नक्सली खात्मा: अब सरकार का बालाघाट के विकास पर फोकस

  • सुरक्षा पर खर्च की जाने वाली राशि का अब होगा विकास कार्यों में उपयोग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र का नक्सल प्रभावित जिला अब नक्सल मुक्त हो गया है। जिले के नक्सल मुक्त होने के साथ ही सरकार का पूरा फोकस विकास पर होगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पहले से ही बालाघाट पर विशेष ध्यान रहा है। ऐसे में अब सरकार इस जिले में विकास की योजनाएं बनाकर धरातल पर उतारेगी। इसका संकेत मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के दो साल पूरे होने के कार्यक्रम में भी दिया है। गौरतलब है कि माओवादी हिंसा का संकट समाप्त होने के बाद अब सरकार का बड़ा खर्च भी बचेगा। माओवादी आतंक से निपटने के लिए राज्य सरकार को हर माह सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर कम से कम 15 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। परिवहन, भोजन, शस्त्र और अन्य सुरक्षा इंतजामों को जोड़ दिया जाए तो यह खर्च करीब 20 करोड़ रुपये प्रतिमाह तक पहुंच जाता है।
गौरतलब है कि नक्सल प्रभावित होने के कारण बालाघाट में अन्य जिलों की तरह विकास कार्य नहीं हो सकता है। ऐसे में अब सरकार का सबसे अधिक फोकस बालाघाट पर रहेगा। बालाघाट में अभी तक सुरक्षा पर बड़ा खर्च होता था। पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों के अनुसार वर्तमान में अलग-अलग पुलिस बलों के लगभग 2,200 अधिकारी-कर्मचारी सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए हैं। इसमें सीआरपीएफ की तीन कंपनियां भी सम्मिलित हैं। हालात सामान्य होने के बाद परिस्थितियों की समीक्षा कर सुरक्षाबलों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बनाई गई है, ताकि इन बलों का उपयोग राज्य के अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में किया जा सके। हालांकि, पुलिस के सामने अभी बड़ी चुनौती यह है कि माओवादी समस्या किसी रूप में फिर से पनपने नहीं पाए। प्रभावित क्षेत्र को पूरी तरह से समस्यामुक्त मानने के लिए एक हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को जंगल में उतारा गया है। वे एक तरफ से तलाशी करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। इसके बाद सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी, जिसमें निर्धारित किया जाएगा कि सबसे पहले कौन से पुलिस बल को हटाना है।
20 करोड़ की होगी बचत
बालाघाट में अभी यहां हाकफोर्स के 1200 अधिकारी-कर्मचारी, जिला पुलिस बल के जवान, विशेष सशस्त्र बल की दो बटालियन तैनात हैं। सीआरपीएफ की दो और कंपनियां दो वर्ष से मप्र पुलिस मुख्यालय केंद्र सरकार से मांग रहा था, पर वहां भी बल कमी से नहीं मिलीं। इस बीच अब समस्या समाप्त हो गई। माओवादी आतंक से निपटने के लिए राज्य सरकार को हर माह सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर कम से कम 15 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। परिवहन, भोजन, शस्त्र और अन्य सुरक्षा इंतजामों को जोड़ दिया जाए तो यह खर्च करीब 20 करोड़ रुपये प्रतिमाह तक पहुंच जाता है। बालाघाट रेंज के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती सात जिलों को मिलाकर माओवादियों ने एमएमसी जोन बनाया था। दो नवंबर के बाद से 42 दिन में यहां सक्रिय सभी 42 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, पर छत्तीसगढ़ में अभी भी सूचीबद्ध माओवादी सक्रिय हैं। जब तक पड़ोसी राज्य में समस्या है, मध्य प्रदेश में बिल्कुल ढिलाई नहीं की जाएगी। सुरक्षा व्यवस्था भी यथावत रहेगी।
खुफिया इनपुट के आधार हटेगी सुरक्षा
बालाघाट में नक्सल समस्या समाप्त होने के बाद भी खुफिया इनपुट के आधार बल हटाने का निर्णय लिया जाएगा। विशेष सहयोगी दस्ते की अभी बड़ी भूमिका रहेगी। गौरतलब है कि माओवाद से निपटने के लिए सरकार ने विशेष सहयोगी दस्ता भी गठित किया था, जिसमें 882 युवक-युवतियों की भर्ती की गई है। इनका प्रशिक्षण चल ही रहा था कि उससे पहले ही माओवादी गतिविधियां समाप्त हो गईं। बालाघाट, मंडला और डिंडौरी तीनों जिलों के लिए यह भर्ती की गई है। इन्हें प्रतिमाह 25 हजार रुपये निश्चित मानदेय दिया जाएगा। ये युवक-युवतियां उसी विकासखंड के हैं। जंगल में गतिविधियां समाप्त होने के बाद खुफिया तंत्र के रूप में इनकी बड़ा उपयोग करने की तैयारी है। ये यह देखेंगे माओवादी समस्या के किसी नए रूप में तो नहीं उभर रही है।

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