- आरक्षित पदों के अलावा बाकी पदों पर भी महिलाओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी में भाजपा…
- गौरव चौहान
मप्र में 11 साल बाद 4524 कृषि सहकारी संस्थाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। पंचायत की तरह ये चुनाव भी राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर नहीं होते, मगर संस्थाओं से जुड़े 66 लाख किसानों को साधने के लिए पार्टियों का पूरा दखल होता है। लंबे समय बाद होने वाले इन चुनावों को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने अपने स्तर पर तैयारियां शुरू की है। भाजपा की कोशिश है कि महिलाओं के लिए आरक्षित पदों के अलावा बाकी पदों पर भी महिलाएं चुनी जाए।
सहकारी समितियों का कार्यकाल मार्च 2018 में खत्म हो गया था, लेकिन तत्कालीन शिवराज सरकार ने चुनाव कराने के बजाय यहां प्रशासक नियुक्त कर दिए। कमलनाथ सरकार ने भी इन संस्थाओं में चुनाव नहीं कराए। इसके बाद फिर सत्ता में लौटी शिवराज सरकार ने भी पूरे कार्यकाल में इस तरफ ध्यान नहीं दिया। अब तक प्राथमिक सहकारी संस्थाओं से लेकर जिला सहकारी बैंक और अपैक्स बैंक में प्रशासक नियुक्त हैं। फिलवक्त मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैंक, राज्य सहकारी कृषि विपणन संघ, राज्य सहकारी आवास संघ, राज्य उपभोक्ता संघ, राज्य सहकारी मत्स्य महासंघ, स्टेट डेयरी फेडरेशन, राज्य सहकारी बुनकर संघ, सहकारी लघु वनोपज संघ, राज्य सहकारी औद्योगिक संघ, सिल्क फेडरेशन, राज्य सहकारी बीज उत्पादक संघ, सहकारी अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम जैसी बड़ी सहकारी संस्थाओं में प्रशासक बैठे हैं।
कांग्रेस की रणनीति…
कांग्रेस अपनी खोई जमीन को वापस लेने की कोशिश कर रही है। यह चुनाव 18 जुलाई से 9 सितंबर के बीच होंगे। कांग्रेस के बड़े नेता रहे सुभाष यादव की राजनीति सहकारिता से ही शुरू हुई थी। 1998 से 2003 तक जब यादव उप मुख्यमंत्री रहे, तब कांग्रेस से चुने गए 45 विधायकों की पृष्ठभूमि में सहकारिता थी। लेकिन, विधानसभा के बाद जिस तरह से लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, उसे देखते हुए कांग्रेस अब अपनी खोई जमीन को पाने के लिए सहकारी संस्थाओं के चुनाव पर फोकस कर रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सहकारी संस्थाओं से जुड़े नेताओं की समिति बनाई है। इसमें पूर्व केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री अरुण यादव, पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह, राज्य सभा सदस्य अशोक सिंह और पूर्व मंत्री भगवान सिंह यादव को शामिल किया है। इस कमेटी के सदस्य जिलों में समिति बनाने और वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपेगी।
महिलाओं के 9 हजार पद आरक्षित
कृषि सहकारी संस्थाओं में महिलाओं के 9 हजार से ज्यादा पद आरक्षित हैं। भाजपा चाहती है कि सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़े। पार्टी सूत्रों का कहना है कि हर संस्था में 11 डायरेक्टर बनाए जाते हैं। जिसमें से 2 महिलाएं होती हैं। यह डायरेक्टर अपनी संस्था के अध्यक्ष और 2 उपाध्यक्ष व जिला सहकारी बैंक के प्रतिनिधि चुनते हैं। 2 उपाध्यक्ष में से एक महिला उपाध्यक्ष का बनना तय है। इस हिसाब से देखें तो 4524 संस्थाओं में 9 हजार 48 महिलाएं उपाध्यक्ष बनेंगी। लेकिन, सूत्र कहते हैं कि भाजपा आरक्षित पदों के अलावा बाकी पदों पर भी महिलाओं को मौका देना चाहती है। हालांकि, बारिश के सीजन में होने वाले इन चुनावों को लेकर भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ ने आपत्ति दर्ज करते हुए इन्हें अक्टूबर या नवंबर में करवाने की मांग सरकार से की है।
18 जुलाई से 9 सितम्बर के बीच चुनाव
प्रदेश में सहकारिता पर कभी कांग्रेस का पूरी तरह कब्जा था पर, दो दशक से लगातार सत्ता में रही भाजपा ने अब पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। अधिकांश सहकारी बैंकों में उसके ही समर्थक नेता अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और डायरेक्टर बनते हैं। हालांकि चुनाव न होने से समितियों पर प्रशासकों को तैनात किया गया है। सहकारिता चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। ये चुनाव 18 जुलाई से 9 सितम्बर के बीच होना हैं। सहकारी समितियों का कार्यकाल 2018 में समाप्त हो गया था पर तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने तब चुनाव नहीं कराए। कमलनाथ सरकार के पतन के बाद बनी शिवराज सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस बीच इन चुनावों को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। कोर्ट ने दिसम्बर में सरकार को आदेश दिया कि वह चुनाव 10 मार्च 2024 के पहले कराए। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव कार्यक्रम जारी किया गया है। हालांकि भाजपा का सहकारिता प्रकोष्ठ जुलाई से चुनाव प्रक्रिया शुरू किए जाने के पक्ष में नहीं है, उसका कहना है कि बरसात में चुनाव नहीं होने चाहिए। उसने अक्टूबर-नवंबर में चुनाव की मांग की है। फिलवक्त चुनाव प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अब फिर चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो रही है। भाजपा आरक्षित पदों के अलावा अन्य पदों पर भी इनकी भागीदारी चाहती है। इसे लेकर संगठन नेताओं की बैठक हो चुकी है। जिलाध्यक्षों और विधायकों से कहा गया है कि वे क्षेत्र की सक्रिय पार्टी कार्यकर्ताओं को इन चुनावों में भागीदारी करवाएं। प्राथमिक साख समितियों के चुनाव के बाद को-आपरेटिव बैंक और राज्य स्तरीय अन्य सहकारी संस्थाओं के चुनाव बेहद अहम होते हैं। इन चुनावों में हर ब्लाक से एक डायरेक्टर चुना जाएगा। बैंक की सदस्य संख्या के हिसाब से 11 से 14 डायरेक्टर चुने जाते हैं। ये अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अलावा हर संभाग से एक डायरेक्टर चुना जाता है जो अपेक्स बैंक के अध्यक्ष का चुनाव करता है। इनमें भोपाल और इंदौर जैसे बड़े संभागों से दो डायरेक्टर भी चुने जाते हैं पर इनकी संख्या अधिकतम 15 ही हो सकती है। इन डायरेक्टरों में एक राष्ट्रीय सहकारी बैंक एसोसिएशन और एक राष्ट्रीय सहकारी संघ में प्रतिनिधि के तौर पर भेजा जाता है।