बसपा: अब अस्तित्व बचाने की चुनौती

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भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक समय प्रदेश में तीसरी सियासी शक्ति के रुप में उभर रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सामने अब प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाने की चुनौति बनी हुई है। फिलहाल प्रदेश में अभी बसपा का एक विधायक है। यह बात अलग है कि बीते चुनाव में बसपा दो सीटों पर जीती थी , लेकिन एक विधायक द्वारा भाजपा में जाने से उसकी संख्या महज एक ही रह गई है। इस स्थिति को देखते हुए ही बसपा ने अब तीन माह पहले अपने आधा दर्जन प्रत्याशी घोषित किए हैं। इसके साथ ही बसपा ने प्रत्याशी घोषित करने के मामले में बाजी मार ली है।
 बसपा उप्र की सीमा से सटे इलाकों वाली आधा सैकड़ा सीटों पर जल्द ही  अपने प्रत्याशी घोषित करने की कवायद में लगी हुई है। जल्द टिकट घोषित करने के पीछे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डा. रमाकांत पिप्पल का कहना है कि इससे उन्हें सभी मतदाताओं तक पहुंचने का मौका मिलेगा। वहीं, मतदाता भी प्रत्याशी को अच्छी तरह से समझ सकेंगे। दरअसल पार्टी ने हाल ही मेें रीवा जिले की सिरमौर और सेमरिया, सतना की रामपुर बघेलान और रैगांव, छतरपुर की राजनगर, मुरैना की दिमनी और निवाड़ी जिले की निवाड़ी विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशी घोषित किए हैं। इनमें से अधिकांश सीटों पर पार्टी को बीते कई चुनाव से अच्छे  खासे मत मिलते रहे हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में बीते कई चुनावों से बसपा का वोट बैंक खिसक रहा है। दरअसल उप्र की सत्ता से बीते एक दशक से अधिक समय से बाहर चल रही बसपा मप्र के चुनाव के बहाने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा बचाने के साथ ही अपना सियासी प्रभाव एक बार फिर बढ़ाना चाहती है।  मप्र में अनुसूचित जाति के लिए 35 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 आरक्षित सीटों पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित कर रही है।
1993 से बढऩा शुरू हुआ जनाधार
1993 और 1998 के विधानसभा चुनावों के बाद बसपा मध्य प्रदेश की सियासत में बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी। साल 1993 के विधानसभा में बसपा के 11 विधायक थे। साल 1998 में भी पार्टी के 11 विधायकों ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद बसपा प्रदेश की सियासत में निष्क्रिय होती चली गई। 2018 में बसपा के महज दो विधायक चुने गए थे। इनमें से भी एक संजीव कुशवाहा बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।
कमजोर होता गया वोट बैंक
2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के दो विधायक जीते थे , लेकिन उसे 7.26 प्रतिशत वोट मिले थे। 2008 में उसे 8.97 प्रतिशत मत मिले और सात विधायक जीते थे। 2013 में 6.29 प्रतिशत वोटों के साथ चार विधायक बसपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे। 2018 में वोट का आंकड़ा कम होकर 5.1 फीसदी रह गया।

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