हम दो हमारे तीन बना ब्लैकमेलिंग का जरिया

  • नियमों का गलत अर्थ निकाल बढ़ी दुरुपयोग की यह समस्या

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार के नियम के मुताबिक 2001 के बाद तीसरी संतान होने पर शासकीय नौकरी नहीं की जा सकती। लेकिन मप्र में सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।  आलम यह है कि इस सरकारी नियम की आड़ में प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के साथ ब्लैकमेलिंग की जा रही है। इस संदर्भ में लगातार शिकायतें बढ़ रही है। प्रदेश में भोपाल, छिंदवाड़ा समेत अन्य जिलों से दो से अधिक संतान वाले शासकीय कर्मचारियों की सीएम हेल्पलाइन में शिकायत कर परेशान करने के मामले सामने आ चुके हैं। बताया जा रहा है कि इसकी आड़ में कर्मचारियों को ब्लैकमेल किया जा रहा है।
 दरअसल, सामान्य प्रशासन विभाग ने 10 मार्च, 2000 से मप्र सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्तें) नियम 1961 के नियम-6 उपनियम (4) के बाद उपनियम 5 व 6 स्थापित किए हैं। इसके उपनियम 5 के मुताबिक कोई भी उम्मीदवार, जिसने विवाह के लिए न्यूनतम आयु से पहले विवाह कर लिया हो, किसी सेवा या पद पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा। वहीं उपनियम 6 कहता है कि कोई भी उम्मीदवार जिसकी दो से अधिक जीवित संतान हैं, जिनमें से एक का जन्म 26 जनवरी, 2001 या उसके बाद हुआ हो, किसी भी सेवा या पद पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।
गलत व्याख्या से उलझ रहे सरकारी नौकरभरमार
जानकारी के अनुसार, प्रदेश में सरकारी नौकरों यानी अधिकारियों और कर्मचारियों को दो से अधिक संतान के नियमों में उलझाया जा रहा है। इसकी गलत व्याख्या कर ऐसे कर्मचारियों की पूरे प्रदेश भर में शिकायतें हो रही हैं। ब्लैकमेलिंग का भी जरिया बन गई है। यह स्थिति तब है जब कुछ मामलों में नौकरी से बर्खास्त किए गए कर्मचारियों को हाई कोर्ट से राहत मिल चुकी है। अब नियमों का गलत अर्थ निकालने और उनके दुरुपयोग की यह समस्या सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव तक पहुंच गई है। बताया जा रहा है इस सिलसिले में कर्मचारी संगठन जल्द मुख्य सचिव को भी पत्र लिखा हैं। प्रदेश में भोपाल, छिंदवाड़ा समेत अन्य जिलों से दो से अधिक संतान वाले शासकीय कर्मचारियों की सीएम हेल्पलाइन में शिकायत कर परेशान करने के मामले सामने आ चुके हैं। ब्लैकमेलिंग की बात भी सामने आई है।
स्कूल शिक्षा विभाग में सर्वाधिक शिकायतें
जानकारों के मुताबिक उपनियम-6 सरकारी सेवा के लिए उम्मीदवार की अर्हता से संबंधित है। इस नियम के लागू होने की तारीख 10 मार्च, 2000 से पहले शासकीय सेवा में कार्यरत कर्मचारियों पर यह लागू नहीं होते हैं। इन नियमों की गलत व्याख्या का बड़ा उदाहर सतना के जिला शिक्षा अधिकारी छह मार्च को जारी आदेश है। इसके जरिए देवरी करड्या के प्राथमिक शिक्षक नसीर खान को वर्ष 2000 के नियमों का हवाला देकर सेवा से हटाने के लिए कहा गया था। इसे पीडि़त ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी। हालांकि, इसके बाद भी सतना डीईओ के उस आदेश के आधार पर सरकारी कर्मचारियों की शिकायतें की जा रही हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के संबंधित इस तरह की सर्वाधिक शिकायतें की जा रही हैं। स्थिति यह है कि कई विभागों में इस तरह की शिकायतों में नियमों की गलत व्याख्या से जांच भी बैठा दी गई। पेनाल्टी लगा दी। हालांकि कोर्ट से इन पर रोक लगा दी गई। मध्यप्रदेश राज्य कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री जितेन्द सिंह का कहना है कि दस मार्च 2000 को जारी राजपत्र के पहले से शासकीय सेवा में कार्यरत कर्मचारियों के खिलाफ विभिन विभागों में शुरू की गई कारवाई पर रोक लगाई जाए। जिन शासकीय सेवकों के संबंध में यह नियम लागू नहीं होता है, उसका भी स्पष्टीकरण जारी करने का आवाह अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर किया है।

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