
कुछ दिनों पहले ही प्रदेश में पुलिस कर्मचारियों को अस्थाई पदोन्नति दी गई है
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस कर्मियों को जिस तरह से अस्थाई पदोन्नति दी गई है उसी तर्ज पर अब वन कर्मचारी भी पदोन्नति देने की मांग कर रहे हैं। पुलिस की ही तरह वन अमले को भी आरक्षण का मामला कोर्ट में लंबित होने की वजह से सालों से प्रमोशन की मांग कर रहे हैं। यह बात अलग है कि उनकी मांग पर अब तक विभाग के आला अफसर सहमति देने को तैयार नहीं हैं। अस्थाई पदोन्नति की मांग कर रहे। इन वन कर्मचारियों का कहना है कि विभाग में पहले से ही कर्मचारियों की कमी बनी हई है, ऐसे में हर साल सैकड़ों की संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसकी वजह से विभागीय कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। इस वजह से अब मुख्यालय, फील्ड और वृत्त के कामकाज में भी परेशानियां खड़ी हो रही हैं। ऐसे में वन कर्मचारियों द्वारा पुलिस के तर्ज पर प्रमोशन की मांग की जा रही है। गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही प्रदेश में पुलिस कर्मचारियों को अस्थाई पदोन्नति दी गई है। इसमें आरक्षक से लेकर निरीक्षक स्तर के अफसरों को पदोन्नत किया गया है। इसी तरह वन विभाग में भी पदोन्नति दी जा सकती है। अगर ऐसा होता है तो 10 से 20 साल तक लगातार एक ही पद पर पदस्थ रहे कर्मचारियों को प्रमोशन मिल सकता है। खास बात यह है कि वन विभाग में हाल ही में फ्लाइंग स्क्वॉड, रेंज व डिप्टी रेंजरों को बतौर रेंजर का प्रभार देकर काम तो कराया जा रहा है , लेकिन उन्हें रेंजर की रैंक नहीं दी गई है।
डीएसपी बनने का इंतजार
पुलिस महकमे में उच्च पद का प्रभार देने के मामले में भले ही निरीक्षकों को उप पुलिस अधीक्षक का प्रभार देने का रास्ता साफ होने के बाद भी उनको पदोन्नति का इंतजार करना पड़ रहा है। गृह विभाग की अनुशंसा पर पुलिस अधिनियम में संशोधन की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित करने के साथ ही निरीक्षकों को पदोन्नत करने विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक में कोरोना का अड़ंगा लग गया है। निरीक्षक को उप पुलिस अधीक्षक का प्रभार देने की प्रक्रिया भी गृह विभाग ने शुरू की थी। इसके लिए पुलिस अधिनियम की धारा 45 में संशोधन भी किया जा चुका है। अब निरीक्षकों को उप पुलिस अधीक्षक के 160 रिक्त पदों का प्रभार दिया जाना है। अधिनियम में संशोधन के बाद स्पष्ट किया गया है कि उप पुलिस अधीक्षक का प्रभार देने की प्रक्रिया में अधिकारी को प्रभार वाले पद के वेतन भत्ते की पात्रता नहीं होगी। हालांकि वे वर्दी प्रभार वाले पद के अनुसार ही पहनेंगे और उनके अधिकार भी प्रभार के अनुसार ही होंगे। किसी प्रकरण में उन पर कार्रवाई भी प्रभार वाले पद के अनुसार ही की जाएगी।