मप्र कांग्रेस को सता रहा बड़ी टूट का डर

  • गौरव चौहान
मप्र कांग्रेस

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का माहौल गर्म होता जा रहा है। वैसे-वैसे दल बदल की रफ्तार भी तेज होती जा रही है। बदलता सियासी मिजाज भांपकर बड़ी संख्या में कांग्रेसी पंजा का साथ छोडक़र  कमल थामने में लगे हुए हैं। प्रदेश के सभी 29 संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेसियों का पलायन जारी है। इस बीच कांग्रेस को प्रदेश में बड़ी टूट का डर सता रहा है। इस डर के अनुसार पार्टी को आशंका है कि 10 साल बाद एक बार फिर से प्रदेश में ‘भागीरथ कांड’ दोहराया जा सकता है। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भिंड सीट से भागीरथ प्रसाद को टिकट दिया था। टिकट मिलते ही भागीरथ प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए और फिर भाजपा से चुनाव लड़ा। हालांकि 2019 में भागीरथ प्रसाद का टिकट काट दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में हार और संगठन में बदलाव के बाद कांग्रेस में जिस तरह की स्थिति बनी हुई है, उसको देखते हुए कांग्रेसी अब भाजपा में किसी तरह प्रवेश करने का रास्ता तलाशने में जुटे हैं। यह बात कांग्रेसी भी दबी जुबान से स्वीकारने लगे हैं कि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन अब कमजोर हो गया है और कई जिलों में तो कोई भी ऐसा नेता नहीं बचा है, जो कांग्रेस पार्टी के पास असरदार हो और लोगों के साथ-साथ संगठन को भी मजबूत बनाकर लोकसभा चुनाव में असरदार हो सके। जिस प्रकार से कांग्रेस के नेताओं का लगातार ही समूचे प्रदेश में भाजपा में जाने का क्रम लगा हुआ है। उससे भाजपा कांग्रेसमय होती जा रही है।
ज्यादा गुट अब भाजपा का हिस्सा
अभी तक करीब 17 हजार से ज्यादा कांग्रेसी भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। आगे भी यह सिलसिला जारी रहने वाला है। यूं तो कांग्रेस के ज्यादा गुट अब भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। सिंधिया और सुरेश पचौरी दोनों कांग्रेस के बड़े गुट थे। दोनों अब भाजपा में हैं। कुछ गुटों के नेता क्षेत्रीय राजनीति की वजह से हांसिए पर हैं। पार्टी सूत्रों ने बताया कि शीर्ष नेतृत्व को इस बात की भनक है कि लोकसभा चुनाव के लिए जैसे ही नेताओं का चुनावी अभियान शुरू होगा। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मौजूदगी में भी कांग्रेस के शेष बचे गुटों का नेता भाजपा में शामिल हो सकते हंै। पिछले चुनावों तक कांग्रेस में गुटीय आधार पर प्रत्याशी तय होते थे। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में हालात बिल्कुल बिगड़े हैं। कोई भी नेता किसी भी प्रत्याशी के लिए यह भरोसा नहीं दिला पा रहा है कि टिकट तय होने के बाद उसकी निष्ठा नहीं गड़बड़ाएगी। विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के क्षत्रपों में अपने गुट के लिए ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की होड़ मची थी। इस बार किसी भी नेता ने अपने समर्थक के लिए लोकसभा टिकट के लिए सिफारिश नहीं की। कुछ नेताओं ने सिर्फ विचार के लिए नाम जरूर आगे बढ़ाए हैं। चुनाव जीतने या पाला बदलने की उन्होंने जिम्मेदारी नहीं ली है।
होली बाद तेज होगी भगदड़
मप्र की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने दो सूचियों के माध्यम से 22 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। वहीं छह सीटों गुना, मुरैना, खंडवा, विदिशा, दमोह, ग्वालियर पर प्रत्याशियों को लेकर अभी पेंच फंसा हुआ है। खजुराहो सीट कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के समझौते के तहत समाजवादी पार्टी को दी है। कांग्रेस ने अपने 22 प्रत्याशियों में एक महिला को टिकट दिया है। वहीं, पांच वर्तमान विधायक, एक सांसद और एक राज्यसभा सांसद को प्रत्याशी बनाया है। सूत्रों का कहना है कि अब होली बाद कांग्रेस में बड़ी टूट होगी। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं मानना है कि पिछले एक महीने के भीतर जिस तरह से कांग्रेसियों की निष्ठा गड़बढ़ाई है, उसको देखते हुए इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ऐसा न हो।
छिंदवाड़ा की भगदड़ ने बढ़ाई चिंता
दरअसल, पार्टी नेतृत्व इस घटनाक्रम से हैरान हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेहद करीबी नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। अब छिंदवाड़ा के कांग्रेस विधायकों की टूट का खतरा भी बरकरार है। खास बात यह है कि मप्र कांग्रेस से नेताओं का बड़ी संख्या में भाजपा में जाने का सिलसिला भी कमलनाथ के घटनाक्रम के बाद से शुरू हुआ था। पिछले महीने फरवरी में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ का 3 दिन तक भाजपा में शामिल होने का घटनाक्रम चला था, आखिरी वक्त में कमलनाथ ने उनके भाजपा में शामिल होने के घटनाक्रम का पूरा ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया था। कांग्रेस नेतृत्व इसके बाद से ही मप्र को लेकर बेहद गंभीर हो गया था। उसके बाद फिर कांग्रेस के बड़े चेहरा सुरेश पचौरी भाजपा में शामिल हो गए थे। फिर एक के बाद एक कांग्रेस के पूर्व विधायक, सांसद एवं पदाधिकारी भाजपा में शामिल होते गाए। उधर छिंदवाड़ा नगर निगम गठन के बाद पहली बार सत्ता में आई कांग्रेस दो सालों में बिखर गई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद पिछले 15 दिनों में 13 पार्षद पाला बदल चुके हैं। सबसे चौकाने वाली बात तो ये हैं कि इनमें चार सभापति और निगम में पार्षद दल के नेता पं. राम शर्मा तक शामिल है। बड़ी संख्या में कांग्रेस पार्षदों के भाजपा में शामिल होने के बाद 33 पार्षदों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। ऐसे में निगम अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनू मांगो का पद खतरे में है। निगम के नियमों के अनुसार दो सालों का कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्ष के खिलाफ कभी भी अविश्वास प्रस्ताव आ सकता है, लेकिन इसमें भी दिक्कतें कम नहीं हैं दरअसल, 33 पार्षदों का बहुमत होने के बाद भी निगम में भाजपा दो गुटों में बंटी हुई है। पहले सात पार्षदों के भाजपा में आने के बाद से ही इन पार्षदों को अपने- अपने खेमे में लाने की मशक्कत शुरू हो गई थी।

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