
– खत्म नहीं हो रहा पदोन्नति का विवाद
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सरकार एक बार फिर मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। इसकी वजह यह है कि सामान्य वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नति नियम से संतुष्ट नहीं है। वे आरक्षण के दोहरे लाभ का विरोध कर रहे हैं। लिहाजा, सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) नए नियम को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। इसे लेकर विधिक परामर्श लिया जा रहा है। ऐसे में पदोन्नति का विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है।
गौरतलब है कि नौ साल बाद सरकार ने नए पदोन्नति नियम बनाकर लागू कर दिए। सामान्य से लेकर आरक्षित वर्ग के कर्मचारी संगठनों से संवाद भी किया लेकिन सामान्य वर्ग के कर्मचारी नए नियमों से संतुष्ट नहीं हैं। प्रक्रियात्मक कुछ परिवर्तनों को छोड़कर इसे नई बोतल में पुरानी शराब ही बताया जा रहा है। आरक्षण की व्यवस्था जस की तस है। 20 प्रतिशत पद अनुसूचित जनजाति और 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सुरक्षित किए गए हैं तो अनारक्षित कोटे में भी इन्हें शामिल किया है। लिहाजा, सपाक्स नए नियम को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। इसे लेकर विधिक परामर्श लिया जा रहा है। पदोन्नति नियम 2025 में 2002 के नियम को ही आगे बढ़ाया गया है। उधर, सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मंत्रालय में अधिकारियों-कर्मचारियों को सबसे पहले पदोन्नति देने की तैयारी के बीच मुख्य सचिव अनुराग जैन सभी विभागों के अधिकारियों के साथ 26 जून को बैठक करेंगे। इसमें पदोन्नति नियम के प्रविधान और उसके क्रियान्वयन को लेकर प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
उच्च पदों पर आरक्षण 100 % तक पहुंच गया
मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को आरक्षण का लाभ देने पर सब सहमत हैं। आरक्षण कोटा पूरा होने के बाद संयुक्त विचारण सूची में शेष आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को अनारक्षित मानकर अनारक्षित वर्ग के पदों पर पदोन्नति दी जाएगी। इसी कारण से उच्च पदों पर आरक्षण सौ प्रतिशत तक पहुंच गया। इसे ही कोर्ट में चुनौती दी गई थी और नियम निरस्त हुए थे। नए नियम में इस प्रविधान को जस का तस रखा गया, जो आपत्तिजनक है। आरक्षण का निर्धारण पांच वर्ष के लिए होगा जबकि, यह प्रतिवर्ष की स्थिति के अनुसार होना चाहिए। उधर, सपाक्स के अध्यक्ष केपीएस तोमर का कहना है कि हम नियम को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे क्योंकि अनारक्षित वर्ग के साथ वही अन्याय फिर किया गया है जो 2002 में नियम बनाकर किया था। 36 प्रतिशत आरक्षण के बाद आरक्षित वर्ग को अनारक्षित कोटे में लाकर फिर लाभ देने का प्रविधान रखा है। इससे तो आरक्षण का प्रतिशत कहीं अधिक हो जाएगा। नियम में न तो क्रीमी लेयर का कोई उल्लेख किया गया और न ही गलत नियम से पदोन्नत होकर उच्च पदों तक पहुंचे अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत किया गया। इन्हें पदोन्नति भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाकर रखने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में पदोन्नति देने की तैयारी विधिसंगत नहीं है। विधि विशेषज्ञों से परामर्श किया जा रहा है और जल्द ही नए नियम को चुनौती दी जाएगी।