
- निराश्रित बच्चों के लिए खड़ी होगी बड़ी परेशानी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र सरकार ने मिशन वात्सल्य के तहत संचालित संस्थाओं का अनुदान अगले साल से बंद करने की तैयारी कर ली है। अनुदान बंद होने से प्रदेश के उन 28 हजार बच्चों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा, जो प्रदेश की बाल संस्थाओं में रह रहे हैं। यह बच्चे पूरी तरह से निराश्रित हैं। फिलहाल इन बच्चों की देखभाल करने वाली संस्थाओं की संख्या करीब चार हजार है। सरकार द्वारा ऐसी संस्थाओं को अगले वित्तीय वर्ष से अनुदान नहीं देने का फैसला कर लेने से अब इस तरह की संस्थाओं को स्वयं के खर्च पर ही संस्था का संचालन करना होगा। बिना अनुदान के संस्था संचालित करने की सहमति देने वाली संस्थाएं ही अस्तित्व में रह जाएंगी, बाकी बंद हो जाएंगी। इस निर्णय के बाद से प्रदेश की संस्थाओं से सहमति या असहमति का ब्योरा सरकार ने मांगा है। दरअसल, वात्सल्य मिशन के तहत महिला एवं बाल विकास के माध्यम से प्रदेश में बाल देखरेख से संबंधित 3960 संस्थाएं हैं। इनमें 28 हजार बच्चे रहे हैं। बड़े शहरों में एक ही श्रेणी की कई संस्थाएं चल रही हैं। खंडवा जिले में विशेष दत्तक गृह के रूप में सहज समागम किलकारी शिशु गृह और 6. से 14 वर्ष के बालकों के लिए नवजीवन चिल्ड्रन होम चल रहा है। इनमें रहने वाले निराश्रित बच्चों की संख्या 28 हजार से अधिक है।
हाल ही में कलेक्टरों को लिखा पत्र
केंद्र के इस निर्णय से प्रदेश की करीब 4 हजार संस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं। खंडवा जिले की संस्थाएं प्रभावित होने के आसार हैं। भारत सरकार के एक पत्र के संदर्भ में संचालनालय महिला एवं बाल विकास मप्र ने सभी कलेक्टर्स को 19 सितंबर को पत्र जारी किया है। इसमें भारत सरकार से अनुदान प्राप्त कर रही संस्थाओं की सूची और संस्थाओं का सहमति पत्र भी मांगा गया है। इन संस्थाओं का बजट इस वित्तीय वर्ष 2024-25 तक ही स्वीकृत किया गया है। आगामी वित्तीय वर्ष से संस्थाओं का विभाग स्तर पर ही संचालन किया जाएगा। किसी भी संस्था को अगले वित्तीय वर्ष के बजट में शामिल नहीं किया है।
इस तरह का बढ़ेगा संकट
बाल देखरेख संस्थाओं की श्रेणी तय होती है। इसी आधार पर वित्तीय वर्ष के आरंभ में बजट उपलब्ध कराया जाता है, जिससे संस्थाएं संचालित होती है। यदि संस्था बिना सरकारी अनुदान के स्वयं के खर्च पर संचालित होंगी तो संस्थाओं की अपेक्षा पालकों से बढ़ जाएगी। ऐसे में चाइल्ड्र ट्रैफिकिंग का खतरा भी सामने आ सकता है। बिना खर्च के बच्चों के पालन पोषण के लिए परेशानी का सामना संस्था को करना पड़ सकता है। नियमानुसार दान भी नकद में नहीं लिया जा सकता है। जन सहयोग से संस्था तो चला लेंगे, लेकिन जेजे एक्ट के तहत चलाना मुश्किल होगा। मप्र शासन चाहे तो राज्य स्तर पर स्वयं अनुदान दे सकता है।