
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा प्रदेश बन चुका है जहां पर कई क्षेत्रों में अफसर पूरी तरह से नतमस्तक रहते हैं। जिसकी वजह से वे हमेशा सरकार पर भारी पड़ते रहते हैं। ऐसा ही मामला है धान की मिलिंग का। इस मामले में भी मिलर बीते कई माह से सरकार पर भारी पड़ रहे हैं, जिसकी वजह से प्रदेश सरकार अपने कोटे का चावल केन्द्र को नहीं दे पा रही है। इस मुश्किल के बाद भी अब तक अफसर मिलर्स पर भारी नहीं पड़ पा रहे हैं।
यही वजह है कि प्रदेश की शिव सरकार के झुकने के बाद भी मिलर धान की मिलिंग करने को तैयार नहीं हो रहे हैं। यह हाल तब हैं जबकि उनके खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार अफसरों को मिले हुए हैं और उसके लिए नियम कायदे भी बने हुए हैं। इसके बाद भी संबंधित अफसर मिलर्स की मनमानी के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा सके हैं। यही वजह है कि अब इस मामले में सरकार को ही सामने आना पड़ रहा है। सरकार ने अब तय किया है कि किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदी धान की मिलिंग से इन्कार किया तो न केवल उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, बल्कि उसके संचालकों के खिलाफ प्रकरण भी दर्ज कराया जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने यह भी तय कर दिया है कि अब अनिवार्य रूप से मिलर्स को अपनी क्षमता के अनुसार कम से कम 30 प्रतिशत मिलिंग सरकारी धान की करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर अब मिलर के चावल की न सिर्फ जब्ती होगी बल्कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कार्रवाई भी की जाएगी। इस तरह की कार्रवाई का जिम्मा अब खाद्य विभाग की जगह नागरिक आपूर्ति निगम और राज्य सहकारी विपणन संघ के जिला अधिकारियों को सौंपा गया है। उल्लेखनीय है कि मप्र में बीते साल रिकॉर्ड धान की खरीदी हुई, लेकिन मिलर्स की मनमानी की वजह से नागरिक आपूर्ति निगम को मिलिंग कराने में बेहद दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल धान मिलर्स चाहते हैं कि उन्हें सरकार प्रोत्साहन राशि का अधिक भुगतान करे। खास बात यह है कि सरकार ने उनकी मांग मानते हुए प्रोत्साहन राशि में वृद्धि भी की है, लेकिन मिलर्स धान में टूटन अधिक होने और प्रोत्साहन राशि कम होने का हवाला देकर मिलिंग करने को तैयार नहीं हो रहे हैं। खास बात यह है कि मिलर्स लॉबी इतनी मजबूत है कि उनकी वजह से दूसरे राज्यों
के मिलर भी धान की मिलिंग करने को तैयार नहीं हो रहे हैं।
अलग-अलग प्रोत्साहन राशि का प्रावधान
80 प्रतिशत चावल नागरिक आपूूर्ति निगम और 20 फीसद भारतीय खाद्य निगम को देने पर 50 रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि के अलावा 50 रुपये प्रति क्विंटल अपग्रेडेशन राशि देने का प्रावधान किया गया है। इसी तरह से 40 प्रतिशत चावल नागरिक आपूर्ति निगम और 60 फीसद भारतीय खाद्य निगम को देने पर 50 रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि और 100 रुपये प्रति क्विंटल अपग्रेडेशन राशि मिलेगी, जबकि पूरा चावल यदि भारतीय खाद्य निगम को दिया जाता है तो मिलर को 50 रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि के अलावा दो सौ रुपये प्रति क्विंटल अपग्रेडेशन राशि का भुगतान किया जाएगा।
अब यह किए नए प्रावधान
मिलर्स की हाठधर्मिता की वजह से बनी परिस्थितियों की वजह से अब सरकार ने धान मिलिंग के लिए अधिकतम दो सौ रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि देने का फैसला करने के साथ ही यह भी तय किया है कि मिलर को अनिवार्य रूप से शासन के धान की मिलिंग करनी होगी। इसकी वजह है कि यदि धान की मिलिंग नहीं हुई तो सरकार को बड़ा आर्थिक घाटा उठाना पड़ेगा। दरअसल धान की मिलिंग न हो पाने की वजह से गोदाम भरे हुए हैं, जिसकी वजह से कई जगहों पर धान को ओपन कैंप (खुले में पक्के फर्श पर तिरपाल से ढंककर) में रखना पड़ा है। इस वजह से बारिश में उसके खराब होने का खतरा बना हुआ है। यही नहीं केन्द्र को भी धान की सप्लाई अटकी हुई है, जिसकी वजह से धान खरीदी का पैसा भी केन्द्र से नहीं मिल पा रहा है।
इन मिलर को दी गई राहत
कुछ मिलर को न्यूनतम 30 प्रतिशत शासकीय धान की मिलिंग से सशर्त छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए उन्हें दस्तावेजों के साथ आवेदन करना होगा। यह छूट उन्हें दी जाएगी जो मिलर चावल का निर्यात करते हैं। इसके अलावा स्वयं के ब्रांड का चावल खुले बाजार में बेचने वाले और किसानों से सीधे समर्थन मूल्य से अधिक दाम पर धान खरीदने के साथ ही जो मिलर किसानों को खाद, बीज व अन्य तकनीकी मदद देते हैं।