मेरी जमाने में जो शोहरत है वह मेरी माँ की बदौलत है

  • मदर्स डे पर विशेष: माँ, वह हस्ती जिसके आगे दुनिया की हर दौलत फीकी है
  • प्रवीण कक्कड़
मदर्स डे

माँ, वह हस्ती जिसके आगे दुनिया की हर दौलत फीकी है, जिसके चरणों में जन्नत है। पश्चिम ने भले ही ‘मदर्स डे’ की नींव रखी हो, लेकिन हमारी संस्कृति तो युगों से हर दिन को माँ का ही मानती आई है। जिसने नौ महीने अपनी साँसों से मेरी सांसों को बुना, जिसने अपने सपनों को मेरे सपनों के लिए कुर्बान कर दिया, उस माँ के लिए साल का केवल एक दिन समर्पित करना? यह तो उस अथाह सागर को एक बूंद में समेटने जैसा है। नहीं, माँ के लिए तो हर पल, हर धडक़न, हर साँस उसी की अनमोल देन है। फिर भी, आज का यह दिन एक सुंदर अवसर है, उन ममतामयी आंखों को याद करने का और उस असीम ममता के आगे अपना शीश झुकाने का, जिसके आगे संसार की हर वैभव फीका पड़ जाता है। आइए, इस मदर्स डे पर हम उस दिव्य शक्ति को याद करें जो हमारे जीवन का आधार है।  मां के आशीष को शब्दों में पिरोना नामुमकिन है लेकिन बस इतना कह सकता हूं कि मेरी जमाने में जो शोहरत है वह मेरी मां की बदौलत है।
आज मदर्स डे है, मैं उस हर मां के संघर्ष को याद कर रहा हूं जिसने ना जाने कितने दुख उठाकर अपने बच्चों की परवरिश की और उन्हें समाज में एक पहचान दिलाई। मैं अपनी हर गहरी भावना में अपनी मां को महसूस कर पाता हूं। अथाह ममता और प्यार को सराहने का दिन है। तुम्हारे महत्व को शब्दों में बांधना तो असंभव है, माँ। तुम्हें परिभाषित करने के लिए तो दुनिया के सारे शब्द भी कम पड़ जाएं।
जिसके लबों पर कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ ही है, जो कभी खफा नहीं होती।
हमारे भारत में तो एक नहीं, दो-दो बार नवदुर्गा का पर्व आता है, और पूरा देश सर्वशक्तिमान माँ की आराधना में डूबा रहता है। हम तो अपने देश को भी भारत माता कहते हैं और उसके सम्मान को सर्वोपरी रखते हैं। हमें जन्म देने वाली माता के प्रति हमारा सर हमेशा श्रद्धा से झूकता है। जो परंपरा भारत में अनादिकाल से चली आ रही है, उसे यूरोप और अमेरिका तक पहुंचने में सदियां लग गईं। इसलिए सबसे पहली बार अमेरिका में 1908 में अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस ने मदर्स डे की शुरुआत की।
हम भारतीय किसी भी पर्व, किसी भी उत्सव, किसी भी परंपरा को कभी खारिज नहीं करते। हमारी संस्कृति ने हमेशा अच्छी परंपराओं और अच्छे विचारों का खुले दिल से स्वागत किया है। इसीलिए जब मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे या मातृ दिवस मनाने का प्रचलन भारत में पहुंचा, तो भारत के निवासियों ने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया। उनके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, बल्कि एक स्वाभाविक परंपरा के रूप में उन्होंने इसे अपने जीवन में अपना लिया। माँ, वह शक्ति है जो धूप में तपती साड़ी के पल्ले की छांव बनकर अपने बच्चों को झुलसने से बचाती है, तो कभी ईंटों के बोझ तले दबी अपनी कमर को सहलाते हुए भी बच्चों का पेट पालती है। वह स्वयं भूखी रहकर भी अपने बच्चों के थाल को स्वादिष्ट व्यंजनों से भर देती है। माँ का प्रेम का आंचल हमेशा अपने बच्चों पर छाया रहता है, हर मुश्किल और संघर्ष को सहकर भी वह उनकी बेहतरीन परवरिश करती है। माँ के दिए हुए अनमोल संस्कार ही तो हैं, जो बच्चों के चरित्र में आजीवन सुरक्षित रहते हैं।
माँ का आशीर्वाद मेरे साथ चलता है
मेरी प्यारी माँ, विद्या देवी कक्कड़, तुम्हें इस दुनिया से गए करीब साढ़े नौ साल हो गए, पर एक पल भी ऐसा नहीं लगता कि तुम मुझसे दूर हो। तुम्हारे चले जाने के बाद भी, तुम्हारा आशीर्वाद भावनात्मक रूप से हर पल मेरे साथ है। माँ, तुम्हारा साथ होना जीवन का सबसे सुखद अनुभव था। तुम्हारा स्पर्श अमृत के समान था। जीवन के हर उतार-चढ़ाव और चुनौतियों में, जब तुम्हारा हाथ मेरी पीठ पर होता था, तो बड़ी से बड़ी लड़ाई भी जीतने की ताकत आ जाती थी। आज समाज में जो थोड़ी बहुत मेरी प्रतिष्ठा है, मेरे प्रयासों को जो थोड़ी बहुत सराहना मिलती है, या जो पुरस्कार और सम्मान मुझे मिले हैं, वह सब तो माँ, तुम्हारे आशीर्वाद और तुम्हारे अटूट विश्वास का ही फल है। आज मदर्स डे पर तुम्हें याद करते हुए, तुम्हारे साथ बिताया हुआ हर पल मेरी आँखों के सामने जीवंत हो उठता है। मेरे व्यक्तित्व, मेरे स्वभाव, मेरी शिक्षा और दुनिया के ज्ञान में अगर किसी का सबसे ज़्यादा असर है, तो वह सिर्फ और सिर्फ तुम हो, माँ। तुम्हारे चले जाने के बाद भी, तुम्हारा आशीर्वाद एक अदृश्य शक्ति बनकर हमेशा मेरे साथ है।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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