आम चुनाव और यादव की खास चुनौती

  • अवधेश बजाज कहिन
मोहन यादव

(गतांक से आगे)
मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव ने कुछ और भी अलग पहचान कायम की हैं। मसलन,  वह कम बोलते हैं, लेकिन उनका काम लगातार बोल रहा है। अपने लगभग सभी पूर्ववर्तियों से इतर डॉ. यादव आपको मीडिया के तई निश्चित ही किसी चर्चित ‘कैमरा बॉय’ के रूप में नहीं दिखेंगे, किंतु कार्यकाल संभालने के बाद से इस बहुत कम अंतराल में ही यादव किसी ‘साइलेंट वर्कर’ की तरह बगैर किसी प्रचार की रोशनी और प्रसार के कृत्रिम आभामंडल से बिलकुल परे अपनी एक विशिष्ट परछाई स्थापित करने में सफल रहे हैं। यकीनन यह सब होते हुए काफी कम समय हुआ है, लेकिन तुलनात्मक विश्लेषण करें तो इसके बहुत अधिक उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं। मिसाल के तौर पर यदि यह तय किया गया है कि प्रदेश में सभी जगह लोगों को एयर एंबुलेंस की मुफ्त सेवा मिलेगी, तो यह एक से अधिक तरीके से गौरतलब है। पहली बात यह कि इसमें सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से बहुत बड़ा नया कदम निहित है। दूसरा यह भी कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयुष्मान योजना का ‘ठोस एक्सटेंशन’  भी है। डॉ. यादव की इस घोषणा ने गरीबों के लिए सरकार के स्तर पर इलाज के प्रबंधों को एक नया रास्ता दिखाने का काम किया है। तीसरा पक्ष यह भी कि इस और इस तरह के और कार्यक्रमों के माध्यम से डॉ. मोहन यादव ने वर्तमान समय के राजनीतिक स्लोगन ‘डबल इंजन की सरकार’ को मध्यप्रदेश में साकार रूप में और व्यावहारिकता प्रदान कर दी है।  बात केवल यहीं तक सीमित नहीं। यदि शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना बीते साल के अंतिम दिनों तक केवल ‘चुनाव मैनेजमेंट’ के रूप में लोकप्रियता और विश्वसनीयता के लिहाज से कुछ ‘हल्केपन’ के नजदीक आ गयी थी, तो इसी योजना को और भी ठोस रूप से जारी रखने के माध्यम से डॉ. मोहन यादव ने यह जता दिया है कि हर स्तर पर भाजपा की रीति-नीति को आगे ले जाने में उनका पूरा विश्वास है।  वर्ष 1956 में अपनी स्थापना से लेकर अब तक मध्यप्रदेश ने जो भी सियासी घटनाक्रम देखे हैं, उन और उनके समकक्ष वाले मामलों में डॉ. मोहन यादव ने अनेक अर्थ में नए मापदंड की तरफ सहसा ही सभी का ध्यान खींचा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इन सारी प्रक्रियाओं और गतिविधियों के बीच डॉ. यादव अपनी पहली परीक्षा में कितना सफल हो पाते हैं। बात लोकसभा चुनाव की हो रही है।
जिनको लेकर यादव की चुनौती बहुत बड़ी है। क्योंकि ,राज्य की 30 में से 29 लोकसभा सीटों पर पहले ही भाजपा काबिज है। तो जहां मामला अधिक से अधिक एकलौती एक और सीट पर सफलता प्राप्त करने की हो, वहां उपलब्धि के हिसाब से किसी बहुत धमाकेदार तत्व  की कम ही गुंजाइश रह जाती है। हाँ, बात तब है, जब यह धमाका पहले से खींची हुई लकीर से अलग बहुत बड़ी लकीर स्थापित कर देने की हो। डॉ. यादव कई मामलों में लकीर के फकीर वाली बात से आगे साबित हो चुके हैं, अब देखना यह है कि देश के आम चुनाव में वह अपने कामकाज से किस तरह खुद को बहुत खास साबित कर पाते हैं।

Related Articles