इंदिरा एकादशी व्रत कल, जानिए इस व्रत का महत्व

इंदिरा एकादशी

बिच्छू डॉट कॉम। पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पावन दिन भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। 2 अक्टूबर को इंदिरा एकादशी है। इंदिरा एकादशी पर व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। जो लोग व्रत कथा का पाठ नहीं कर सकते हैं, उन्हें इस कथा को सुनना चाहिए। आगे पढ़ें इंदिरा एकादशी व्रत कथा…

व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था। जिसका राजा इंद्रसेन था। इंद्रसेन एक बहुत ही प्रतापी राजा था। राजा अपनी प्रजा का पालन-पोषण अपनी संतान के समान करते था। राजा के राज में किसी को भी किसी चीज की कमी नहीं थी। राजा भगवान विष्णु का परम उपासक था। एक दिन अचानक नारद मुनि का राजा इंद्रसेन की सभा में आगमन हुआ। नारद मुनि राजा के पिता का संदेश लेकर पहुंचे थे। राजा के पिता ने कहा था कि पूर्व जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही हैं। यमलोक से मुक्ति से के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत करना होगा, ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके। पिता का संदेश सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद जी से इंदिरा एकादशी व्रत के बारे में बताने को कहा। तब नारद जी ने कहा कि यह एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। एकादशी तिथि से पूर्व दशमी को विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध करने के बाद एकादशी को व्रत का संकल्प करें। नारद जी ने आगे बताया कि द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद भगवान की पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद व्रत खोलें। नारद जी ने कहा कि इस तरह से व्रत रखने से तुम्हारे पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें श्रीहरि के चरणों में जगह मिलेगी। राजा इंद्रसेन ने नारद जी के बताए अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत किया। जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुंठ चले गए। इंदिरा एकादशी के पुण्य प्रभाव से राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति हुई। 

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