बिहाइंड द कर्टन/डिप्टी कमिश्नर पर कसा कानून का शिकंजा

  • प्रणव बजाज
अतिबल सिंह यादव

डिप्टी कमिश्नर पर कसा कानून का शिकंजा
ग्वालियर नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर के पद पर पदस्थ राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर अतिबल सिंह यादव सहित उनके परिवार पर कानून का शिंकजा कस रहा है। इसकी वजह बनी है उनकी बहू। बहू ने अपने सुसराल वालों पर दहेज प्रताड़ना से लेकर मारपीट और धमकाने तक का प्रकरण दर्ज करा दिया है। यह एफआईआर उनकी छोटी बहू रेखा ने दर्ज कराई है। इसमें आरोप लगाया गया है की उसे यादव सहित उनके बेटे, पत्नी और बड़ी बहू 20 लाख रुपए मायके से लाने के लिए लगतार प्रताड़ित कर रहे थे। पैसे नहीं लाने पर उसे सुसराल न आने के लिए धमका रहे हैं। रेखा का आरोप है की मांग पूरी नहीं करने पर भूखे रखना, घर की बिजली बंद कर खुद कहीं चले जाना और कई तरह से प्रताड़ित किया जाता है। ग्वालियर निवासी रेखा यादव खुद पेशे से इंजीनियर हैं। उसने इलेक्ट्रिकल्स इंजीनियरिंग की है। उसके पिता एडवोकेट हैं। एक रिश्तेदार के बताने के बाद रेखा की शादी 30 जून 2020 को नगर निगम उपायुक्त अतिबल सिंह यादव के बेटे अरुण यादव के साथ हुई थी। अरुण खुद एमबीबीएस कर चुके हैं।

एक दूसरे के गढ़ों पर लगी नजर
प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों में इन दिनों तैयारियों जारी हैं। इस बीच इस बार दोनों ही दलों के नेताओं में एक नया टें्रड दिखना शुरू हो गया है। यह नेता न केवल अपनी पार्टी में बल्कि इलाके के भी क्षत्रप माने जाते हैं। खास बात यह है की यह नेता पार्टी के बहुमत के आंकड़े की जगह परस्पर विरोधी क्षत्रपों को निपटाने पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। कांग्रेस की तैयारी के संकेत हैं कि उसे प्रदेश में चाहे जितनी सीटें मिलें, लेकिन चंबल-ग्वालियर अंचल की अधिकांश सीटें जीतनी चाहिए, खासकर केंद्रीय मंत्री श्रीमंत प्रभाव वाली। इसकी वजह है श्रीमंत और उनके समर्थकों द्वारा दलबदल कर सरकार गिराना। उधर, श्रीमंत और पार्टी के कुछ नेताओं का पूरा फोकस कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह के गढ़ों पर बना हुआ है। वे चाहते हैं कि भाजपा को दूसरे अंचलों में भले कम सीटें मिलें लेकिन कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह के गढ़ों में भाजपा का परचम दिखना चाहिए। साफ है, कटुता इतनी बढ़ गई कि दलीय प्रतिस्पर्द्धा ने आपसी प्रतिशोध का स्थान लेना शुरू कर दिया है।

विभागीय मंत्री की ओबीसी मामले से दूरी चर्चा में
मध्यप्रदेश में बीते कई माह से सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी विवाद में कांग्रेस व भाजपा के आला नेता से लेकर मंत्री तक हमलावर बने हुए हैं , लेकिन इस पूरे मामले से विभाग के मंत्री रामखेलावन पटेल ने पूरी तरह से दूरी बना रखी है। शायद प्रदेश के वे ऐसे पहले मंत्री हैं , जिनके विभाग को  लेकर भाजपा के दूसरे मंत्री ही सार्वजनिक रुप से बयान देते हैं और विपक्ष पर भी हमला करते हैं। पटेल की इस विवाद से दूरी को लेकर कई तरह के अब मायने निकाले जाने लगे हैं। खास बात यह है की इस समय प्रदेश में भाजपा के कई मंत्री आगे निकलने की होड़ में दूसरे विभागों को लेकर बयान जारी करने में पीछे नही रह रहे हैं। इसके चलते कई लो-प्रोफाइल मंत्रियों को मीडिया के सामने आने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है। दरअसल इसी तरह का कुछ दिल्ली में भी चल रहा है। कहा जा रहा है की उसका असर मप्र  की सरकार में भी तेजी से हो रहा है। इसी तरह का हाल हाल ही में निकाय चुनाव के अध्यादेश को लेकर भी रह चुका है।

कांग्रेस के दिग्विजयी
कहते हैं की राजनीति में किसी का भी एकसा वक्त नहीं रहता है , लेकिन एक नेता इसके विपरीत साबित हो रहे हैं। यह नेता है कांग्रेंस के राज्यसभा सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री  दिग्विजय सिंह। उनके नाम का शाब्दिक अर्थ है संसार पर धाक जमाना या विजेता होना। दिग्विजय कांग्रेस में ऐसे ही नेता के रुप में उभरे हैं। भले ही उनके तीखे बयानों की वजह से उनका जनाधार कम होता जा रहा है , लेकिन इसके उलट पार्टी में उनका जलवा बढ़ता जा रहा है। उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंच चुके सिंह पार्टी की कई महत्वपूर्ण समितियों में शामिल किए गए हैं। यही नहीं भले ही मप्र में कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी टीम में पूरी तरह से सिंह समर्थकों का ही कब्जा दिखता है। वे अब प्रदेश की जगह केन्द्रीय स्तर पर पार्टी में इस समय सबसे ताकतवर क्षत्रप बनकर उभर चुके हैं। कांग्रेस में अघोषित तौर पर नंबर दो वाली भूमिका में कभी सोनिया गांधी के सचिव जार्ज विसेन्ट और उसके बाद अहमद पटेल की आसनी पर अब दिग्विजय सिंह बैठे दिखाई देने लगे हैं। अपने नाम के अनुरूप दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में सत्ता की धुरी अपने इर्द गिर्द ही समेट रखी है।

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