बहस के दौरान बताया गया कि किस तरह से 15 करोड़ के मुनाफे में चल रही एयर इंडिया 2005 से लेकर 2014 के बीच 85 हजार करोड़ के घाटे में पहुंच गई। उनके द्वारा इसका विवरण सिलसिलेवार दिए जाने से कांग्रेस पक्ष के सांसदों में हड़कंप मच गया। इसकी वजह रही इस मामले में पूरी तरह से पूर्व की मनमोहन सरकार को कटघरे में लाकर खड़ा कर देना।