बा खबर असरदार/बंगला नहीं बन पाएगा न्यारा

  • हरीश फतेह चंदानी
बंगला

बंगला नहीं बन पाएगा न्यारा
प्रदेश के माननीयों और अफसरों के बीच अपने सरकारी बंगले को न्यारा बनाने की प्रतिस्पर्धा सी लगी रहती है। इस कारण राजधानी में सरकारी बंगलों पर तोड़फोड़ और नवनिर्माण का काम चलता रहता है। अपने बंगले को न्यारा बनाने के लिए 1994 बैच के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इच्छा जाहिर की। साहब की इच्छा पर पीडब्ल्यूडी वालों ने साहब की मंशानुसार निर्माण कार्य का प्रस्ताव बनाकर वित्त विभाग को भेज दिया। लेकिन वित्त विभाग ने फाइल रोक दी है। कारण क्या है यह तो साहब और वित्त विभाग ही बता सकते हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि इस बंगले पर पहले भी लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। 2019 से पहले यह बंगला प्रदेश के एक कद्दावर मंत्री के पास था, फिर एक दूसरे मंत्री के पास आ गया। तब इस पर 75 लाख रुपए खर्च किए गए थे। फिर सत्ता परिवर्तन के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी को यह बंगला मिल गया। उन्होंने भी अपनी मंशानुसार निर्माण करवाया। अब जिन साहब को मिला है वे भी इसे न्यारा बनाना चाहते हैं, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई है।

कुछ तो बात है
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों 1987 बैच के एक आईपीएस अधिकारी की खूब चर्चा हो रही है। वैसे ये साहब साहित्यिक वीथिका में तो हमेशा चर्चा में रहते ही हैं, लेकिन इन दिनों अपने नवाचारों के कारण चर्चा में हैं। गौरतलब है कि साहब पुलिस की सबसे बड़ी कुर्सी के दावेदार थे, लेकिन बात नहीं बन पाई। लेकिन साहब उन लोगों में से नहीं हैं, जो जल्दी हार मान जाएं। इसलिए साहब ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है और वे सरकार की नजर में बने रहने के लिए कई प्लान तैयार कर रहे हैं। पहले भी साहब ने कई ऐसे कार्यक्रम किए हैं, जिससे सरकार की आंखों के नूर बने रहें। साहब की टीम इनोवेटिव आइडिया वाले इवेंट प्लान करती है जिससे सरकार खुश हो सकें। अब उन्होंने नवाचार पर आधारित कुछ ऐसे इवेंट प्लान किए हैं, जिसकी चर्चा पीएचक्यू में शुरू हो गई हैं कि ये सब सरकार की नजर में चढ़ने  के लिए ही हो रहा है। साहब के ये नवाचार क्या हैं यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन साहब की कवायद कई अफसरों को परेशान कर रही है।

करे कोई भरे कोई
यह कहावत इन दिनों संस्कारधानी से लेकर मंत्रालय तक में चर्चा का विषय बनी हुई है। चर्चा इस बात की हो रही है कि वर्तमान में महाकौशल के बड़े जिले की कमान जब 2009 बैच के आईएएस अधिकारी को सौंपी गई तो उन्हें कलेक्टर की कुर्सी के साथ 68 हजार रुपए का कर्ज भी मिला। दरअसल कलेक्टर बंगले का कनेक्शन अब भी पूर्व कलेक्टर 2008 बैच के आईएएस अधिकारी के नाम पर है। ट्रांसफर से पहले उन्होंने बिजली बिल का पेमेंट कर दिया था। इसके बाद जिले की कमान संभालने वाले 2010 बैच के आईएएस अधिकारी ने कनेक्शन अपने नाम ट्रांसफर ही नहीं कराया और 68 हजार रुपए का बिल बकाया छोड़कर वे चलते बने। साहब अपने दो साल के कार्यकाल में नियम-कायदे अपने हिसाब से चलाते रहे। बंगले में रहते हुए उन्होंने बिजली तो खूब खर्च की , लेकिन जेब से बिल के पैसे नहीं निकले। दो महीने पहले बकाया बिजली बिल के मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने आनन-फानन में 41 हजार जमा करा दिए। इसके बाद फिर भूल गए। मार्च का बंगले का जो बिल आया है, उसमें 4 हजार रुपए मौजूदा और 68 हजार रुपए पुराना बकाया दर्शाया गया है। बिल देखकर नए वाले साहब चकरा गए हैं।

कलेक्टर के बिगड़े बोल
2011 बैच के एक प्रमोटी आईएएस अधिकारी के बिगड़े बोल राज्य मंत्रालय में चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जाता है कि आईएएस बनने से पहले साहब शालीन स्वभाव के धनी थे। लेकिन आईएएस बनने के बाद उनके स्वभाव में इस कदर परिवर्तन आया कि वे आपे से बाहर हो जाते हैं। साहब का गुस्सा नाक पर सवार रहता है। इन दिनों साहब मालवांचल के एक जिले में कलेक्टर हैं। साहब गत दिनों निरीक्षण करने निकले थे, तो शहर की खराब सड़कों को देखकर अपना आपा खो बैठे और कलेक्टरी का रौब दिखाते हुए दो इंजीनियर पर भड़क गए। नगर पालिका की महिला इंजीनियर पर भड़कते हुए कलेक्टर ने कहा कि क्या व्यापमं से फर्जी नौकरी लगी है। तुम्हें इंजीनियरिंग की जरा भी नॉलेज नहीं। वहीं एक दूसरे इंजीनियर को लताड़ लगाते हुए कलेक्टर ने कहा कि तुम इंजीनियर हो भी की नहीं, अर्जी फर्जी डिग्री लेकर आ गए। उन्होंने कर्मचारियों से इंजीनियर के बेइज्जत करते हुए कहा कि गुटखा चबाए जा रहा है नालायक, यदि काम नहीं कर रहा है तो इसे बंद कर के 10 जूते लगाओ यही इलाज है। साहब के बिगड़े बोल सुनकर सभी लोग हतप्रभ रह गए।

तिकड़ी को नई भूमिका का इंतजार
कांग्रेस के तीन कद्दावर नेताओं को पार्टी में अपनी भूमिका का लंबे समय से इंतजार है। तीनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं और केंद्र में मंत्री भी। ये नेता है कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी और अरुण यादव। भूरिया अभी विधायक हैं और यदि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ते हैं तो उनके लिए कुछ संभावना है। वहीं यादव दोबारा अध्यक्षी पर नजर गड़ाए हुए हैं। विगत दिनों आलाकमान से मुलाकात के बाद उन्होंने अचानक अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। उनकी यह सक्रियता चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर आलाकमान ने यादव को ऐसा कौनसा मंत्र दिया है जिसके कारण उन्होंने कांग्रेस का झंडा बुंलद करना शुरू कर दिया है। वैसे यादव एक बार फिर से खंडवा से लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका तलाश रहे हैं, जो 2024 में ही संभव है। रही बात पचौरी की तो कांग्रेस के इस कद्दावर नेता की भूमिका अब दिल्ली के बजाय भोपाल में ही तय होती नजर आ रही है और इसमें भी मुख्य भूमिका कमलनाथ को ही अदा करना है। अब देखना यह है कि तिकड़ी को क्या काम मिलता है।बा खबर असरदार/बंगला नहीं बन पाएगा न्यारा

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