
- प्रदेश के अधिकांश सरकारी अस्पताल चिकित्सकों की कमी से जूझ रहे …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी कैसे दूर हो यह अहम सवाल बना हुआ है। इस मामले में सरकार व शासन कभी गंभीर नजर नहीं आता है। इसकी अपनी वजहें हैं।
सरकार के नीति नियंतकों द्वारा अपनी सुविधाओं पर तो बेहिसाब खर्च किया जाता है लेकिन, जब उनको दिए जाने वाले वेतन की बात आती है, तो हाथ खींच लिए जाते हैं। यह हम नहीं बल्कि सरकार के निर्णय बता रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश के अधिकांश सरकारी अस्पताल चिकित्सकों की कमी से जूझ रहे हैं। दरअसल सरकार द्वारा उन्हें अध्ययन के दौरान तो स्टायपेंड के रुप में 75 हजार रुपए दिए जाते हैं और जब वो पढक़र चिकित्सक बनकर सरकारी अस्पताल में सेवाएं देता है तो उसके बतौर वेतन महज 56 हजार रुपए का भुगतान किया जाता है। इसकी वजह से डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए नहीं मिलते हैं। इसके बाद भी सरकार उनके वेतन में बढ़ोत्तरी नहीं कर रही है। इस हालत की वजह से ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों को तो डॉक्टर तक नहीं मिल पा रहे हैं। चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए प्रदेश के सरकारी 1 अस्पतालों में – पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल ऑफिसर (पीजीएमओ) और मेडिकल ऑफिसर (एमओ) पदों पर भर्तियां की जा रही हैं। यह भर्ती एनएचएम द्वारा की जा रही है। इस भर्ती में विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए 67 हजार रुपए वेतन तय किया गया है, जबकि पढ़ाई के दौरान जूनियर डॉक्टरों को हर माह 75 हजार रुपए स्टायपेंड मिलता है। इसी तरह से मेडिकल ऑफिसर्स के लिए वेतन महज 56 हजार प्रतिमाह तय किया गया है। एनएचएम द्वारा 7 पीजीएमओ, 52 मेडिकल ऑफिसर्स और 14 चिकित्सकों की सीधी भर्ती की गई है। हालांकि भर्ती में डॉक्टरों के कम वेतन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
केन्द्रीय मानको पर भी नहीं उतर रहे खरे: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (आइपीएचएस) लगभग आठ वर्ष पहले बनाया था। इसमें हर श्रेणी के अस्पतालों के लिए संसाधन निर्धारित किए गए हैं, पर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग ने आज तक इसे अपनाया ही नहीं। जनसंख्या के अनुपात में किस श्रेणी के कितने अस्पताल होने चाहिए इसके मापदंड प्रदेश सरकार ने खुद तय किए हैं। इसके अनुसार भी हर श्रेणी के लगभग आधे अस्पताल ही हैं। 30 हजार की आबादी पर एक पीएचसी होना चाहिए, इस हिसाब से साढ़े आठ करोड़ लोगों के लिए 2833 पीएचसी होने चाहिए, पर 1445 ही हैं। 1.2 लाख जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) होना चाहिए। इस हिसाब से 708 की जगह 353 ही हैं।
बढ़ाने की जगह कम कर दिया वेतन
एएचएम ने वेतन बढ़ाने की जगह कम कर दिया है। ऐसा पहली बार देखा जा रहा है। बीते साल भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन में विशेषज्ञ डॉक्टरों को हर माह 1,25,000 रुपए वेतन देना तय किया गया था, लेकिन इस बार उसमें 38 हजार की कमी कर 67,300 रुपए कर दिया गया। इसी तरह से बीते साल जहां मेडिकल ऑफिसर्स को प्रतिमाह 65,000 रुपए वेतन दिया गया, तो इस बार उसमें भी कटौती कर उसे 56,100 रुपए प्रतिमाह कर दियागया। इसी तरह से संजीवनी क्लीनिक में वॉक इन इंटरव्यू के माध्यम से 73 पदों पर डॉक्टरों की भर्ती की गई है। इसमें 7 पद पीजीएमओ और 52 पद एमओ (मेडिकल ऑफिसर) के और संजीवनी क्लीनिक के लिए 14 पद हैं। संजीवनी क्लीनिक में पदस्थ डॉक्टर को महीने में अधिकतम 25 दिन के काम का ही वेतन मिलेगा। वह भी मरीजों पर निर्भर होगा।
यह हैं प्रदेश में हालत
एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सेवाआमें सुधार का ढिंढोरा पीटती है तो वहीं, दूसरी और इस मामले में गंभीर नहीं दिखाई देती है। हाल कितने खराब हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि लगभग 375 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) बंधपत्र के अंतर्गत एक वर्ष के लिए नियुक्त डाक्टरों के भरोसे चल रहे हैं। 114 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में तो कोई डाक्टर ही नहीं है। प्रदेश में मेडिकल कालेज के अस्पताल को मिलाकर भी सिर्फ 139 अस्पतालों में सर्जरी से प्रसव की सुविधा है। इसकी बड़ी वजह भी डाक्टरों की कमी ही है। प्रदेश की शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर का अनुपात अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा होने का बड़ा कारण तुरंत सीजर नहीं हो पाना है। जिला अस्पतालों में कोरोना काल में आइसीयू तो बना दिए गए पर वेंटिलेटर चलाने के लिए एनेस्थीसिया विशेषज्ञ 385 की जगह 162 ही हैं।