मप्र में करीब आठ हजार निजी स्कूलों का अस्तित्व खतरे में

निजी स्कूलों
  •  आरटीई नीतियों पर उठे गंभीर सवाल, स्कूल संचालक-बच्चों ने किया प्रदर्शन

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में निजी शिक्षा व्यवस्था पर संकट मंडरा रहा है। इसके लिए सीधे तौर पर राज्य शिक्षा केंद्र की नीतियां जिम्मेदार हैं। इन आरोपों के साथ, प्रदेश के लगभग 8 हजार निजी स्कूलों का अस्तित्व खतरे में है। इसी को लेकर स्कूल संचालक, शिक्षक, पेरेंट्स और छात्र एकजुट होकर भोपाल आए और राज्य शिक्षा केंद्र के सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का अपनी मांगों को लेकर सोमवार रात से ही राजधानी आना शुरू हो गया था। सुबह तक बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी जुटे और राज्य शिक्षा केंद्र के सामने नारेबाजी की। उन्होंने इसे कोई आंदोलन नहीं, शिक्षा के अधिकार की पुकार बताया है। प्रदर्शन के बाद स्कूल संचालक, शिक्षक, पेरेंट्स और छात्र राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों से मिलने पहुंचे।
450 स्कूल राजधानी में जिनकी मान्यता समाप्त
संचालक मंच के कोषाध्यक्ष मोनू तोमर ने बताया कि जिन स्कूलों की मान्यता नहीं हो पाई, उनके लिए भोपाल आए हैं। इन स्कूलों को बंद कराने के लिए लगातार सरकार दबाव बना रही है। सरकार चाहती है कि सीएम राइज स्कूलों में ज्यादा बच्चे पहुंचे। साल 2024 दिसंबर माह में आदेश जारी हुए थे कि सभी स्कूल नवीन मान्यता के लिए अपलाई करें। इसमें कुछ नियम नए जोड़ गए थे। जिनसे एक छोटे स्कूल संचालक के लिए मान्यता लेना लगभग असंभव हो गया था। इसको लेकर शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह से मिले। मंत्री ने उस दौरान कहा था कि नियमों में बदलाव कर रहे हैं, अभी कोई भी आवेदन ना करे। जिस कारण से उनकी बातों में आकर यह निजी स्कूल आवेद नहीं कर सके। प्रदेश में 8 हजार और 450 स्कूल राजधानी में हैं, जिन्हें यह नई मान्यता नहीं मिल सकी है। हमारी मांग है कि मान्यता वृद्धी की जाए या पोर्टल को दोबारा शुरू किया जाए। हमारी मांग नहीं मानी जाती है तो बच्चों के लेकर बड़े सीएम हाउस तक पैदल जाएंगे। संचालक मंच के सह सचिव अनुराग भार्गव ने कहा कि चार बर अधिकारियों से लेकर मंत्री को लेटर दिए हैं। हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला है। इसलिए, इस बार मुख्यमंत्री तक जाएंगे।
प्रदर्शनकारियों ने लगाए यह आरोप
प्रदेश के लगभग 25000 निजी स्कूलों में से राज्य शिक्षा केंद्र ने सिर्फ 16000 को ही मान्यता दी है। शेष 8000 स्कूलों को बंद करने का प्रयास किया जा रहा है। यह कदम न केवल स्कूल संचालकों के हितों के विरुद्ध है, बल्कि लाखों गरीब और मध्यम वर्गीय छात्रों के भविष्य को भी अंधेरे में धकेल रहा है। अनुमान है कि इन स्कूलों के बंद होने से 20000 से 25000 छात्र शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत सरकार ने एक लाख से अधिक सीटें कम कर दी हैं। जिससे वंचित वर्ग के बच्चों का मौलिक शिक्षा का अधिकार भी उनसे छीना जा रहा है। आरटीई के अंतर्गत निजी स्कूलों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान सरकार ने 3 साल से नहीं किया है। उनकी शिकायत है कि यह स्थिति न केवल स्कूलों की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रही है, बल्कि शिक्षकों की नौकरियों और छात्रों की पढ़ाई को भी सीधे तौर पर संकट में डाल रही है। निजी स्कूल संचालकों का आरोप है कि राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के स्कूलों की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गई है।
बड़े स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल
आगर जिले से आईं पेरेंट्स भावना ने बताया कि बच्चा राइट टू एजुकेशन के तहत निजी स्कूल में पढ़ रहा था। लेकिन, इस साल मान्यता ना होने से स्कूल बंद है। अब यदि सरकारी स्कूल में डालेंगे तो दूरी भी ज्यादा और वो हिंदी मीडियम है। अब तक बच्चा इंग्लिश स्कूल में पढ़ रह था। हम सभी पेरेंट्स आर्थिक रूप से कमजोर हैं। ऐसे में फीस देकर बड़े स्कूलों में पढ़ाना मुश्किल है।

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