बिच्छू डॉट कॉम। ज्योतिष की रत्न शाखा में चन्द्रमा के लिए मोती को निश्चित किया गया है जिसे हम पर्ल नाम से जानते हैं। मोती एक प्रकार से चन्द्रमा का प्रतिरूप होता है। इसमें चंद्रमा के गुण विद्यमान होते हैं। मोती श्वेत रंग की आभा से पूर्ण शीतल प्रभाव रखने वाला एक सौम्य प्रवृत्ति का रत्न है। ज्योतिषीय दृष्टि में चन्द्रमा को मजबूत करने के लिए धारण किया जाता है। कुंडली में चन्द्रमा कमजोर या पीड़ित होने पर मोती धारण करने की सलाह दी जाती है। मोती धारण करने से मन एकाग्र होता है। नकारात्मक सोच, मानसिक तनाव जैसी समस्याओं में भी मोती धारण करने से लाभ होता है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को मोती धारण नहीं करना चाहिए। मोती सभी व्यक्तियों के लिए शुभ हो ऐसा जरुरी नहीं है। अनेक स्थितियों में मोती व्यक्ति के लिए मारक रत्न का कार्य भी कर सकता है और इससे स्वास्थ्य कष्ट, बीमारियां, दुर्घटनाएं और संघर्ष बढ़ सकता है। ऐसे में बिना विशेषज्ञ की सलाह के मोती कभी भी धारण ना करें। कुंडली में चन्द्रमा कमजोर होने पर मोती धारण की सलाह केवल उन्ही व्यक्तियों को दी जाती है जिनकी कुंडली में चन्द्रमा शुभ कारक ग्रह होता है। इससे कुंडली में चन्द्रमा की शक्ति बहुत बढ़ जाती है। इस स्थिति में यदि चन्द्रमा कुंडली का अशुभ फल देने वाला ग्रह हुआ तो मोती पहनना व्यक्ति के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होगा। यदि कुंडली में चन्द्रमा शुभ कारक ग्रह है तो निःसंदेह मोती धारण करने से बहुत शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
समान्यतः मेष, कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न के जातकों के लिए मोती धारण शुभ है। इसके अलावा वृष, मिथुन, कन्या, तुला और मकर लग्न के लिए मध्यम है अतः इन लग्नों में भी विशेषज्ञ से परामर्श के बाद ही मोती धारण किया जा सकता है, परंतु सिंह, धनु और कुम्भ लग्न की कुंडली होने पर मोती कभी नहीं धारण करना चाहिए अन्यथा यह हानिकारक हो सकता है और इसके विपरीत परिणाम भी मिल सकते हैं।
व्यक्ति की आयु, भार तथा कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति का पूरा विश्लेषण करने पर मोती के भार को निश्चित किया जाता है। हालांकि स्थूल रूप से 25 वर्ष से कम आयु होने होने पर सवा पांच रत्ती, 25 से 50 वर्ष आयु के मध्य सवा सात रत्ती तथा 50 वर्ष से ऊपर सवा नौ रत्ती वजन का मोती धारण किया जाता है। कुंडली में चन्द्रमा कितना कमजोर या पीड़ित स्थिति में है, इससे भी मोती की क्वांटिटी पर प्रभाव पड़ता है।
मोती धारण विधि
मोती को चांदी की अंगूठी में बनवाकर सीधे हाथ की कनिष्ठा या अनामिका उंगली में धारण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सफ़ेद धागे या चांदी की चेन के साथ लॉकेट के रूप में गले में भी धारण किया जा सकता है। मोती को सोमवार के दिन प्रातःकाल सर्वप्रथम गाय के कच्चे दूध एवं गंगाजल से अभिषेक करके धूप-दीप जलाकर चन्द्रमा के मन्त्र ‘ॐ सोम सोमाय नमः’ का तीन माला जाप करना चाहिए। फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मोती धारण करना चाहिए।