बा खबर असरदार/राजनीति के शिकार हो गए साहब

  •  हरीश फतेह चंदानी

राजनीति के शिकार हो गए साहब
प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री के गृह जिले में नगर निगम की कमान संभालने वाले एक साहब राजनीति के शिकार हो गए।  नगरीय निकाय क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों के लिए सरकार कई बार उनकी पीठ थपथपा चुकी थी। शायद इसी खुशफहमी में साहब मौके की नजाकत भांप नहीं पाए और अपनी कुर्सी गंवा बैठे।  दरअसल हुआ यह कि शहर में हितग्राहियों को आवास योजना के चेक बांटे जाने थे।  साहब राजनीतिक हवा का रूख भांपे बिना ही पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले पर पहुंच गए और हितग्राहियों को आवास योजना के चेक बंटवाने लगे। यह बात सत्ता पक्ष के स्थानीय नेताओं को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने तत्काल इसकी सूचना प्रदेश के कद्दावर नेताओं तक पहुंचा दी। फिर बात आगे बढ़ी और साहब को आनन फानन में नगर निगम से हटाकर भोपाल अटैच कर दिया गया है। बता दें की जिस जिले से साहब का हटाया गया है, उस जिले में सत्तारूढ़ पार्टी का जनाधार कमजोर है। हालांकि पंचायत और निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को संजीवनी मिली है।

कलेक्टर हो तो ऐसे
ग्वालियर-चंबल अंचल के एक जिले के कलेक्टर इन दिनों प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। इसकी वजह यह है की साहब इन दिनों जिले में तहसील स्तर पर जनसुनवाई दरबार लगा रहे है। साहब के दरबार में लोगों की समस्याओं का तत्काल निराकरण भी किया जा रहा है। इससे जिले के लोग काफी खुश हैं। लोग यह कहने लगे हैं कि कलेक्टर हो तो ऐसा। दरअसल, 2013 बैच के ये आईएएस अधिकार जहां भी पदस्थ रहे हैं, वहां अपने नवाचारों के कारण चर्चा में रहे हैं।  बताया जाता है कि विगतदिनों साहब ने विपक्ष की पार्टी के एक कद्दावर नेता की तहसील में दरबार लगाया था। वहां पीड़ितों की फरियाद सुनी। आवेदकों ने कलेक्टर को अपनी पीड़ा सुनाई और उसके समाधान को लेकर तत्काल संबंधित विभाग के अफसरों को निर्देश भी दिए।  सुनवाई से लौटकर जब लोग अपने गांव पहुंचे तो वहां उनकी वर्षों पुरानी समस्याओं का समाधान करने के लिए संबंधित विभाग के लोग खड़े थे।

डैमेट कंट्रोल की जिम्मेदारी
देश और प्रदेश में इन दिनों आदिवासी राजनीति का केंद्र बने हुए हैं। खासकर प्रदेश में इस वर्ग को साधने के लिए सारे उपक्रम किए जा रहे हैं। लेकिन आदिवासी बहुल एक जिले में प्रशासनिक अधिकारियों की लालफीताशाही के कारण सरकार का बड़ा  नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में सरकार ने जिले में हुए डैमेज को कंट्रोल करने के लिए 2016 बैच के आईपीएस अफसर कोे बड़ी उम्मीद के साथ  जिले की कमान सौंपी है। बता दें कि पिछले दिनों जिले के तत्कालीन एसपी का आॅडियो वायरल हुआ था। इसमें वे पॉलीटेक्निक के छात्रों को गालियां दे रहे थे। आॅडियो की पुष्टि के बाद उन्हें तत्काल  हटा दिया गया था। बताया जाता है कि पार्टी को फीडबैक मिला है की पूर्व एसपी के कारण जिले में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति जनता में आक्रोश बढ़ा है। इसलिए सरकार ने जनता में पनपे आक्रोश का मंद करने के लिए युवा आईपीएस को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है।

मंत्री-एसपी में पटरी नहीं
ग्वालियर-चंबल अंचल के एक जिले के एसपी साहब की एक मंत्री से तनिक भी पटरी नहीं बैठ रही है। दरअसल, मंत्रीजी अपनी अक्खड़ प्रवृत्ति के कारण पहले से ही कुख्यात हैं।  वे जिस विभाग के मंत्री हैं, उस विभाग के अफसरों को तो उनके द्वारा चकरघिन्नी  बना ही रखा है । यही नहीं वे प्रशासनिक मुखिया से भी 2-2 हाथ कर चुके हैं। मंत्रीजी से वैसे तो शासन  भी परेशान है, लेकिन कोई करे तो क्या करे, क्योंकि प्रदेश में सरकार बनवाने में उनका और उनके आका का बड़ा योगदान रहा है। इसलिए मंत्री जी अपने अहसान की भरपाई के लिए कुछ भी करने लगते हैं। अब स्थिति यह है कि मंत्री जी के जिले में जो भी अधिकारी पदस्थ होता है, वे उसे अपने गुलाम की तरह फेंटते रहते हैं।  बताया जाता है कि 1992 बैच के जिस प्रमोटी आईपीएस अफसर को मंत्रीजी के जिले की कमान सौंपी गई है, वे वहां से प्रस्थान करने का मन बना चुके हैं। उन्होंने अपने साथियों से कहना शुरू कर दिया है कि यहां से मेरा मन भर गया है। मुझे अब यहां नहीं रहना है। अब देखना यह है कि एसपी साहब की मंशा पूरी होती है या नहीं।

आंख बंद करके ही सुखानुभूति
मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स कॉपोर्रेशन ने नई भंडारण नीति बनाई है। कार्पोरेशन का दावा है कि इससे वेयरहाउस संचालकों के दिन बहुर जाएंगे। उनकी बचत में इजाफा होगा। इसलिए उनको आंखें बंद करके नई नीति को अपना लेना चाहिए। लेकिन वेयर हाउस संचालक हैं कि आंखें बंद करने को तैयार नहीं हैं। उनका मानना है कि नई नीति में दो महीने के वादे के साथ आधे किराए का प्रविधान है। उनको वह किराया स्वीकार करने की खूबियां गिनवाई जा रही हैं, जो 2012 में हुआ करता था। ऐसे में आंख बंद करके ही सुखानुभूति हो सकती है।  वेयरहाउस वालों में नई नीति को लेकर यह भय भी समा रहा है कि इसके चलते उनके वेयरहाउस बिकने की कगार पर पहुंच जाएंगे। इनसे मिलने वाला किराया बैंक की किस्त भरने लायक भी नहीं रहेगा। इनका एक रंज, इस बात को लेकर भी है कि कार्पोरेशन निजी क्षेत्र की एजेंसी पीएमएस को इतना तवज्जो क्यों दे रही है?

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