- सातवीं सुनवाई में साफ हो सकती है पदोन्नति की तस्वीर
- गौरव चौहान

मप्र में सरकार ने 9 साल बाद कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता खोला है, लेकिन एक बार फिर से मामला हाईकोर्ट में फंस गया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों की पदोन्नति मामले में मप्र हाईकोर्ट में सातवीं सुनवाई 25 सितंबर को होगी। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट के रुख को देखते हुए मप्र सरकार को उम्मीद है कि सरकार अगली सुनवाई में पदोन्नति प्रक्रिया पर लगी रोक हटा सकती है। यानी कर्मचारियों की दिवाली गिफ्ट मिल सकता है। सरकार को उम्मीद है कि इसमें पदोन्नति का रास्ता निकल सकता है। ऐसा होता है तो चार माह के भीतर सभी विभागों में पात्र अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नत कर दिया जाएगा। ये सभी पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी यानी पदोन्नति सशर्त रहेगी।
प्रदेश में न्यायालयीन मामलों को छोडकऱ 2016 से पदोन्नतियां बंद हैं। तब से अब तक लगभग 80 हजार कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इससे कर्मचारियों में बढ़ रहे असंतोष को देखते हुए मोहन सरकार ने सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श करके पदोन्नति नियम 2025 तैयार किए लेकिन इसमें भी 2002 के नियम की तरह ही सामान्य वर्ग की उपेक्षा हुई। इस नियम को सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) की ओर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। न्यायालय ने राज्य सरकार को पुराने और नए नियम के अंतर के साथ यह बताने के निर्देश दिए हैं कि 2002 के नियम को समाप्त करने के हाई कोर्ट के निर्णय को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो फिर उस याचिका को वापस क्यों नहीं लिया गया। सरकार हाई कोर्ट में अपना पक्ष रख चुकी है। इस मामले में अब 25 सितंबर को सुनवाई प्रस्तावित है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक डीपीसी की पहली बैठक के बाद ही 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को प्रमोशन मिल जाएगा। यह पदोन्नति के लिए पात्र कुल कर्मचारियों की संख्या का 90 प्रतिशत है। ये वे कर्मचारी है, जो दिसंबर, 2024 की स्थिति में पदोन्नति के लिए पात्र है। कर्मचारियों के पदोन्नत होने से करीब 2 लाख पद रिक्त होंगे, जिन्हें सीधी भर्ती के जरिए भरा जाएगा।
सरकार की हाईकोर्ट में स्पष्टीकरण देने की तैयारी
जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट के आदेशानुसार मप्र सरकार ने कोर्ट में यह लिखित स्पष्टीकरण देने की तैयारी कर ली है कि यदि सुप्रीम कोर्ट भविष्य में पदोन्नति मामले में याचिका पर सुनवाई करते हुए 2002 के पदोन्नति नियमों से कानूनी पेंच हटा देता है, तो उस स्थिति में वर्ष 2025 के पदोन्नति नियम लागू होंगे। यानी कर्मचारियों को मप्र लोक सेवा प्रमोशन नियम-2025 के अनुसार पदोन्नति दी जाएगी। सामान्य प्रशासन विभाग और मप्र सरकार के महाधिवक्ता के बीच हाईकोर्ट में स्पष्टीकरण देने को लेकर विस्तृत चर्चा हो चुकी है। अगली सुनवाई के दौरान यदि पदोन्नति प्रक्रिया पर लगी रोक हटती है, तो प्रदेश के 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को दिवाली पर पदोन्नति का तोहफा मिल सकता है। हाईकोर्ट में पदोन्नति मामले में 16 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान मप्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने राज्य शासन पर एक के बाद एक सवाल दागे। मप्र शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन व महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने अवगत कराया कि सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से परिपत्र जारी कर वर्तमान स्थिति पर स्पष्टीकरण जारी करेंगे। अगली सुनवाई 25 सितंबर को निर्धारित की गई है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2016 से कर्मचारियों की पदोन्नति संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन कोर्ट में हर बार तारीख आगे बढ़ जाती है। इसे देखते हुए पदोन्नति का रास्ता खोलने के लिए डॉ. मोहन यादव कैबिनेट ने गत 17 जून को मप्र लोक सेवा प्रमोशन नियम-2025 को मंजूरी दी थी। सरकार ने पदोन्नति के नए नियमों के संबंध में 19 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने 26 जून को सभी विभागों को 31 जुलाई से पहले डीपीसी की पहली बैठक बुलाने के निर्देश दिए थे। इस बीच पदोन्नति के नए नियमों के विरोध में कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंच गए। की हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को कर्मचारियों याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई तक पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। तभी से सभी 54 विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगी है। इसके बाद हाईकोर्ट में 5 बार सुनवाई हो चुकी है। अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी। प्रदेश में नौ साल में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी बगैर प्रमोशन पाए रिटायर्ड हो चुके हैं। पदोन्नति के नए नियमों के अनुसार प्रमोशन के लिए रिक्त पदों को एससी (16 प्रतिशत), एसटी (20 प्रतिशत) और अनारक्षित में बांटा जाएगा। पहले एससी-एसटी के हिस्से वाले पद भरे जाएंगे। फिर अनारक्षित पदों पर एससी-एसटी से लेकर सभी दावेदार पात्र होगे। पूर्व में प्रमोशन पा चुके कर्मचारियों को रिवर्ट नहीं किया जाएगा। अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी इसी नियम के विरोध में हाईकोर्ट गए है।
