
– मिशन 2028 की तैयारी
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा ने जिस रणनीति के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर प्रदेश की सभी 29 सीटें जीती थी, अब उसी रणनीति पर 2028 के विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार मिशन 2028 के तहत भाजपा ने 172 (एससी और आदिवासी वर्ग के प्रभाव वाली 127 सीटों के साथ ही सामान्य वर्ग की 45 सीट)विधानसभा सीटों पर विशेष रणनीति बनाकर काम करने जा रही है। इसको लेकर पचमढ़ी में तीन दिनों तक चली बैठक में मंथन भी किया गया। जानकारों का कहना है कि आगामी विधानसभा में प्रदेश की सभी सीटें जितने का लक्ष्य बनाया गया है।
गौरतलब है कि भाजपा विधायकों और सांसदों को पचमढ़ी में 3 दिनों तक अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण शिविर में भाजपा ने दलित-आदिवासी वर्ग के प्रभाव वाली सीटों को लेकर विधायकों, सांसदों के ग्रुप बनाकर चर्चा की। इस चर्चा में भाजपा ने विधायकों को यह टारगेट दिया है कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र के उन वर्गों से बातचीत करें जो हार-जीत तय करते हैं। भाजपा ने उन सीटों को इस लिस्ट में रखा है जो सामान्य यानी अनारक्षित हैं। लेकिन, हार जीत में दलित आदिवासी वर्ग के वोटर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। इस चर्चा से साफ है कि आगामी समय में इन 45 अनारक्षित विधानसभाओं में से कुछ सीटें आरक्षित हो सकती हैं। इनको लेकर भाजपा गंभीर है और परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव की तैयारी में जुट गई है। इसका नजारा पचमढ़ी में भी देखने को मिला। वहां तीन समूहों में चर्चा हुई। इस ग्रुप डिस्कशन में तीन प्रकार से विधानसभा सीटों को विभाजित किया गया था। पहले समूह में एससी वर्ग के प्रभाव वाली 71 विधानसभा सीटों के विधायकों के साथ चर्चा की गई। इस समूह की बैठक को क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने संबोधित किया। दूसरे समूह में आदिवासी वर्ग के प्रभाव वाली 56 सीटों के विधायकों को रखा गया। इस समूह से प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने चर्चा की। तीसरे ग्रुप में अन्य 74 विधानसभा सीटों के विधायकों, सांसदों के साथ मंत्री राकेश सिंह ने चर्चा की।
परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव की तैयारी
पचमढ़ी में हुए प्रशिक्षण वर्ग में भाजपा ने विधायकों को यह टारगेट दिया है कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र के उन वर्गों से बातचीत करें जो हार-जीत तय करते हैं। भाजपा ने उन सीटों को इस लिस्ट में रखा है, जो सामान्य यानी अनारक्षित है, लेकिन हार जीत में दलित आदिवासी वर्ग के वोटर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। इस चर्चा से साफ है कि आगामी समय में इन 45 अनारक्षित विधानसभाओं में से कुछ सीटें आरक्षित हो सकती हैं। इनको लेकर भाजपा गंभीर है और परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव की तैयारी में जुट गई है। गौरतलब है कि प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में एससी के लिए आरक्षित सीटें 35 हैं। इनमें कांग्रेस के एससी विधायक 9, भाजपा के एससी विधायक 26 हैं। वहीं एसटी के लिए आरक्षित सीटें 47 हैं। इनमें कांग्रेस के एसटी विधायक 22, भाजपा के एसटी विधायक 24 और अन्य दल के एसटी विधायक 01 हैं। भाजपा की कोशिश है की आगामी विधानसभा में इन सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन और बेहतर हो। इसके लिए अभी से रणनीति बनाकर काम किया जा रहा है। समूह चर्चा में विधायकों से कहा गया कि अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए जो क्षेत्र आरक्षित हैं वहां के विधायकों को अनुसूचित जाति, आदिवासी वर्ग के लोगों के बीच जाकर ये जानने का प्रयास करना चाहिए कि क्या उन्हें शासन की योजना का पात्रता के अनुसार फायदा मिल रहा है या नहीं? लोगों, युवाओं, महिलाओं और स्थानीय स्तर पर किसानों से बातचीत कर यह जानने की कोशिश करें कि वे सरकार से क्या चाहते हैं? भाजपा से इन वर्गों की क्या अपेक्षा है? उनकी परेशानियां क्या हैं? बैठक में इस बात पर खासा जोर दिया गया कि जिन वर्गों के मतदाता प्रभावशाली भूमिका में हैं यदि वे किसी और दल के साथ जुड़े हैं तो उन्हें जोडऩे का प्रयास करें। पढ़े-लिखे युवाओं, और दलित वर्ग के इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, व्यवसायियों को जोडऩे का प्रयास करें। यदि आप नहीं जोड़ेंगे तो कोई और उन्हें अपने साथ जोड़ लेगा।
इन सीटों से तह होता है सत्ता का रास्ता
दरअसल प्रदेश में आदिवासी और एससी वर्ग के प्रभाव वाली सीटें सत्ता का रास्ता तय करती हैं। भाजपा विधायकों और सांसदों को पचमढ़ी में 3 दिन तक अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण शिविर में विधानसभा सीटों पर फोकस किया गया था। इसके लिए अलग-अलग ग्रुप बनाकर विधायकों से चर्चा हुई है। मप्र में आदिवासी सीटें, जिस राजनीतिक दल के हिस्से में गई, उसके हाथ में सत्ता रही। यही कारण है कि दोनों राजनीतिक दल आदिवासी सीटों पर फोकस कर रहे हैं। भाजपा इसकी तैयारी में अभी से जुट गई। भाजपा इस वर्ग के कल्याण के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। पिछले तीन चुनाव में राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से आदिवासी वर्ग वाली सीटों का प्रभाव रहा। इन सीटों की हार-जीत राज्य की सियासत में बड़ा बदलाव ला देती है, जिस भी राजनीतिक दल को इन सीटों में से ज्यादा पर जीत हासिल हुई, उसे सत्ता नसीब हुई है। इतना ही नहीं लगभग हर चुनाव में यहां मतदाताओं का रूख भी बदलता नजर आता है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों में से 30 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और सत्ता में आ गई थी। वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ में 31 सीटें आई थी। समूह चर्चा में ये कहा गया कि प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें आदिवासी और 35 विधानसभाएं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। लेकिन, 36 सीटें ऐसी हैं जो आरक्षित नहीं हैं लेकिन, एससी वर्ग के वोटर निर्णायक हैं। इसी तरह 9 सामान्य सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोटर निर्णायक हैं। जो सीटें सामान्य हैं लेकिन, एससी, एसटी वोटर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं उन सीटों के विधायकों को प्रभावशाली वोटर्स के बीच जाकर बातचीत करना चाहिए। उनके जो स्थानीय मुद्दे हैं या सरकार से अपेक्षाएं हैं उनको जानकर समाधान के लिए काम करना चाहिए।