
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। इन दिनों प्रदेश में कांग्रेस व भाजपा में आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का दौर चल रहा है। इसकी वजह है उनकी 22 फीसदी की भाागीदारी होना। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सब पर भारी पड़ रहे हैं। इसकी वजह है आदिवासी वोट बैंक का मुख्यमंत्री द्वारा उठाए गए कदमों से पार्टी को समर्थन मिलना। इसकी बानगी जोबट विस का उपचुनाव है। इस सीट पर आदिवासी समाज का समर्थन मिलने से ही भाजपा कांग्रेस के इस बेहद मजबूत गढ़ को ध्वस्त करने में सफल रही है। अब तो हालात यह हैं कि शिव द्वारा पूरी तरह से आदिवासी वोट में सेंध लगाई जा चुकी है। उनकी इस सफलता के पीछे राज्य सरकार की योजनाएं तो हैं ही साथ ही जिस तरह से उनके द्वारा बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस और अब टंट्या मामा का बलिदान दिवस मनाया गया उसकी वजह से यह वर्ग तेजी से भाजपा से जुड़ता जा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में सियासत के केंद्र में तेजी से आगे बढ़ रहे आदिवासी संगठन जयस नेपथ्य में तेजी से जाता नजर आने लगा है। उधर कांग्रेस भी अब इस मामले में काफी पीछे नजर आना शुरू हो गई है। यह पहला मौका है जब सरकारी स्तर पर स्वतंत्रता संग्राम के जननायक बिरसा मुंडा की जन्मतिथि और उसके बाद टंट्या मामा का बलिदान दिवस इतने बड़े पैमाने पर न केवल मनाया गया है , बल्कि उनका नाम अमिट रखने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। दरअसल प्रदेश की आजादी के लिए बिरसा मुंडा की भांति मामा टंट्या ने भी अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था और आदिवासी समुदाय की अस्मिता, सम्मान और देश के लिए मरते समय तक संघर्ष किया था। टंटया मामा को सरकारी स्तर पर महत्व देकर शिवराज ने आदिवासी वर्ग में गहरी पैठ बना ली है। अब सरकार द्वारा उनके बलिदान दिवस चार दिसंबर पर उनकी कर्मभूमि पातालपानी में बड़ा आयोजन करने की तैयारी की जा रही है। शिव सरकार ने बिरसा मुंडा के बहाने जहां मप्र में अपनी पकड़ बढ़ाई है तो वहीं भाजपा को इसका कई दूसरे राज्यों में भी इस समुदाय में बड़ा फायदा मिलना तय है। इसकी वजह है बिरसा मुंडा का झारखंड से होना और उनका प्रभाव आसपास के कई राज्यों के आदिवासी समुदाय में होना। इधर टंटया मामा का जन्म जहां प्रदेश में मालवा निमाड़ अंचल में हुआ था और उन्हें आज भी लगभग ढाई शताब्दी बाद भी आदिवासी समुदाय द्वारा भगवान के रुप में माना जाता है। उनका जन्म ख्ांडवा जिले के पंधाना के बड़दा गांव में हुआ था, जबकि उनकी मृत्यु छिंदवाड़ा जिले के पातालपानी में हुई थी। इसकी वजह से उनका प्रभाव प्रदेश के दोनों बड़े आदिवासी बाहुल्य अंचलों में है। यही वजह है कि उनके बलिदान दिवस पर पातालपानी में उनके समाधी स्थल पर शिव सरकार एक बड़ा आयोजन करने जा रही है। यह दोनों ही अंचल प्रदेश की राजनीति में अहम स्थान रखते हैं। इन अंचलों में जिस दल को जीत मिलती है उसकी ही सरकार बनना तय हो जाती है। खास बात यह है कि यह दोनों ही अंचल कांग्रेस के बड़े नेताओं के गृह अंचलों में आते हैं। इसके इतर आदिवासी समुदाय के बीच सक्रिय जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) भी आदिवासी समागम को लेकर तैयारियों में लगा हुआ है। उसके लिए यह आयोजन उसकी प्रतिष्ठा के साथ अस्तित्व का सवाल बना हुआ है। मप्र में अब तक जातिगत समीकरणों की राजनीति दूर ही रही है , लेकिन अब मध्य प्रदेश की राजनीति भी इससे अछूती होती नहीं दिख रही है। विधानसभा के साथ ही लोकसभा में अपनी मजबूत मौजूदगी के लिए भाजपा पूरे देश में आदिवासी समुदाय को अपने साथ मजबूती से जोड़ने के प्रयासों में लगी हुई है। इसकी शुरूआत 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कर चुके हैं। इसी क्रम को अब आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मामा टंट्या भील के बलिदान दिवस पर बड़ा आयोजन करने जा रहे हैं।
जयस को सताने लगी है चिंता
भाजपा द्वारा आदिवासी जननायकों को याद करने व उनके नाम पर कई बड़े आयोजनों के चलते जयस को अहसास होने लगा है कि कहीं आदिवासी समुदाय उनके हाथों से न निकल न जाएं। यही वजह है कि वह आदिवासियों के स्थानीय जननायक टंट्या मामा की जन्मस्थली पर बड़ा आयोजन करके अपनी ताकत फिर दिखाना चाह रहा था, लेकिन शिवराज ने उनकी तैयारियों पर पानी फेर दिया है। मुख्यमंत्री चौहान कहते हैं कि टंट्या मामा का यहां जन्म हुआ, हमने स्मारक बनाया। हम आजादी का 75वां महोत्सव मना रहे हैं। इसके तहत चार दिसंबर को टंट्या मामा के बलिदान दिवस का कार्यक्रम मनाया जाएगा, श्रद्धा के सुमन अर्पित किए जाएंगे। पातालपानी उनका कार्यक्षेत्र था, वो शोषण करने वालों के खिलाफ लड़ते थे। अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिये थे, अंग्रेज घबराते थे उनके नाम से।
निकाली जाएगी कलश यात्रा: अद्भुत योद्धा, टंट्या मामा की पवित्र जन्मस्थली की माटी को कलश में लेकर एक यात्रा निकाली जाएगी। यह पंधाना के उनके गांव वर्धा से शुरू होकर खंडवा जिला होते हुए खरगोन, खरगोन से बड़वानी, बड़वानी से आलीराजपुर, आलीराजपुर से झाबुआ, झाबुआ से धार, धार से इंदौर और इंदौर से होते हुए चार दिसंबर को पाताल पानी पहुंचेगी।