- मलाई की इच्छापूर्ति पर लगा ब्रेक, छायी निराशा
- गौरव चौहान

मध्यप्रदेश में बीते कई सालों से कांग्रेस नेताओं में पार्टी छोडक़र भाजपा में जाने की होड़ सी लगी हुई थी , लेकिन अब इस पर ब्रेक सा लग गया है। इसकी वजह है दलबदलु नेताओं की इच्छापूर्ति न हो पाना। हालत यह है कि वे नेता अब हैरान परेशान घूम रहे हैं, जो विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव और उसके बाद भी भाजपा में आए हैं। इनमें कांग्रेस के कई कद्दावर नेता भी शामिल हैं। सबसे खराब स्थिति तो उन दो कांग्रेस विधायकों की है जो कांग्रेस छोडक़र भाजपा में लोकसभा चुनाव के समय आए थे।
इनमें भी सबसे खराब स्थिति बीना विधायक निर्मला सप्रे की बनी हुई है। वे न तो अब कांग्रेस में हैं और न ही भाजपा में। यह बात अलग है कि अभी भले ही वे औपचारिक रुप से कांग्रेस में हों , लेकिन अब कांग्रेसी उन्हें अपना नहीं मानते हैं। यही नहीं उनको लेकर विधानसभा सचिवालय भी स्पष्ट नही है। यही वजह है कि उसके द्वारा बाकायदा पत्र लिखकर पूछा जा चुका है कि वे आखिर किस दल में हैं। दरअसल सप्रे की स्थिती अजीब हो गई है। कांग्रेस में रहती हैं तो पार्टी उन्हेंअपना नहीं मानेगी और भाजपा में जाती हैं तो उन्हें विधायकी से इस्तीफा देना होगा। ऐसे में दोबारा विधायक बनने के लिए उन्हें उपचुनाव का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यह गारंटी नही है कि वे दोबारा चुनाव जीत ही जाएं। दरअसल सप्रे को लग रहा था कि सरकार बीना को नया जिला बना देगी, जिससे उनकी आगे की राह आसान हो जाएगी, लेकिन भाजपा के पुराने नेताओं ने ऐसा होने से रोक दिया। इसके बाद से वे बार-बार घोषणा करने के बाद भी अब तक इस्तीफा नहीं दे सकी हैं। जिस तरह की स्थिति उन्हें लेकर अब भाजपा में बनी है, उससे नहीं लगता है कि अब वे विधायकी पद से इस्तीफा देंगी।
इसी तरह से लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए रामनिवास रावत को तो मंत्री पद मिल गया, लेकिन छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह मंत्री नहीं बन पाए। कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलवाने में कमलेश शाह की बेहद अहम भूमिका रही है। कमलेश शाह ने कांग्रेस छोडऩे के साथ विधानसभा से त्यागपत्र भी दिया था। उपचुनाव में जीत के बाद उन्हें मंत्री बनाया जाना भी तय माना जा रहा था। पार्टी आदिवासी वर्ग से आने वाले कमलेश शाह को मंत्री पद का आश्वासन देकर ही भाजपा में लाई थी। छिंदवाड़ा जिले की सात विधानसभा सीटों में कमलेश शाह के आने से पहले भाजपा का कोई विधायक नहीं था, इसी कारण जिले से कोई मंत्री नहीं है। अब कांग्रेस से आए नेताओं को मिल रहे पुरस्कारों से भाजपा में बढ़ रहे असंतोष को देखकर कमलेश शाह का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। शाह ने उपचुनाव में जीत दर्ज करने के बाद कुछ दिनों तक तो मंत्री पद की राह देखी, लेकिन उसके बाद उनकी आशा ही समाप्त हो गई है। वे भी अब अपने निर्णय पर पछता रहे हैं। इसकी वजह है उनके कांग्रेस नेता कमलनाथ से दशकों पुराने संबध भी खराब हो गए और मंत्री पद भी नहीं मिलना। इन दोनों ही विधायकों के हाल देखकर अब कांग्रेस के जो नेता बगाबती मूड में दिख रहे थे, वे अब शांत हो कर बैठ गए हैं। इन सब में सबसे अधिक फायदे में रामनिवास रावत रहे हैं। रावत वर्ष 2023 में विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने थे। रावत ने विधायक पद से इस्तीफा तब दिया था, जब उन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाए जाना तय हो गया था। अब रावत भाजपा के टिकट पर विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव का सामना करने जा रहे हैं।
भाजपा में बढ़ रहा था असंतोष
दरअसल, विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी , जिसकी वजह से भाजपा को किसी दूसरे दल के विधायक की जरुरत ही नहीं थी , लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए पूर्व की तरह ही उसके विधायकों को मंत्री पद का लालच देकर दलबदल करा दिया, जिससे भाजपा के मूल रुप से कई वरिष्ठ विधायक मंत्री नहीं बन सके। इसके अलावा चुनाव में भी कई नेताओं को दलबदलुओं की वजह से टिकट से भी वंचित रहना पड़ा है। इसकी वजह से भाजपा में अंदर ही अंदर अंसतोष तेजी से पनपने लगा था। ऐसे में अब भाजपा नेतृत्व और सरकार के मुखिया किए गए वादे तक को पूरा करने में हिचक रहे हैं।
श्रीमंत सर्मथकों को लेकर भी नाराजगी
दरअसल, वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए थे और त्यागपत्र देने के कारण सभी सीटों पर उपचुनाव हुए थे। जो जीते, वे सभी मंत्री पद पर बरकरार रहे, जो हारे उन्हें निगम और मंडल में अध्यक्ष बनाकर मंत्री दर्जा दे दिया गया। ऐसे लोगों में इमरती देवी, रघुराज कंसाना, गिर्राज डंडोतिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मुन्ना लाल गोयल प्रमुख हैं। इसके अलावा भी कांग्रेस पृष्ठभूमि से आए प्रदीप जायसवाल, प्रद्युम्न सिंह लोधी और राहुल लोधी को भी महत्वपूर्ण निगम में अध्यक्ष बनाया गया था। इन नियुक्तियों के कारण भाजपा कार्यकर्ता दरकिनार हो गए थे , लेकिन तब भाजपा कार्यकर्ता इसलिए नाराज नहीं हुए थे कि प्रदेश की सत्ता में वापसी अधिक जरुरी थी। लेकिन अब ऐसा नही है। इस बार भी प्रदेश में श्रीमंत समर्थक चार दलबदलु नेताओं को मंत्री पद दिया गया है, जिसकी वजह से भाजपा के चार वरिष्ठ विधायकों को मंत्री पद से दूर रहना पड़ रहा है।