कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पटवारी ‘बॉस’ के रूप में स्वीकार नहीं

जीतू पटवारी
  • नेताओं को रास नहीं आ रहा है उनका बर्ताव

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र कांग्रेस में इस समय गुटबाजी सातवें आसमान पर है। इस कारण लोकसभा चुनाव के इस दौर में भी कांग्रेस में ऐतिहासिक भगदड़ मची हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पार्टी के वरिष्ठ ही नहीं युवा नेताओं को भी जीतू पटवारी  ‘बॉस’ के रूप में स्वीकार नहीं हैं। यानी कोई भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में स्वीकार नहीं है। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी के कारण चुनाव खत्म होने के तीन माह बाद भी पटवारी अपनी टीम बनाने में असफल रहे हैं।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद जीतू पटवारी को शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। तब से सिर मुंडाते ही ओले पड़ रहे हैं, क्योंकि उनका गृह जिला इंदौर ही कांग्रेस मुक्त होने की राह पर है। पार्टी छोड़ रहे कांग्रेसी अध्यक्ष को कोस रहे हैं। श्रीराम जन्मभूमि और मोदी लहर जैसी परिस्थितियों में भी कांग्रेस के लिए किला लड़ाने वाले अंतर सिंह दरबार और पंकज संघवी जैसे खांटी नेताओं ने कांग्रेस से हाथ जोड़ लिए हैं। काफिले के रूप में भोपाल में प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुंचकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। दरबार दो बार विधायक और एक दशक तक जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे। राजपूत समाज में खासी पैठ है। संघवी भी इंदौर गुजराती समाज अध्यक्ष हैं। पूर्व विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
 मुंह फेर रहे छोटे-बड़े नेता
एक तरफ लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल जोर शोर के साथ तैयारी में जुट गए है। लेकिन इन दिनों मप्र में सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस एक बड़ी चुनौती से जूझ रही है। जैसे-जैसे मतदान के दिन करीब आते जा रहे है, वैसे एक के बाद एक नेता कांग्रेस छोडक़र  भाजपा में शामिल हो रहे है। प्रदेश में कांग्रेस छोड़ने वाली संख्या हजारों में पहुंच चुकी है। इससे पार्टी में जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में हाहाकार मचा हुआ है। कांग्रेस में मची भगदड़ से हाईकमान की चिंता बढ़ गई है। अब नेताओं के पार्टी छोड़ने से कमजोर होती कांग्रेस को लेकर आलाकमान सख्त नजर आ रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पार्टी हाईकमान ने मप्र कांग्रेस के नेताओं से पार्टी छोडऩेे की रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी से मांगी है। हाईकमान के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के नेता आखिर नाराज क्यों हैं? एक के बाद एक नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं। हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से सख्त लहजे में पूछा है कि, जोड़ने की जगह पार्टी में टूट का कारण क्या है? दरअसल, कांग्रेस के लिए चिंता की बात इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि कांग्रेस से भाजपा की तरफ जाने वालों की इस दौड़ में पार्टी के बड़े नेता तो टूट ही रहे हैं, उनके साथ पार्टी संगठन की रीढ़ कहे जाने वाले ब्लॉक स्तर से लेकर जिला और विधानसभा स्तर तक के कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़ रहे हैं। पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी अपने दर्जन भर समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुए तो वहीं 19 मार्च को ही कमलनाथ के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता सैयद जफर ने भी भाजपा की सदयता ले ली। प्रदेश में हो रही दलबदल की राजनीति पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि, पार्टी में अनुशासनहिनता के चलते जिन लोगों को हमने बाहर निकाल दिया था। वहीं लोग अब भाजपा में जा रहे है। उनको हमने ही बाहर निकाला और हम ही लें, ये तो नहीं कर सकते हम। अन्य नेता जो कांग्रेस छोडक़र जा रहे हैं, वह अपनी लालच और डर की वजह से पार्टी छोड़ रहे है।
इसलिए नाराज है बुजुर्ग और युवा नेता
कांग्रेस से नेताओं के जाने का सिलसिला जारी है। कुछ और नेता भी कतार में हैं। ये सब तब हो रहा है, जब प्रदेश कांग्रेस की कमान जीतू के हाथ में है। जाने वाले पटवारी को दोषी मान रहे हैं। उनके बर्ताव को वजह बता रहे हैं। उनका कहना है कि खुद को श्रेष्ठ मानने में बुराई नहीं, लेकिन दूसरों को निकृष्ट मानना गलत है। कुछ ने तो पटवारी के बर्ताव और बातचीत के तरीके को भी आपत्तिजनक माना। पूर्व विधायक विशाल पटेल ने तो यहां तक कह दिया कि किसी पटवारी को कलेक्टर का चार्ज दे दिया जाए तो वह जमीन ही नापेगा। नाम न छापने के अनुरोध पर एक पूर्व कांग्रेस सांसद नेे कहा कि, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने कमलनाथ को हटाकर राहुल गांधी के करीबी पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को कमान सौंप दी। वहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी युवा नेता उमंग सिंगार को सौंप दी। पार्टी ने दोनों युवाओं को जिम्मेदारी यह सोचकर सौंपी है कि ये दोनों नेता वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच समन्वय स्थापित कर पार्टी को पुर्नजीवित करेंगे किंतु उनके अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी नेताओं में अजीब सी बेचैनी दिख रही है। वरिष्ठ उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। वे आज भी पार्टी के अंदर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते। यहीं नहीं वे अपने समर्थकों को आगे बढ़ाने में लगे है। भले ही उनके समर्थक चुनाव में जीतने के क्षमता न रखते हो।
तीन माह से बिना टीम के काम रहे पटवारी
विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पूर्व सीएम कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाकर पिछले साल 16 दिसंबर को जीतू पटवारी एमपी के नए पीसीसी चीफ बने थे। पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तीन माह पूरे कर चुके है। लेकिन अभी तक पटवारी अपनी टीम नहीं तैयार पाए है। सूत्रों की मानें तो वरिष्ठ नेताओं में आम सहमति बनाने के चक्कर में टीम नहीं बन पा रही है। कांग्रेस की प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी बनाने के लिए कांग्रेस के नेता एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने कार्यकाल में जब प्रदेश कांग्रेस की टीम बनाई थी। तब उन्होंने 50 उपाध्यक्ष, 105 महामंत्री, और करीब 60 सचिव नियुक्त किए थे। चंद्रप्रभाष शेखर को प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ संगठन प्रभारी और राजीव सिंह को प्रशासन का प्रभारी बनाया था। हालांकि विधानसभा चुनाव के पहले संगठन का प्रभार राजीव सिंह को दिया गया था। विगत दिनों प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह ने पीसीसी कमेटी भंग की थी।

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