
- दिखावे के लिए कागजों में हो जाता था खेल
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के यहां पड़े छापे में मिली अकूत सम्पत्ति के बाद पूरे परिवहन विभाग और उसमें पदस्थ अफसरों की कारगुजारियां सार्वजनिक हो गई है, लेकिन इस मामले में अब तक विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद नए मुखिया बने डॉ. मोहन यादव ने विभाग में फैले भ्रष्टचार के नासूर को समाप्त करने के लिए जिस तरह से प्रयास किए हैं , उस पर विभाग के अफसरों ने पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि जांच चौकियां समाप्त होने के बाद भी अफसरों ने कमाई का नया तरीका खोज लिया है। विभाग के अफसरों द्वारा चहेते अफसरों और कमाई कराने वाले निचले स्तर तक के कर्मचारियों को माफिक जगह काम करने का अवसर लगातार मुहैय्या कराने के लिए सिर्फ कागजों में ही खेल किया जाता रहा है। विभाग में किस तरह का भ्रष्टाचार है , इससे ही समझा जा सकता है कि अपने सबसे निचले स्तर के कर्मचारी यानि की सिपाही रहे सौरभ शर्मा के यहां छापे में जिस तरह से नगदी , सोना और चांदी के बाद अन्य अचल सम्पत्तियां मिली हैं, उतनी कमाई ने विभाग के कई आला अफसरों तक को पीछे छोड़ दिया है। इससे यह तो तय है कि विभाग में आते ही उसे आला अफसरों का खुला संरक्षण मिल गया था। इस मामले में अब तक वे अफसर पूरी तरह से बचे हुए हैं जिनका संरक्षण सौरभ शर्मा और उनके साथियों को मिला हुआ था। सरकार व शासन स्तर पर भी इस मामले में अब तक संरक्षण देने वाले अफसरों के खिलाफ भी कोई कदम नहीं उठाया गया है। नियमानुसार, विभाग की प्रमुख और बड़ी चेकपोस्टों पर परिवहन निरीक्षक (आरटीआई) से लेकर परिवहन उप निरीक्षक (टीएसआई) तक को प्रभारी बनाया जा सकता था। लेकिन यह नियम सिर्फ कागजों तक सिमटा रहा और कई बड़ी परिवहन चौकियों की कमान सहायक उप परिवहन निरीक्षक से लेकर आरक्षक स्तर तक के कर्मचारियों को घोषित और अघोषित रूप से दिया जाता रहा है।
कागजों में मुख्यालय में और काम चेकपोस्ट पर
परिवहन विभाग में रोटेशन नियमों का पालन कुछ इस तरह भी होता रहा कि कागजों में नियमित रोटेशन दिखता रहे पर वास्तविकता में धरातल पर अनुकूल व्यवस्था बनी रहे। मैदानी अमले के कई अधिकारी कर्मचारी ऐसे थे, जिन्हें परिवहन चेकपोस्टों से हटाया ही नहीं गया, हालांकि जारी आदेश में उनकी पदस्थापना को मुख्यालय में दिखाया गया। ये वो कर्मचारी थे, जो विभाग को नहीं बल्कि व्यवस्थापकों पर लक्ष्मी की कृपा बर्षाने सक्षम थे। परिवहन चेकपोस्ट पर प्रभारी के तौर पर परिवहन निरीक्षक, उप निरीक्षक, उप चेकपोस्टों पर सहायक उप निरीक्षक को ही प्रभारी बनाया जा सकता था, लेकिन कुछ सालों पहले इस नियम में संशोधन कर प्रधान आरक्षकों को भी प्रभारी बनाकर पदस्थ किया गया। हालांकि उन्हें उप चेकपोस्ट पर पदस्थ किया जाना था, लेकिन बीते सालों में कई बड़ी चेकपोस्टों पर प्रधान आरक्षकों तक रसूख और लक्ष्मी कृपा से कमान संम्हालते रहे हैं।
छह माह में है बदली का नियम
परिवहन विभाग में आरटीआई से आरक्षक तक की प्रवर्तन दस्ते में पदस्थापना के लिए निर्धारित बदली के नियम बने हुए हैं। इसके तहत हर छह माह में अधिकारी या कर्मचारी को मुख्यालय या विभागीय कार्यालय तथा इतने ही समय के लिए परिवहन उडऩदस्ता और परिवहन चेकपोस्टों पर पदस्थ करने का प्रावधान है। इसके उलट कई आरक्षक से लेकर कई आरटीआई तक लगातार एक चेकपोस्ट से दूसरे चेकपोस्ट पर ही पदस्थ होते रहे हैं।
साढ़े तीन दशक में जमकर बढ़ती गई वसूली?
परिवहन विभाग में अवैध वसूली तो चेकपोस्टों की स्थापना के बाद से ही शुरू हो गई थी, लेकिन 1990 के दशक में यहां जबरियां और वर्ष 2000 के बाद लठैतों के दम पर जबरन वसूली का जो दौर शुरु हुआ था , वह लगातार बढ़ता ही चला गया। मामले की लगातार शिकायतें मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और परिवहन आयुक्त से लेकर प्रमुख सचिव तक पहुंचती रहीं, लेकिन वे सभी रद्दी की टोकरी में डाली जाती रहीं। 2018 तक चेकपोस्टों पर टोकन के माध्यम से मासिक वसूली व्यवस्था लागू रही। 2018 में अवैध वसूली का टोकन सिस्टम बंद कर हर वाहन से अनिवार्य वसूली शुरू हुई। 2019 से जून 2024 की अवधि में वाहनों से अवैध वसूली का ग्राफ 10 गुना से भी अधिक ऊपर चला गया था। वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को शिकायत मिलने पर उन्होंने एक जुलाई से परिवहन चोकपोस्टों को बंद करवा दिया। हालांकि ड्यूटी पर तैनात प्रवर्तन अमला अब भी भारी अर्थदण्ड का भय दिखाकर वाहनों से अवैध वसूली करने में पीछे नहीं रहा है।
अधिकारियों के चहेते रहे कई आरक्षक
अकेला सौरभ शर्मा ही नहीं, जो 2016 में नौकरी में आने के बाद से चेकपोस्ट पर भेज दिया गया, बल्कि कई और इसी तरह के आरक्षक हैं। विभाग में राधा भदौरिया, मनोज राठौर, जितेन्द्र तोमर, राघवेन्द्र जाट, गिर्राज गुर्जर, सादिक खान, देवेन्द्र उईके, आशुतोष मोघे, श्वेता अहिरवार, नरेंद्र भदौरिया, हेमंत जाटव, गौरव पाराशर, इम्तियाज हुसैन, पीयूष मंडावी, निमिषा तिवारी और प्रधान आरक्षक लखन इंडपाचे सहित कई नाम इसमें शामिल हैं।