- सडक़ पर उतरते ही बंद कर देती है अभियान

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस को जिन मामलों या मुद्दों को लेकर लगातार सडक़ों पर होना चाहिए, उन मुद्दों को ही समझने में अब तक सफल होती नहीं दिख रही है। यही वजह है कि आमजन कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी से लगातार दूर होते जा रहे हैं। मप्र में तो लगभग यही हालात बने हुए हैं। इसका बड़ा उदाहरण पहलगाम हमले का लेकर किया जाने वाला प्रदर्शन है। पहलगाम हमले के मामले में प्रदेश पार्टी के राष्टीय नेतृत्व ने देशव्यापी प्रदर्शन का आव्हान किया था , लेकिन प्रदेश कांग्रेस एक दिन तो सडक़ पर उतरी लेकिन उसके बाद से इस मामले को ही भूल गई है। अब पार्टी सोमवार से संविधान बचाओ अभियान में जुट गई है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें कांग्रेस अपने निर्धारित एजेंडे के अंतर्गत धरना प्रदर्शन तो करती है, लेकिन त्वरित मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाने और उसे जनता का मुद्दा बनाने में असफल रहती है। खासतौर पर मंहगाई और कानून व्यवस्था के तो ऐसे मामले हैं, जो आमजन को बेहद प्रभावित करते हैं, लेकिन इन मामलों में भी लगभग यही हालत बने रहते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में भी लगभग यही हाल हैं। पूर्व परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा के बहाने प्रदेश में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा कांग्रेस बताती रही, पर इसे भी जनता के बीच पूरी ताकत के साथ ले जाने में सफल नहीं रही है। इतना जरुर है कि इस तरीके मुद्दों को कांग्रेस जरुर उठाती है। इसी प्रकार ओबीसी आरक्षण का श्रेय लेने भी कांग्रेस चूक गई है, जबकि इस मामले को तूल देने और फिर उसे उठाने की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी। पदोन्नति में आरक्षण के मामले को भी कांग्रेस अपने मुख्य एजेंडे में मिल नहीं कर सकी है। जबकि यह मामला प्रदेश के करीब आठ लाख सरकारी कर्मचारियों से जुड़ा हुआ है। ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस कमजोर पड़ी। कांग्रेस के ही कुछ नेता मानते हैं कि इसकी बड़ी वजह रणनीति बनाने में समन्वय की कमी है। कई बार मुद्दे चुने तो विवादित बयानों ने लाभ की जगह पार्टी को नुकसान पहुंचाया। उदाहरण के तौर पर जनवरी में डा. आंबेडकर नगर (महू) से कांग्रेस ने संविधान बचाओ रैली की शुरुआत की पर उसे अंजाम तक नहीं पहुंचा पाई। इसी आयोजन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यह बोलकर रैली की हवा निकाल दी थी कि गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर होती है क्या? उधर, भाजपा ने इसे मुद्दे के रूप में भुना लिया और कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ा।
विरोध-प्रदर्शन रस्म अदायगी तक सिमटा
यही स्थिति विधानसभा के विभिन्न सत्रों में रही, जिसमें पार्टी जनहित के मुद्दों पर बिखरी-बिखरी नजर आई। यहां भी विरोध-प्रदर्शन रस्म अदायगी से अधिक कुछ नहीं रहा। कुल मिलाकर देखा जाए तो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करने के बाद भी पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया। समीक्षाओं में बातें बड़ी-बड़ी अवश्य हुईं पर धरातल पर कांग्रेस जनता की आवाज बनने में असफल ही साबित हुई। अब प्रदेश में पार्टी आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटने जा रही है। ऐसे में जन भावनाओं से जुड़े विषय सदन से लेकर सडक़ तक अगर पूरी ताकत के साथ सतत रुप से नहीं उठाए गए तो फिर परिणाम पुराने ही सामने संभावित हैं।