
- कृषि कल्याण बोर्ड दो बार और विभागीय मंत्री एक बार भेज चुके हैं प्रस्ताव…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र के साथ ही मप्र की सरकार भी चाहती है कि जैविक खेती के रकबे में तेजी से वृद्धि होना चाहिए। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी लगातार जैविक व गो आधारित खेती को बढ़ावा देने का आव्हान कर रहे हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा कृषि महकमा बन रहा है, जो कई बार प्रस्ताव देने के बाद भी जैविक बोर्ड के गठन की प्रक्रिया शुरू करने को ही तैयार नही है।
खास बात यह है कि विभाग के पास अब तक इसके लिए तीन प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं, लेकिन वह हर प्रस्ताव पर कुंडली मारकर बैठ जाता है। इसकी वजह से प्रदेश में इस बोर्ड का गठन ही नहीं हो पा रहा है। ऐसे में प्रदेश में कैसे जैबिक खेती का रकबा बढ़ पाएगा यह सवाल बना हुआ है। दरअसल प्रदेश सरकार ने मप्र में अगले साल 2022-2023 के लिए एक लाख हेक्टेयर में जैविक खेती का रकबा बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। उधर इस मामले में कृषि कल्याण बोर्ड का दावा है कि राज्य जैविक बोर्ड के गठन के लिए दो से तीन बार बैठक हो चुकी है। प्रक्रिया तेजी से चल रही है, जबकि कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय यह कहते हुए पल्ला झाड़ रहा है कि उसका इस विषय पर सीधा कोई लेनादेना नही है।
मंत्री का प्रस्ताव भी नहीं आ रहा काम
किसानों को जैविक खेती के लिए पंजीकृत करने वाली एजेंसी मप्र राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था द्वारा दो बार जैविक बोर्ड गठन के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इसके अलावा कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग को नोटशीट भेजी, पर विभाग के जिम्मेदार बोर्ड गठन को लेकर सक्रियता दिखाने को ही तैयार नहीं हैं। इसके उलट उत्तराखंड में जैविक कृषि विधेयक-2019 लाने वाला पहला राज्य है। हालांकि, सिक्किम पहला जैविक राज्य है, लेकिन वहां एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर इनपुट एंड लाइवस्टॉक फीड रेगुलेटरी एक्ट-2014 के तहत काम हो रहे हैं।
बोर्ड गठित होने से यह होगा फायदा
प्रदेश में जैविक बोर्ड होता तो केंद्र व राज्य सरकार का फंड सीधे मिलता। अभी कृषि और उद्यानिकी में बंट जाता है। लोगों को शुद्ध फल, सब्जी, अनाज और दलहन व तिलहन जैसे खाद्य पदार्थ मिलने लगते हैं। जैविक उत्पादों की मांग अधिक होने से निर्यात बढ़ता है, जिसकी वजह से आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है। उर्वरकों के आयात में कमी आती और सरकार को देश में इस पर सब्सिडी भी नहीं देना पड़ती है।
15 जिलों में बढ़ रहा है रकबा
मप्र में 2011 में जैविक कृषि के लिए नीति बनाने के बाद प्रयास तेज हुए हैं, लेकिन पूरी तरह से इस पर काम अब भी नहीं हो पाया है। अब किसान अपने स्तर पर ही 15 जिलों में खेती का रकबा बढ़ा रहे हैं। इनमें आलीराजपुर, झाबुआ, खंडवा, मंडला, डिंडौरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, कटनी, उमरिया, अनूपपुर, उमरिया, दमोह, सागर, सीहोर, श्योपुर और भोपाल जिले शामिल हैं।