पड़ोसी राज्यों की वजह से मप्र के खजाने को हो रहा बड़ा नुकसान

डीजल और पेट्रोल

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में डीजल और पेट्रोल पर वसूले जाने वाले अधिक कर की वजह से उसके दाम पड़ौसी राज्यों उत्तर प्रदेश और गुजरात की तुलना में बेहद अधिक हैं। एक लीटर में इनके दामों में यह अंतर दस रुपए तक का है। यही वजह है कि अब मप्र में इन दोनों ही राज्यों का डीजल और पेट्रोल न केवल उपयोग हो रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर बिकने भी लगा है। इसकी वजह से मप्र के खजाने को बड़े पैमाने पर हर रोज चपत लग रही है।
इसके अलावा प्रदेश में आने जाने वाले बड़े व्यवसायिक वाहनों के चालकों ने तो मप्र की सीमा के स्थापित पेट्रोल पंपों से पूरी तरह ही तौबा कर ली है। यह वाहन चालक सीमावर्ती पंप से न केवल टेंक फुल कराकर चलते हैं बल्कि रास्ते में जरुरत के मुताबिक लगने वाले डीजल को भी साथ लेकर आते जाते हैं। इसकी वजह से प्रदेश के पंप संचालकों की बिक्री भी बेहद कम हो गई है। हालत यह है कि इन दोनों ही राज्यों की सीमावर्ती मप्र के जिलों में तो अब पेट्रोल और डीजल की बिक्री न के बराबर रह गई है। कई जगहों पर तो हालात यह हो गए कि पेट्रोल पंप पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। गौरतलब है कि अब जिन संस्थानों व कंपनियों में हर रोज बड़ी मात्रा में डीजल और पेट्रोल की खपत होती है वह तो सीधे टेंकर तक पास के राज्य से मंगा कर उपयोग कर रहे हैं। इनमें कुछ अर्धशासकीय संस्थाएं तक शामिल हैं। इसके अलावा कुछ लोगों द्वारा तो इसका अवैध रूप से विक्रय भी किया जाने लगा है। दरअसल मप्र में इन दिनों पेट्रोल डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। जनता की मजबूरी भी है कि रोजी रोटी के कारण ईंधन का इस्तेमाल करना पड़ता है।
इसकी वजह से उनकी जेब जमकर कट रही है। दरअसल मप्र में इन दोनों ही पदार्थों पर कर अधिक वूसला जाता है जिसकी वजह से उनके दाम पड़ौसी राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश और गुजरात की अपेक्षा 10 से लेकर 12 रुपए तक महंगा है। इसलिए इन दोनों ही राज्यों से सटे मप्र के इलाकों में इन राज्यों से ही इसकी खरीदी कर उपयोग किया जा रहा है। दरअसल यूपी गुजरात की अपेक्षा मध्यप्रदेश में पेट्रोल पर 6.2 और डीजल पर 5.52 % वैट अधिक वसूला जाता है। उत्तर प्रदेश में पेट्रोल पर 26.8 फीसदी वैट है तो एमपी में सेस मिलाकर 39 फीसदी वैट लगता है। यही हाल डीजल का भी है। एमपी में डीजल पर सेस मिलाकर 28 फीसदी वैट लगता है जबकि उत्तर प्रदेश में 17.48 फीसदी ही वैट देना पड़ता है। यही वजह है कि बॉर्डर के लोग मध्य प्रदेश की बजाय यूपी, महाराष्ट्र और गुजरात में जाकर पेट्रोल-डीजल भरवा रहे हैं। हैरानी वाली बात यह है कि यह काम हम जनता ही नहीं बल्कि कारोबार और ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोग भी
कर रहे हैं।
इन जिलों के लोग पड़ौसी प्रदेशों से करते हैं खरीदी  
पड़ौसी राज्यों से जिन जिलों के वाहन चालक पेट्रोल और डीजल खरीद रहे हैं उनमें रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, दतिया, भिंड ,मुरैना, ग्वालियर खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, छिंदवाड़ा और बालाघाट शामिल हैं। इन 14 जिलों में करीब दो हजार पेट्रोल पंप है। इनमें से कई जिलों में तो अब पूरी तरह से पेट्रोल पंप तक बंद हो चुके हैं।
भोपाल में ही बिक्री में आई 25 फीसदी की कमी
भोपाल जिले में 137 और पूरे मध्यप्रदेश में 4200 पेट्रोल पंप संचालित है। भोपाल में डीजल की खपत रोजाना 12 लाख लीटर और पेट्रोल की खपत 9.30 लाख लीटर की होती है लेकिन मौजूदा समय में इसकी बिक्री में 25 फीसदी तक की कमी आई है।  आधे पेट्रोल पंपों पर प्रीमियम पेट्रोल की बिक्री बंद राजधानी सहित मध्य प्रदेश के 4200 पेट्रोल पंपों में से आधे पेट्रोल पंप प्रीमियम पेट्रोल से ड्राय हैं यानी प्रीमियम पैट्रोल नहीं मिल रहा है। ड्राय होने की मुख्य वजह इसके दाम 109 रुपए 46 पैसे होना है। तो वहीं डीजल 100.33 रुपए होना है जबकि साधारण पेट्रोल 105 रूपया 78 पैसे और डीजल 96 रुपए 98 पैसे प्रति लीटर है।
पड़ोसी राज्यों की बिक्री में हुआ 300% तक इजाफा
मध्य प्रदेश के इन 14 से अधिक जिले के लोग तो पूरी तरह से पड़ौसी राज्यों के पंपों से पेट्रोल और डीजल की खरीदी कर रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी बिक्री में दो से तीन सौ फीसदी तक की वृद्धि हो चुकी है, जबकि मप्र में इतनी ही मात्रा में कमी आ चुकी है। इसकी वजह से इस साल ही अकेले प्रदेश सरकार के खजाने को करीब 17 सौ करोड़ का नुकसान होना तय माना जा रहा है। अगर मप्र सरकार भी पड़ौसी राज्यों की तरह ही इस पर लिए जाने वाले कर को कम कर दे तो उसकी आय तो बढ़ ही जाएगी साथ ही लोगों को भी बढ़ी राहत मिल जाएगी। दरअसल प्रदेश सरकार के रणनीतिकारों को यह समझ नहीं आ रहा है कि  पड़ोसी राज्यों के मुकाबले मध्यप्रदेश में ईंधन डिफरेंस खत्म हो जाए तो उक्त ंजिलों में डीजल पेट्रोल बिक्री 200 से 300 प्रतिशत बढ़ जाएगी और इन जिलों में सरकार के राजस्व में 16 सौ से 17 सौ करोड़ रुपए की सालाना वृद्धि हो जाएगी।

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