
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश के दो शहरों में शामिल भोपाल व इंदौर में भले ही पुलिस आयुक्त प्रणली लागू हुए तीन दिन हो गए हैं, लेकिन अब तक इस प्रणाली के हिसाब से काम शुरू नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह है रिक्त पद और संसाधनों का अभाव। नई प्रणाली लागू होने के बाद अब पुलिस अफसरों के पास दंड देने का अधिकार भी आ गए हैं। इसके लिए उन्हें तत्काल दो दर्जन डायस के साथ ही उसके लिए जगह की भी जरूरत है।
इन व्यवस्थाओं के अभाव में अभी नई प्रणाली को पूरी तरह से लागू करने में कई दिनों का समय लग सकता है। उधर पुलिस अफसरों को न्यायालयीन प्रक्रिया का भी अनुभव नहीं है, लिहाजा उन्हें उसके तौर तरीके भी सिखाए जा रहे हैं। इसके लिए प्रशिक्षण देने के लिए चार दिन का समय तक किया गया है। दरअसल वर्तमान में जिन दफ्तरों में पुलिस अफसर बैठते हैं उनमें इतनी जगह ही नहीं हैं कि डायस लगाए जा सकें। डायस के लायक जगह बना भी ली जाए तो जरूरी स्टाफ के बैठने की मुश्किल बनी रहेगी।
इस वजह से दंड के अधिकार मिलने वाले पुलिस अफसरों के लिए नए कार्यालय भवन की व्यवस्था करना बेहद मुश्किल बन सकता है। दरअसल पुलिस विभाग के आईजी, डीआईजी और एसपी से लेकर सीएसपी तक के जो पुराने दफ्तर हैं, उनमें ज्यादातर दफ्तरों के अंदर डायस बनाने की जगह नहीं है। चूंकि पुलिस अफसरों को बैठने और लोगों की फरियाद सुनने के लिए एक जगह चाहिए थी, लिहाजा उसके लिए एक-एक कमरे अफसरों को दिए गए थे। कई सीएसपी के पास तो ढंग से बैठने तक की जगह नहीं है। इसका अंदाजा भी नए पुलिस कमिश्नर को है। यही वजह है कि आमद के साथ उन्होंने मैदान की तरफ रुख किया है। उनके द्वारा
बीते रोज कई दफ्तरों में जाकर व्यवस्थाएं देखी गई हैं।
इस प्रणाली को 9 दिसंबर से लागू किया जा चुका है। इसके साथ ही नए पुलिस आयुक्तों की भी पदस्थापना करते हुए मौजूदा अफसरों के पदनाम भी बदल दिए गए हैं। भोपाल में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के साथ ही राज्य सरकार ने 54 पद स्वीकृत किए हैं। इन स्वीकृत पदों में से करीब तीस से ज्यादा पद रिक्त हैं। इनमें एडिशनल कमिश्नर से लेकर से लेकर असिस्टेंट कमिश्नर तक के पद शामिल हैं। वर्तमान में एक-एक कमिश्नर और एडिशनल कमिश्नर के साथ दो डिप्टी पुलिस कमिश्नर तैनात हैं। पांच एडिशनल डिप्टी पुलिस कमिश्नर और एक दर्जन असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर तैनात किए गए हैं। कहा जा रहा है कि स्वीकृत पदों में से संसाधनों को ध्यान में रखकर ही अभी तैनाती नहीं की गई है। फिलहाल अफसरों की संख्या बढ़ने के साथ ही वाहनों से लेकर स्टाफ तक की संख्या भी बढ़ेगी।
भोपाल-इंदौर में कलेक्टर का घटेगा रुतबा
नई प्रणाली लागू होने से अब भोपाल व इंदौर कलेक्टर का रुतबा कम हो गया है। इसकी वजह है उनके अधिकारों में कटौति होना। पूर्व आईएएस अफसरों का सपना इन दोनों ही जिलों के कलेक्टर बनने का रहता है। इसको लेकर वे काफी प्रयास भी करते थे, लेकिन मौका बहुत कम को ही मिल पाता था। अब भोपाल-इंदौर में कलेक्टर की पदस्थापना इतनी महत्वपूर्ण नहीं रही है। जितनी पुलिस आयुक्त प्रणाली से पहले हुआ करती थी।
कलेक्टर के कार्यक्षेत्र भी कम हुए हैं और पॉवर भी घटा है। ऐसा अब पूर्व सीनियर आईएएस अफसर मानने लगे हैं। उनका कहना है कि व्यावसायिक दृष्टि से इंदौर को मिनी मुंबई कहा जाता है और कलेक्टर की पोस्टिंग पाना आईएएस की प्राथमिकता में रहता है। कई आईएएस ऐसे भी रहे हैं, जो इंदौर कलेक्टर बनने के बाद सीएस भी बने, लेकिन इंदौर-भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने से कलेक्टरों का रुतबा कम हो गया है। भोपाल में कलेक्टर को वीआईपी के अलावा बाकी जिम्मेदारियां संभालनी होती है।
चार दिन का प्रशिक्षण
पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के साथ ही अब जिला बदर और पैरोल के केसों की सुनवाई पुलिस करेगी, लेकिन कलेक्टोरेट में चल रहे पुराने जिलाबदर और पैरोल के केसों की सुनवाई अभी कलेक्टर ही करेंगे। अब जो भी नए जिला बदर और पैरोल के केस दर्ज होंगे, उनकी सुनवाई पुलिस करेगी। इस सुनवाई के लिए पुलिस के लिए आज से चार दिन की ट्रेनिंग शुरू कर दी गई है। यह ट्रेनिंग पुलिस कमिश्नर कार्यालय (नया पुलिस कंट्रोल रूम) में कलेक्ट्रेट के अफसरों द्वारा दी जा रही है। वर्तमान में कोर्ट मुंशी व रीडर कलेक्ट्रेट में कोर्ट की व्यवस्था देखते है। कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद कोर्ट मुंशी की वापसी होगी। कुछ समय तक रीडरों की मदद ली जाएगी।
70 जिला बदर के मामलों की चल रही सुनवाई
वर्तमान में कलेक्टर अविनाश लवानिया की कोर्ट में 70 जिला बदर के मामलों में सुनवाई चल रही है। एक जनवरी से अभी तक 232 बदमाशों को कलेक्टर द्वारा जिला बदर किया जा चुका है, जबकि 40 से ज्यादा पैरोल के मामलों में पुलिस की रिपोर्ट आने का इंतजार है। इधर, जूलूस, धरना-प्रदर्शन, कथा समेत अन्य धार्मिक आयोजनों की मंजूरी पुलिस देगी। इसके लिए अब एसडीएम कार्यालय नहीं जाना पड़ेगा।