भाजपा-कांग्रेस का विंध्य पर खास जोर

भाजपा-कांग्रेस
  • पार्टी के बड़े नेताओं की कराई जा रहीं सभाएं

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। ज्यों ज्यों मप्र में चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है, उससे यह साफ होने लगा है कि विंध्य की 30 विधानसभा सीटों का प्रदेश की राजनीति में कितना महत्व है। इसी कारण भाजपा और कांग्रेस की सर्वाधिक सक्रियता इसी बेल्ट में दिखाई दे रही है। जाहिर है, भाजपा यहां किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहती है। इस क्षेत्र के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यहां खुद आ चुके हैं। दरअसल, विंध्य की कुल 30 सीटों में से 24 पर भाजपा का कब्जा है तो यहां कांग्रेस महज छह सीटें ही जीत पाई थी।  इस बार जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस ने एक-एक सीट को अभी से मथना शुरू किया है, उससे लग रहा है कि विंध्य फतह पर दोनों पार्टियों का खास फोकस है। अगर विंध्य की बात करें तो यहां कभी कांग्रेस भी मजबूत रही है। श्रीनिवास तिवारी और अर्जुन सिंह जैसे धुरंधर कांग्रेस की शान हुआ करते थे, लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को महज छह सीटों पर समेट दिया था। इस चुनाव में इस समीकरण में कुछ बदलाव दिख सकते हैं। खासतौर पर आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कहीं-कहीं असर दिखा सकते हैं। भाजपा को इस बार अपना मजबूत गढ़ बचाने के लिए कई चुनौतियों से पार पाना होगा। मैहर विधायक ने टिकट कटने के बाद विधानसभा की सदस्यता और पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, उनके कांग्रेस में जाने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसके अलावा सीधी सीट से कद्दावर और मजबूत नेता केदारनाथ शुक्ला पार्टी की घोषित उम्मीदवार रीति पाठक का खुले रूप से विरोध कर रहे हैं। उन्होंने बगावती तेवर अख्तियार कर लिए हैं। वहीं सीधी पेशाबकांड मामले में जिस तरह से आरोपी पर एनएसए लगा और बुलडोजर की कार्रवाई हुई, उससे ब्राह्मण वर्ग में नाराजगी की खबरें हैं। हालांकि पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए चुनाव से ऐन पहले राजेंद्र शुक्ल को मंत्री बनाकर कुछ भरपाई करने की कोशिश की है।
जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण
विंध्य इलाका जातिगत समीकरण और इलाके की राजनीतिक शख्सियतों के कारण चर्चाओं में रहता है। यही कारण है कि राजनीतिक दल इस इलाके में चुनावी समर में पूरी ताकत झोंक देते हैं। वर्तमान में विंध्य की 30 में से 24 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। साल 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस को निराशा हाथ लगी थी, लेकिन इस बार विंध्य का मिजाज बीते चुनावों से कुछ जुदा नजर आता है। भाजपा के सामने अपने मजबूत किले को बचाने की चुनौती है। इसके अलावा कांग्रेस जो बीते चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई थी, उसे इस बार अपने लिए यहां माहौल अनुकूल दिख रहा है। पार्टी यहां अपना खोया जनाधार तलाशने की जुगत में जुट गई है। विंध्य की सीटों पर ब्राह्मण, आदिवासी और ओबीसी समाज का वोट निर्णायक भूमिका में रहता है, जिसने इस वर्ग को साथ लिया समीकरण उसके पक्ष में हो जाते हैं। विंध्य की राजनीति में जातिगत समीकरण हावी रहते हैं। यहां ब्राह्मण, ओबीसी और गौंड समुदाय का वोट हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहता है। रीवा में करीब 34 प्रतिशत ब्राह्मण और 26 फीसदी ओबीसी वोटर हैं। सतना में पिछड़ा वर्ग के वोटरों की संख्या 23 प्रतिशत है। समान्य वर्ग भी करीब 22 प्रतिशत के साथ मजबूत फैक्टर है। सीधी में ओबीसी वोटर का प्रतिशत 27 और ब्राह्मण वोटरों की संख्या 18 प्रतिशत है। सिंगरौली में 25 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 24 प्रतिशत आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में रहता है। शहडोल में आदिवासी समाज सबसे अधिक है। यहां 43 प्रतिशत मतदाता आदिवासी हैं। इसके बाद 21 प्रतिशत ओबीसी वोटर हैं। अनूपपुर में 34 प्रतिशत वोटर आदिवासी तो 24 प्रतिशत ओबीसी हैं। उमरिया में 45 प्रतिशत आदिवासी वोटर हैं और 22 प्रतिशत वोटर पिछड़ा वर्ग से आते हैं। पूरे विंध्य इलाके में रीवा में सबसे ज्यादा सवर्ण 34 प्रतिशत तो सिंगरौली में सामान्य वर्ग के सबसे कम महज 9 फीसदी वोटर ही हैं।
मोर्चे पर सक्रिय हुए नेता
चुनावों की तारीखों का ऐलान होते ही दोनों ही पार्टियां चुनावी रण में उतरने को तैयार हैं। ऐसे में राजनीतिक पंडित इस बार यहां जमकर घमासान होने के आसार जता रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस ने इलाके की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए जमीनी स्तर पर कवायद शुरू कर दी है। कांग्रेस इस बार यहां अपनी झोली सीटों से भरना चाहती है, वहीं भाजपा के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती सामने खड़ी है। विंध्य भले ही पिछले कुछ चुनावों से भाजपा का गढ़ बन गया हो लेकिन, एक समय में यहां कांग्रेस का दबदबा था। अपना वही ट्रेक रिकॉर्ड बनाने पार्टी ने मैदान में जान फूंक दी है। धुरंधर राजनेता और सूबे के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह क्षेत्र में घर वापसी अभियान चलाकर पुराने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटे हुए हैं। चुनाव के एक साल पहले से ही अजय सिंह मैदान में जाकर पार्टी के लिए माहौल तैयार कर रहे हैं। कांग्रेस ने इस बार जातीय समीकरण पर भी पूरा फोकस किया है। इसी कारण इलाके में पिछड़ा वर्ग के बड़े चेहरे पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को केंद्रीय कार्यसमिति में स्थान देकर इस वर्ग को संदेश देने की कोशिश की है। बसपा और सपा के अलावा अब आम आदमी पार्टी भी विंध्य के रास्ते हृदय प्रदेश में एंट्री मारने की कोशिश में जी जान से लगी है। मालूम हो कि वर्ष 1991 के आमचुनाव में बसपा प्रत्याशी भीम सिंह पटेल ने कांग्रेस के कद्दावर नेता और विंध्य के व्हाइट टाइगर श्रीनिवास तिवारी को शिकस्त देकर प्रदेश में बसपा का खाता खुलवाकर चौंका दिया था। हालांकि बाद में बसपा यहां ताकत बरकरार नहीं रख पाई। वहीं बीते साल हुए नगरीय निकाय चुनाव में सिंगरौली से आप पार्टी की रानी अग्रवाल ने मेयर बनकर क्षेत्र में आप की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी। हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व पंजाब सीएम भगवंत मान ने यहां आमसभा, बैठक और रोड शो कर वोटरों के बीच आप का जनाधार तैयार करने के मंसूबे जाहिर कर दिए पार्टी ने यहां की कुछ सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है।

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