एक मुख्यमंत्री जिसके पास शेर पर सवारी गांठने का हुनर था!

  • जयराम शुक्ला
डॉ.गोविंदनारायण सिंह

डॉ.गोविंदनारायण सिंह मध्यप्रदेश के सबसे पढ़े-लिखे और मेधावी राजनेता रहे। संविदकाल में जब वे मुख्यमंत्री बने तो उनके कई किस्से मशहूर हुए। आरव्हीपी नरोन्हा तब प्रदेश के मुख्य सचिव थे। नरोन्हा साहब ने प्रशासनिक अनुभवों को लेकर एक दिलचस्प किताब लिखी- ए टेल टोल्ड बाय एन ईडियट। किताब में दर्ज एक वाकया है- मुख्यमंत्री गोविंदनारायण और नरोन्हा साहब एक खुली जीप में सतपुड़ा  के जंगलों की सैर पर निकले।  सिंह साहब नरोन्हाजी को बाघों के शिकार के किस्से सुनाते हुए चल रहे थे।  इस बीच नरोन्हा साहब ने पूछ लिया कि यदि अभी सामने कोई शेर आ जाए तो क्या करेंगे..?  गोविंदनारायण जी ने कहा- क्या करेंगे, उसके पुट्ठे पर दो लात जमा देंगे..। इत्तेफाक से कुछ ही मिनटों बाद सड़क के किनारे एक बाघ बैठा मिला।  सिंह साहब ने ड्राइवर को जीप रोकने को कहा। फिर नीचे उतरे और बाघ के निकट पहुंचकर उसके पुट्ठे पर एक धौल जमाई वापस जीप पर बैठे और आगे बढ़ गए। नरोन्हा ने पूछा- शेर से डर नहीं लगा..? डा.सिंह बोले- शेर का डर  मेरे डर से बड़ा था। हमला मैंने किया था..अपने बचाव के बाद जब तक हमले की सोचता तब तक मैं यहां अपनी जगह सुरक्षित।  नरोन्हा साहब लिखते हैं कि यह दृश्य देखकर मैं सन्न था। सिंह साहब का यह चतुराई भरा दुस्साहस मुझे झकझोर गया। परोक्षतः यह मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व को लेकर नौकरशाही के लिए निकला एक संदेश था। बीएचयू से डि.लिट डॉ.गोविंदनारायण सिंह मध्यप्रदेश के सबसे दुस्साहसी और जीनियस राजनेता यूँ ही नहीं कहे जाते। दूसरा किस्सा अर्जुन सिंह का। अर्जुन सिंह के बारे में कहा जाता था कि नौकरशाही उनके भौंहों के संचलन, नाक पर चश्मे की पोजीशन, नोटशीट पर दस्तखत की रेखाओं को पढ़कर अर्थ निकालती थी।  कुँवर साहब बोलते बहुतकम थे उनकी भावभंगिमा बोलती थी। पर मुख्यमंत्री बनने के शुरुआती दिनों में ऐसी बात नहीं थी।  नौकरशाही ने उन्हें ‘रिमहा धुर्र’ समझते हुए घुमाने की कोशिश की। आईएएस जनप्रतिनिधियों पर अंग्रेजी को अस्त्र की भांति इस्तेमाल करते हैं।  
जल्दी ही कुँवर साहब ने इलाज खोज लिया। अफसरों की बैठकों में वे ऐसी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते कि शब्दों का अर्थ ढूंढने के लिए नौकरशाह डिक्शनरी रखने लगे।  पर अफसर तो अफसर..वे कहां मानने वाले.! अगले महीने ही अखबार की सुर्खियों में छपा कि मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव बर्खास्त। बस इसके बाद अफसरशाही उनके चरणों पर गलीचे के माफिक बिछ गई। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने एक बार इंडियन एक्सप्रेस में लिखा- अर्जुन सिंंह की खोपड़ी में कोई कील ठोके तो वह स्क्रू बनके निकलेगी।  कुँवर साहब की मेधा और तेज दिमाग का इससे बढ़िया आँकलन कुछ हो ही नहीं सकता था।  अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अर्जुन सिंह ने नौकरशाही पर रेगिस्तान के ऊँट की तरह नकेल कसकर रखी।  और इसके बाद तो हर काम-और नियुक्तियाँ- ‘लोकहित में समस्त नियमों को शिथिल करते हुए’ होने लगीं।  श्रीनिवास तिवारी जी जैसा शक्तिमान स्पीकर इतिहास में नहीं हुआ।  दस साल उन्होंने मुख्यमंत्री की बराबरी की हैसियत में सत्ता का उपभोग किया।  वल्लभ भवन, संभाग, जिला के मुख्यालयों में उनके फोन का ऐसा आतंक था कि कई अफसर तो केबिन में ही खड़े होकर- यस सर, जी सर करने लगते थे।  तिवारीजी को भी शेर की सवारी गाँठने का हुनर मालूम था।
