जंगलों में वनोपज के पौधारोपण पर वन विभाग का जोर

पौधारोपण

फल, फूल, छाल और पत्तियों का संग्रहण कर ग्रामीण पाएंगे रोजगार

जंगल से आय होगी तो ग्रामीण बचाएंगे जंगल

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। जिस तरह देश के किसानों में बागवानी फसलों की खेती के तरफ झुकाव काफी तेजी से बढ़ रहा है और इन प्रयासों से अनेक किसानों की आय में वृद्धि होने के साथ-साथ बेरोजगारों को रोजगार का आधार भी मिला है, उसी तर्ज पर वन विभाग अब प्रदेश के वन क्षेत्र में वनोपज के पौधों का रोपण करवाकर रोजगार का साधन बढ़ाएगा। वन विभाग का मानना है की वनोपज वाले पौधे जब पेंड़ बन जाएंगे तो उनके फूल, फूल, छाल और पत्तियों का संग्रहण कर ग्रामीण रोजगार पा सकेंगे। गौरतलब है कि लकड़ी माफिया जंगल में सागौन और अन्य कीमती लकड़ी के लालच में अवैध कटाई करते हैं। ग्रामीण भी इनका साथ देते हैं। वहीं, पट्टे के लालच में भी लोग जंगल में बड़ी संख्या में पेड़ काटकर अतिक्रमण कर रहे हैं। जंगल बचाने के लिए अब वन विभाग जंगल में ही रोजगार के साधन बढ़ाने के उपाय कर रहा है। इसके तहत इस वर्ष से जंगल में हर साल 50 प्रतिशत वनोपज (मिश्रित प्रजाति) के पौधे लगाए जा रहे हैं। वन विभाग हर साल करीब 4 करोड़ पौधे लगाता है। यानी करीब 2 करोड़ पौधे ऐसे होंगे, जो भविष्य में ग्रामीणों के रोजगार का बड़ा साधन बनेंगे।
 50% वनोपज वाले पौधे रोपे जाएंगे
वन अधिकारियों का कहना है कि जब जंगल से ही ग्रामीणों की आय बढ़ेगी तो वे पेड़ों को काटने की बजाए उसके फूल, फूल, छाल और पत्तियों का ही उपयोग करेंगे। इससे अवैध कटाई और अतिक्रमण के मामलों में रोक लगेगी। साथ ही वे जंगल के रक्षक भी बनेंगे, क्योंकि बाहरी माफियाओं को भी वे पेड़ काटने से रोकेंगे, क्योंकि इससे उन्हीं की आय प्रभावित होगी। एपीसीसीएफ(विकास) डॉ. यूके सुबुद्धि का कहना है कि अब तक करीब 5 प्रतिशत पौधे वनोपज वाले रौपे जाते थे। इस बार इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया गया है। ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य बन गया है। लघु वनोपज बढऩे के साथ ही जंगली जानवर और पशु-पक्षियों को भी जंगल में आसानी भोजन मिल सकेगा। इसके लिए नए सिरे से वर्किंग प्लान तैयार किया गया। जंगल में मेडिसिन, हर्रा, भयड़ा, आंवला, गुलर, पीपल, बरगज जैसे वृक्ष रोपे जा रहे हैं। पूरे प्रदेश में लगभग शत प्रतिशत पौधरोपण का काम कर लिया गया है।
पांच साल में मिलने लगेगा लाभ
लघु वनोपज के पौधों के जरिए ग्रामीण को पांच साल बाद इसका लाभ मिलने लगेगा। मध्यप्रदेश पहले जंगली आंवला के उत्पादन में नंबर-1 पर हुआ करता था। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र मप्र से आगे हो गया। मेडिसिन और च्वयनप्राश कंपनियों बड़े स्तर पर इसकी खरीदी करती है। इसी तरह मेडिसिन प्लांट के लिए कंपनियां भी अच्छी रकम देती है। इससे ग्राम वन समितियों की आय बढ़ेगी। गौरतलब है कि विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार एक लाख 20 हजार हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण है। विभाग ने 2021 में 1825 प्रकरण दर्ज किए, इस दौरान करीब 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध कब्जा हो गया। इसी तरह 2022 में 1825 तो 2022 में 1405 प्रकरण दर्ज किए गए। इस दौरान करीब 5 हजार हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा हुआ। वहीं, 2020 में अवैध कटाई के 48035, 2021 में 45591 और 2022 में 40530 प्रकरण सामने आए।

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