वे जनता को जनार्दन मानने वाले आखिरी नेताओं में से एक थे। वे संविधानिक और कानूनी मामलों के कीड़े थे। यही उनका सबसे बड़ा अस्त्र था।  एक बार का वाकया है.. उनका अमहिया दरबार सजा था( अमहिया रीवा में उनके मोहल्ले का नाम, अर्जुन सिंह ने अमहिया सरकार नाम दे रखा था) उनके क्षेत्र के कुछ लोग रोते-बिसूरते हुए फरियाद की- दादा ये अफसर लोग काम करना तो दूर ऊपर से दुत्कारते हैं।  तिवारी जी ने अपने स्टाफ के माध्यम से आईजी,डीआईजी, एसपी, आयुक्त, कलेक्टर को अमहिया तलब किया।  मुझे याद है कि वह अप्रैल की चिलचिलाती दोपहर थी। सभी अफसर पहुंचे। अमहिया में उनके घर में लोगों का मेला लगा था, तिवारी जी अपने कमरे में थे। स्टाफ ने उन्हें खबर दी कि सबके सब आ गए। तिवारीजी ने कहा कि उन लोगों को पंद्रह मिनट जनता के बीच ही खड़े रहने देना इसके बाद गेस्ट रूम में बैठा देना। सभी के सभी अफसरान तलतलाते पसीने में पब्लिक के बीच खड़े रहे। तिवारीजी ने कहा कि आज से इन्हें जनता नहीं गंधाया करेगी।  तिवारीजी ताउम्र अफसरशाही की आँखों की किरकिरी बने रहे लेकिन उन्होंने लोकशाही की प्रतिष्ठा के साथ समझौता नहीं किया। विधानसभाध्यक्ष के रूप में विपक्ष को जितना संरक्षण और सम्मान तिवारीजी ने दिया वह वहां की कार्रवाइयों में दर्ज होगी।  
विपक्ष के तौर पर भाजपा सड़कों पर प्रदर्शन करती। जब भी कभी किसी विधायक की एसपी-कलेक्टर के साथ भिडंत होती तब तब वे विधायक का ही पक्ष लेते जब कि वह विपक्षी दल का होता था।  कई घटनाओं का तो उन्होंने सदन में स्वमेव संग्यान लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता हरसूद विधायक कुँवर विजयशाह का मामला अब भी याद होगा जब वहां के एसपी से उनकी झड़प हो गई, लाठी, डंडे भी चले थे। मामला 1993-98 के कार्यकाल के बीच का है। जहाँ तक कि मुझे स्मरण है कि एसपी कोई पटेल थे।  तिवारीजी ने सदन में संग्यान लेते हुए सत्ता पक्ष को कठघरे पर खड़ा किया और कहा कि किसी भी माननीय सदस्य के साथ पुलिस और नौकरशाही का ऐसा बर्ताव बर्दाश्त से बाहर है।  सदन में ही मुख्यमंत्री को निर्देश दिया कि ऐसे एसपी को तत्काल हटाकर सदन को सूचित करिए। एसपी को जिले से हटना पड़ा। जब कि कुँवर विजयशाह के अराजक आचरण के शिकार एकबार खुद स्पीकर तिवारीजी ही हुए थे। तब विपक्ष के नेता गौरीशंकर शेजवार के नेतृत्व में भाजपा विधायकों ने स्पीकर को उनके चेंबर में नजरबंद कर दिया था। कुँवर विजयशाह सबसे सक्रिय और गाली-गलौज में सबसे आगे थे। प्रतिक्रिया की बजाय बेपरवाह तिवारीजी कहते थे- मेरी चमड़ी गेंडे की तरह मोटी है..इससे कोई फरक नहीं पड़ता। कलेक्टर लोकसेवक हैं, संघ लोकसेवा से चुनकर आते हैं लेकिन व्यवहार में ये नए युग के सामंत हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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